दलित रूठ गए और आंबेडकर छिन गए, अब कांग्रेस को कैसे प्राप्त होगा सत्तासुख?
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दलित रूठ गए और आंबेडकर छिन गए, अब कांग्रेस को कैसे प्राप्त होगा सत्तासुख?

Rahul Gandhi Politics: राहुल गांधी दरअसल दलितों में एक उबाल देखना चाहते हैं. उनका मानना है कि बिना उबाल के दलित कांग्रेस की तरफ दुबारा नहीं मुड़ेंगे. इसलिए वे सस्ता तरीका अपना रहे हैं, लेकिन शायद उन्हें अंदाजा नहीं है कि इससे वर्ग संघर्ष शुरू हो सकता है. 

दलित रूठ गए और आंबेडकर छिन गए, अब कांग्रेस को कैसे प्राप्त होगा सत्तासुख?

बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर केवल भारतीय संविधान की रचयिता ही नहीं थे, आधुनिक भारतीय समाज और राजव्यवस्था के शिल्पकार भी थे. 1950 में डॉ. आंबेडकर ने तय कर दिया था कि आज के बाद भारत के लोग कैसे रहेंगे. यही कारण है कि आंबेडकर पर सभी दल कब्जा करने की कोशिश में लगे रहते हैं. सत्ता किसी की भी रहे, आंबेडकर की थाती को कोई छोड़ना नहीं चाहता. जिसके पास आंबेडकर हैं, उसके पास दलितों का वोट होगा और वहीं सत्तासुख प्राप्त करेगा. कांग्रेस के लिए यही सबसे बड़ी दिक्कत है. दलित उससे रूठ गए हैं और आंबेडकर उससे छिन गए हैं तो जाहिर है कि सत्तासुख प्राप्त नहीं हो पा रहा है. अब कांग्रेस छटपटा रही है. हाथ-पांव मार रही है. कहीं कोई क्लू मिल नहीं रहा है, क्योंकि नए लोग और नए आइडिया पर पार्टी काम ही नहीं कर रही है. अब राहुल गांधी करें तो क्या करें. कुछ तो करेंगे ही. ले आए बिहार के पहले कैबिनेट के सदस्य रहे जगलाल चौधरी को. इसी बहाने कम से कम बिहार की अभी की पीढ़ी तो जगलाल चौधरी को जान गई और नए कांग्रेसियों का सामान्य ज्ञान भी प्रगाढ़ हो गया.

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स्व. जगलाल चौधरी के बहाने राहुल गांधी दलित वोटरों को साधने की कोशिश में जुटे हैं लेकिन गाहे बगाहे वे गलती कर बैठते हैं. वे नहीं करते हैं तो उनकी टीम कर देती है. अब आप ही बताइए, जगलाल चौधरी की जयंती पर आप कार्यक्रम कर रहे हैं और उन्हीं के बेटे भूदेव चौधरी को मंच पर आने का मौका नहीं देते. राहुल गांधी खुद भूदेव चौधरी से नहीं मिले और जैसे उड़कर दिल्ली से आए थे, वैसे ही पटना से उड़कर दिल्ली पहुंच गए. रायता तो फैल ही गया था. अगले दिन पार्टी ने भूल चूक लेनी देनी वाली स्टाइल में भूदेव चौधरी को पार्टी कार्यालय बुलाकर सम्मानित किया.

राहुल गांधी दलितों को यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि आज सत्ता में बड़े पद पर कोई भी दलित नहीं है. दलितों और पिछड़ों की भागीदारी न के बराबर है. राहुल गांधी कहते हैं, आज देश की सत्ता संरचना में, चाहे वह शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, कॉर्पोरेट हो, व्यापार हो, न्यायपालिका हो, आपकी भागीदारी कितनी है? उन्होंने कहा कि दलितों के दिल में जो दर्द था, जो दुख था, जो उनके साथ हजारों साल से किया जा रहा था, उनकी आवाज भीमराव अंबेडकर और जगलाल चौधरी जी थे.

अब यहां उन्होंने डॉ. भीमराव आंबेडकर और स्व. जगलाल चौधरी को एक ही तराजू में तौल दिया मानें कि सब धान बाइस पसेरी. राहुल गांधी ने कहा, टिकट दे देते हैं, लेकिन अधिकार नहीं देते. उन्होंने जातिगत जनगणना पर बल दिया और कहा कि यह हमें बताएगी कि दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक, गरीब, सामान्य वर्ग कौन और कितने हैं? इसके बाद हम न्यायपालिका, मीडिया, संस्थानों और ब्यूरोक्रेसी में इनकी कितनी भागीदारी है, इसकी सूची निकालेंगे और असलियत पता करेंगे.

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राहुल गांधी ने कहा कि 200 बड़ी कंपनियों में एक भी दलित-ओबीसी, आदिवासी नहीं हैं. 90 लोग हिंदुस्तान का बजट निर्धारण करते हैं, इन लोगों में सिर्फ तीन दलित हैं और इन तीनों को भी छोटे-छोटे विभाग दिए गए हैं. अगर सरकार 100 रुपये खर्च करती है तो उसमें एक रुपये का निर्णय ही दलित अफसर लेते हैं. इसी तरह 50 फीसदी आबादी पिछड़े वर्ग की है, उनके भी मात्र तीन अधिकारी हैं. दलित, आदिवासी और पिछड़ा वर्ग की भागीदारी 100 रुपये में सिर्फ छह रुपये के बराबर है.

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