Chaudhvin Ka Chand: गुरुदत्त को अक्सर उनकी फिल्मों की ट्रेजडी के लिए याद किया जाता है. लेकिन उन्होंने जो फिल्में बनाईं, उनमें मिलने वाला रोमांस दूसरी जगह नहीं मिलता. चौदहवीं का चांद को आप कुछ इसी तरह से देख सकते हैं...
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Guru Dutt Romantic Film: गुरुदत्त कागज के फूल (Kaagaz Ke Phool) और प्यासा (Pyaasa) जैसी फिल्मों के लिए याद किए जाते हैं. जिनके हीरो की जिंदगी ट्रेजडी में उजड़ जाती है. लेकिन गुरुदत्त ने ही चौदहवीं का चांद के बाद साहेब बीवी और गुलाम (Sahib Bibi Aur Ghulam) जैसी फिल्में बनाईं, जिनमें हीरोइनों को इतनी खूबसूरती से शूट किया गया कि उसकी दूसरी मिसाल ढूंढना मुश्किल होता है. 1960 में आई चौदहवीं का चांद अपने नाम की ही तरह सुंदर फिल्म है. साठ साल से ज्यादा हुए, हिंदी फिल्मों के इतिहास में इसकी एक खास जगह है. मुस्लिम समाज (Muslim Society) के जीवन को भी इस फिल्म ने बहुत बारीकी से दिखाया. साथ ही यह हिंदी की उन शुरुआती फिल्मों में से है, जिनमें दो पुरुषों की दोस्ती, वफादारी को बेहद भावनात्मक स्तर पर पर्दे पर उतारा गया.
ड्राअर में फाइल
आम तौर पर चौदहवीं का चांद को लोग गुरुदत्त के निर्देशन में बनी फिल्म मानते हैं. लेकिन रिकॉर्ड के लिए दर्ज किया जाना चाहिए कि इसके लेखक-निर्देशक थे, एम.सादिक. जिन्होंने बहू बेगम और बहारों फूल बरसाओ जैसी फिल्में भी बनाई थीं. कागज के फूल (1959) की नाकामी के बाद गुरुदत्त दफ्तर में थे. सोच रहे थे कि अगली फिल्म कौन सी बनाएं? तभी उन्होंने अपना ड्राअर खोलकर एक फाइनल निकाली. उसमें एक स्क्रिप्ट थी, जो कई वर्षों से रखी थी. वह बरसों से इस पर फिल्म बनाना चाहते थे, लेकिन हमेशा टाल जाते. परंतु कागज के फूल के बाद उन्होंने कोई हल्की-फुल्की फिल्म बनाने का फैसला किया, जिसमें वह सिर्फ एक्टिंग करना चाहते थे. उन्होंने एम. सादिक से कहा कि वह चौदहवीं का चांद का निर्देशन करें.
ऐसी थी कहानी
फिल्म में लखनऊ की कहानी थी. जिसमें नवाबों की तहजीब दिखाई देती है. फिल्म में एक नवाब (रहमान) को एक लड़की की तलाश है. जो उसे मेले में दिखी थी. बुर्के से एक झलक बस नवाब को नजर आई थी. नवाब की मां बीमार है और हज पर जाना चाहती हैं. मौलवी, नवाब से कहते हैं कि वह उनकी मां को ले जा सकते हैं, अगर उनकी जवान बेटी जमीला (वहीदा रहमान) का निकाह हो जाए. नवाब अपने दोस्त असलम (गुरुदत्त) से जमीला का निकाह करा देता है. असलम पर नवाब के बहुत एहसान हैं. जमीला को देखते ही असलम को अपनी किस्मत पर भरोसा नहीं होता. वह दिलो-जान से बीवी पर फिदा है. जमीला असल में वही लड़की है, जिसकी खूबसूरती की एक झलक पर नवाब फिदा था. बाद में नवाब को पता चलता है कि वह उसके दोस्त असलम की बेगम बन चुकी है. धीरे-धीरे यह बात असलम को पता चल जाती है और वह कोशिश करता है कि बेगम उससे नफरत करने लगे. कहानी प्यार और दोस्ती के तमाम मोड़ों से गुजरती है. जो बात शुरू में कॉमेडी ऑफ एरर्स जैसी लगती है, वह अंत आते-आते त्रासदी की की तरफ मुड़ जाती है.
चौदहवीं का चांद हो...
चौदहवीं का चांद 1960 की सबसे बड़ी हिट फिल्म ही नहीं थी, बल्कि गुरु दत्त के करियर की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी. फिल्म में वहीदा रहमान की खूबसूरती ने सचमुच चार चांद लगा दिए थे. फिल्म का संगीत आज भी लोगों की जुबान है. चौदहवीं का चांद हो... गाना आप कभी भी सुन सकते हैं. फिल्म में रवि का संगीत और शकील बदायूंनी के गीत थे. फिल्म में गुरुदत्त और रहमान की शानदार अदाकारी के साथ जॉनी वॉकर की कॉमेडी इसकी रफ्तार को बनाए रखती है. चौदहवीं का चांद को तीन फिल्मफेयर पुरस्कार मिले थे. सर्वश्रेष्ठ गीतकार, सर्वश्रेष्ठ गायक (मो. रफी) और सर्वश्रेष्ठ आर्ट डायरेक्शन. करियर की सबसे बड़ी कमर्शियल हिट की वजह से ही गुरु दत्त अपनी एक और क्लासिक फिल्म साहेब बीवी और गुलाम (1962) बना सके थे. चौदहवीं का चांद को आप अमेजन प्राइम और यूट्यूब पर देख सकते हैं.