Makar Sankranti Khichdi 2023: खिचड़ी ने किया है सम्राटों और साम्राज्यों का निर्माण, जानिए इसे बनाने की सबसे सटीक विधि
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Makar Sankranti Khichdi 2023: खिचड़ी ने किया है सम्राटों और साम्राज्यों का निर्माण, जानिए इसे बनाने की सबसे सटीक विधि

Makar Sankranti Khichdi 2023: चंद्रगुप्त-चाणक्य वेश बदलकर घूम रहे थे. भिक्षाटन के जरिए ही जीवन काटते हुए वह फिर से रणनीति बना रहे थे. इसी तरह एक रात वह नगर के बाहर किसी वृद्धा के यहां पहुंचे और भोजन की मांग की. बूढ़ी मां ने अतिथि का सत्कार किया और भोजन के लिए खिचड़ी बनाई.

Makar Sankranti Khichdi 2023: खिचड़ी ने किया है सम्राटों और साम्राज्यों का निर्माण, जानिए इसे बनाने की सबसे सटीक विधि

पटनाः Makar Sankranti Khichdi 2023: मकर संक्रांति का पर्व नजदीक है. यह पर्व खगोलीय घटना पर आधारित है. यानी जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो उनकी इस क्रांतिक गति को मकर संक्रांति कहते हैं. स्थानीय भाषा में इसे संक्रांत कहते हैं और बिहार में इसे खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है. असल में इस दिन खिचड़ी, खाने-बनाने की परंपरा प्राचीन काल से है. संक्रांति को समरसता के तौर पर भी देखा जाता है और खिचड़ी तो समरस वाले आहार के तौर पर जाना जाता है. यानि एक ऐसा खाद्य पदार्थ जो दाल-चावल, सब्जी और कुछ बुनियादी मसासों के मेल से तैयार हो, जिसमें सबका स्वाद मिलकर एक अनोखा ही स्वाद तैयार हो जाए, उसे खिचड़ी कहा जाता है. 

खिचड़ी का है अद्भुत इतिहास
खिचड़ी के इतिहास पर नजर डालें तो यह वह भोजन है, जिसने भारत की भूमि पर सम्राटों का भी निर्माण किया है. वह खिचड़ी ही थी जिसने चाणक्य को महान दार्शनिक बनाया और चंद्रगुप्त को पाटलिपुत्र का राज्य दिलाकर उसे आधुनिक भारत का चक्रवर्ती सम्राट बना दिया. असल में घनानंद के अपमान से क्रोधित चाणक्य ने अपनी शिखा खोल डाली थी और उसके सर्वनाश का स्वप्न देखा था. उन्हें लग गया कि यह स्वप्न चंद्रगुप्त के जरिए ही पूरा हो सकता है. उन्होंने इसके लिए चंद्रगुप्त को प्रशिक्षित किया. एक दिन चाणक्य ने चंद्रगुप्त के साथ मिलकर मगध पर हमला कर दिया, लेकिन इसमें उन्हें बुरी तरह हार मिली. इसके साथ ही चंद्रगुप्त ने हर जगह उनकी खोज के लिए सिपाही लगवा दिए. 

वेष बदल कर घूम रहे थे चंद्रगुप्त-चाणक्य
चंद्रगुप्त-चाणक्य वेश बदलकर घूम रहे थे. भिक्षाटन के जरिए ही जीवन काटते हुए वह फिर से रणनीति बना रहे थे. इसी तरह एक रात वह नगर के बाहर किसी वृद्धा के यहां पहुंचे और भोजन की मांग की. वृद्धा ने अतिथि का सत्कार किया और भोजन के लिए खिचड़ी बनाई और दोनों को खाने के लिए दी. खिचड़ी खाने के लिए चंद्रगुप्त ने जैसे ही थाली के बीच हाथ डाला, तो उनकी उंगलियां जल गईं. बूढ़ी मां ने चंद्रगुप्त को समझाया कि खिचड़ी गर्म है, पहले किनारे से खाओ. चंद्रगुप्त ने ऐसा ही किया. 

चाणक्य को समझ में आई भूल
इस पर चाणक्य को भी अपनी भूल का भान हुआ. उन्होंने चंद्रगुप्त से कहा- समझ गए गलती कहां हुई? हमें सीधे पाटलिपुत्र पर आक्रमण नहीं करना है, बल्कि पहले किनारों को जीतना है. चाणक्य और चंद्रगुप्त ने वृद्धा को गुरु मानकर उनके पैर छुए और फिर पाटलिपुत्र के किनारे वाले राज्यों को जीतना शुरू किया. चंद्रगुप्त ने मगध पर आक्रमण के छह युद्ध हारे थे, लेकिन सातवें युद्ध से उसकी जीत का जो सिलसिला शुरू हुआ वह कभी नहीं रुका. चंद्रगुप्त हर युद्ध जीतता रहा और फिर उसने मगध के निरंकुश शासक का नाश कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की. सिकंदर और सेल्यूकस को हराने वाले चंद्रगुप्त के राज्य में मकर संक्राति का पर्व धूमधाम से मनाया जाता था. खिचड़ी की ये कहानी बताती है कि, इस आसान भोजन का स्वाद सम्राटों ने भी चखा है, और इसने साम्राज्यों के निर्माण में महान भूमिका भी निभाई है. 

ऋतु के अनुसार अनुकूल है खिचड़ी
चारों वेदों में से एक अथर्ववेद में आरोग्य को लेकर भी कई विषय शामिल हैं. आरोग्य में ऋतु के अनुसार भोजन करने का विधान बताया गया है. माघ के महीने में जब मौसम सर्द होता है, लेकिन धीरे-धीरे गर्म होने की ओर बढ़ रहा होता है तो तापांतर से मेल कराने के लिए ऐसा भोजन करना चाहिए, जो न अधिक गर्म हो और न शीत. जहां चावलों की तासीर ठंडी होती है तो वहीं मूंग व उर्द की दाल की तासीर गर्म होती है. खिचड़ी में ये दोनों ही मिलाकर खाए जाते हैं. चाणक्य ने भी खिचड़ी को संतुलित आहार बताया है. चाणक्य के अनुसार एक भाग चावल, एक चौथाई भाग दाल, हल्का नमक और घी के साथ खिचड़ी खाना फायदेमंद होता है. इस तरह की खिचड़ी पोषक तत्वों से भरपूर होती है. यह सुपाच्य होती है और इसे कभी भी खाया जा सकता है.

 

 

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