Explainer: क्या चीन पर सवाल उठाने से कच्चातिवु द्वीप का 'सच', झूठा हो जाएगा?
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Explainer: क्या चीन पर सवाल उठाने से कच्चातिवु द्वीप का 'सच', झूठा हो जाएगा?

Katchatheevu Island Controversy: बीजेपी ने कच्चातिवु द्वीप 1974 में श्रीलंका को दिए जाने के मुद्दे को फिर हवा दी है. जवाब में कांग्रेस ने अरुणाचल प्रदेश पर चीन के दावे को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार को घेरने की कोशिश की.

Explainer: क्या चीन पर सवाल उठाने से कच्चातिवु द्वीप का 'सच', झूठा हो जाएगा?

Katchatheevu Island Issue: दशकों पुराने कच्चातिवु द्वीप के मुद्दे को हवा देकर बीजेपी ने तमिलनाडु में हलचल मचा दी है. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले, कच्चातिवु विवाद की गूंज दिल्ली तक आ पहुंची है. बीजेपी ने आरोप लगाया कि 1974 में इंदिरा गांधी सरकार ने कच्चातिवु को 'बेरहमी से दे दिया' था. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कच्चातिवु द्वीप का मुद्दा उठाया. जवाब में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने चीन पर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश की है. कांग्रेस के लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीजेपी पर हमला बोला. चीन के अरुणाचल प्रदेश की 30 जगहों का नाम बदलने वाली रिपोर्ट का जिक्र किया. तिवारी ने कहा, 'जो लोग बुलंद आवाज में कच्चातिवु द्वीप की बात करते हैं, वे चीन का नाम लेने से भी डरते हैं.' विदेश मंत्री का नाम लेते हुए कांग्रेस नेता ने कहा, "एस. जयशंकर ने कहा- 'मैं आपके घर का नाम बदल दूं, तो वह घर मेरा थोड़े हो जाएगा?' इतनी कमजोर और लचीली प्रतिक्रिया भारत सरकार और उसके विदेश मंत्री को शोभा नहीं देती."

तिवारी ने कहा, 'जो लोग कच्चातिवु की बात करते हैं, वो ये भूल जाते हैं कि 1971 में इंदिरा गांधी जी ने दुनिया का भूगोल बदल दिया था.' कच्चातिवु का विवाद काफी पुराना है. टाइम्‍स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कभी जवाहरलाल नेहरू ने कहा था क‍ि वे 'द्वीप पर दावा छोड़ने' में जरा भी नहीं हिचकेंगे. 1974 में इंदिरा सरकार ने ऐसा कर भी दिया. कांग्रेस शायद इस गलतफहमी में है कि चीन पर सवाल उठाने कच्चातिवु का 'सच' झूठा हो जाएगा!

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पीएम मोदी ने 31 मार्च को उठाया था कच्चातिवु का मुद्दा

कच्चातिवु विवाद के जवाब में कांग्रेस ने चीन पर घेरा

पीएम मोदी ने 31 मार्च को X (पहले ट्विटर) पर एक रिपोर्ट शेयर की. वह रिपोर्ट तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के अन्नामलाई के हाथ लगे दस्‍तावेजों पर आधारित थी. रिपोर्ट से ऐसा लगा कि कांग्रेस को कभी कच्चातिवु द्वीप की परवाह नहीं रही. नेहरू वाले बयान का जिक्र भी रिपोर्ट में था. विदेश मंत्री एस जयशंकर से लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण तक ने इसे लेकर कांग्रेस और डीएमके पर हमले शुरू कर दिए. जवाब में कांग्रेस ने चीन के अरुणाचल प्रदेश में कुछ जगहों के नाम बदले जाने का मुद्दा उठा दिया. आनंदपुर साहिब सीट से कांग्रेस के लोकसभा सांसद मनीष तिवारी की प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई.

तिवारी ने कहा, 'आज लगभग 4 साल हो गए- चीन की फौज ने भारत की सीमा में घुसपैठ की, लेकिन मोदी सरकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.' तिवारी ने इंदिरा सरकार के फैसले का बचाव करते हुए कहा, 'न वे अमेरिका से डरीं, न उसके सातवें बेड़े से डरीं और न पश्चिमी देशों की सरकारों से डरीं. पूर्वी पाकिस्तान की जनता जिस प्रताड़ना को झेल रही थी, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी ने जनता को उस पीड़ा से बाहर निकाला था.' कांग्रेस नेता ने आगे कहा, 'मैं BJP से कहना चाहता हूं- अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए ऐसे मुद्दे न लाएं, जिससे हिंदुस्तान की सामरिक साख कमजोर हो.' कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी इसी लाइन पर बीजेपी को घेरना शुरू कर दिया.

कच्चातिवु द्वीप विवाद का 'सच' क्या है?

सबसे पहले तो कच्चातिवु द्वीप की भौगोलिक स्थिति समझ‍िए. कच्चातिवु, भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलसंधि में मौजूद 285 एकड़ का निर्जन द्वीप है. यह द्वीप बमुश्किल 300 मीटर चौड़ा और 1.6 किलोमीटर लंबा है. भारतीय तट से कच्चातिवु की दूरी करीब 33 किलोमीटर है, वहीं श्रीलंका के जाफना से 62 किलोमीटर दूर है. यहां सिर्फ एक इमारत मौजूद है- 20वीं सदी में बना सेंट एंथनी का चर्च. एक सालाना जलसे में, भारत और श्रीलंका से श्रद्धालु यहां आते हैं. यहां स्थायी रूप से नहीं बसा जा सकता क्योंकि पीने के पानी का कोई सोर्स नहीं है.

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कच्चातिवु, भारत और श्रीलंका के बीच मौजूद 285 एकड़ का एक निर्जन आइलैंड है.

1974 में भारत और श्रीलंका के बीच समझौता

ब्रिटिश राज के दौरान कच्चातिवु मद्रास प्रेसिडेंसी की सीमा में आता था. 1921 में एक सर्वे में कच्चातिवु को श्रीलंका में दिखाया गया. इसे एक ब्रिटिश भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने चुनौती दी. भारत और सिलोन (श्रीलंका), दोनों ने ही कच्चातिवु द्वीप पर दावा ठोका. उस वक्त दोनों ही देश अंग्रेजों के अधीन थे. आजादी के बाद भी कच्चातिवु विवाद बरकरार रहा. निर्णायक मोड़ आया 1974 में, जब इंदिरा गांधी की सरकार ने भारत और श्रीलंका की समुद्री सीमा हमेशा-हमेशा तय करने की ठानी. 'इंडो-श्रीलंका मैरीटाइम एग्रीमेंट' तैयार किया गया. 28 जून 1974 को नई दिल्‍ली में समझौते पर हस्ताक्षर हुए. इसके तहत, कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया. भारतीय मछुआरों को कच्चातिवु पर आराम करने और जाल सुखाने की इजाजत थी. सालाना सेंट एंथनी जलसे के लिए भी भारतीय आ सकते थे. समझौते में भारतीयों के वहां मछली पकड़ने के अधिकारों पर कोई बात नहीं की गई थी.

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1976 में भारत को मिला 'वेज बैंक'

जून 1975 में इंदिरा ने इमरजेंसी लगा दी. जनवरी 1976 में करुणानिधि की सरकार बर्खास्त कर दी गई. इसके बाद, भारत और श्रीलंका के विदेश सचिवों ने एक-दूसरे को तमाम चिट्ठियां लिखीं. कच्चातिवु को लेकर कई आदेश जारी किए गए. कन्याकुमारी के पास मौजूद 'वेज बैंक' नाम के द्वीप पर भारत की संप्रभुता स्थापित हुई. मार्च 1976 में हुए समझौते के मुताबिक, 4000 वर्ग मील में फैला वेज बैंक भारत को मिला. यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों के लिहाज से धनी है. पिछले चार दशकों से यहां तमिलनाडु और केरल के मछुआरे बड़ी संख्या में मछली पकड़ने आते हैं.

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