इमाम मेहदी (अ.फ.) के ज़हूर के लिए नौजवानों को तैयार करने की मौलाना सैयद हैदर अब्बास रिज़वी की मुहिम पहुँची बाराबंकी के सैयदवाड़ा, जहाँ उन्होंने इमाम-ए-ज़माना (अ.फ.) से जुड़ाव और उनकी तालीम को अपनाना वक्त की सबसे अहम ज़रूरत बताते हुए नौजवानों से ओने इमाम को पहचानने और उनकी तालीम पर चलने का हलफ दिलाया.
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बाराबंकी: बाराबंकी के आलमपुर में वाके सैयदवाड़ा में 'नूर-ए-असर क्रैश कोर्स' के चौथे मरहले का बुध को इनकाद किया गया. इस कोर्स का मकसद युवाओं को इमाम-ए-ज़माना (अ.फ.) की पहचान, उनकी तालीमात और ज़हूर की तैयारी के प्रति बेदार करना है. इस मौके पर मौलाना सैयद हैदर अब्बास रिज़वी ने कहा, "इमाम-ए-ज़माना (अ.फ.) की सही पहचान और उनसे जुड़ाव के बिना इंसान का ईमान अधूरा है. जो अपने वक़्त के इमाम की पहचान किए बिना मर गया, उसकी मौत जहालत की मौत होगी. आम तौर पर हमारे नौजवान इमाम-ए-हाज़िर (अ.फ.) से वाकिफ नहीं होते, जबकि उनकी पहचान हर मोमिन की सबसे पहली ज़िम्मेदारी है."
हैदर अब्बास रिज़वी ने कहा, " इमाम (अ.फ.) हमारे बीच मौजूद हैं, लेकिन हम ही उनसे दूर हैं. जब कोई मोमिन दुआ करता है तो इमाम (अ.फ.) उसकी दुआ पर "आमीन" कहते हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या हमारी दुआएं और काम इस लायक हैं कि इमाम (अ.फ.) हमें अपनी तवज्जो में रखें?" उन्होंने इस्लामी इतिहास का हवाला देते हुए बताया कि इमाम-ए-ज़माना (अ.फ.) की ग़ैबत के बावजूद उनका असर हर दौर में मौजूद रहा है. मौलाना ने कहा कि सिर्फ़ शिया ही नहीं, बल्कि सुन्नी विद्वानों ने भी इमाम-ए-ज़माना (अ.फ.) का जिक्र अपनी किताबों में किया है. इब्न सबाग़ मालिकी, इब्न हजर हैतमी और ग़ंजी शाफ़ेई जैसे मुहज्ज़ब सुन्नी विद्वानों ने अपनी किताबों में इमाम-ए-ज़माना (अ.फ.) का ज़िक्र किया है. इसके अलावा, मिस्र के विद्वान मुहम्मद ज़की इब्राहीम राइद ने अपने लेख में यह लिखा कि"जो कुछ शिया मानते हैं, वह अहल-ए-सुन्नत के बुनियादी सिद्धांतों से मेल खाता है, " यह सबूत इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि इमाम-ए-ज़माना (अ.फ.) पर सिर्फ़ किसी एक फिरके तक महदूद नहीं, बल्कि यह संपूर्ण इस्लामी विरासत का हिस्सा है.
नौजवानों को बेदार करने की ज़रूरत
मौलाना ने अपने खिताब में कहा, "आज के दौर को आख़िरी ज़माना कहा जाता है, जहां समाज नैतिक और धार्मिक संकट से गुज़र रहा है. ऐसे में नौजवानों को अपने इमाम (अ.फ.) की पहचान, उनकी तालीम और उनके पैगाम को अपनाने की ज़रूरत है. इमाम हसन अस्करी (अ.) के दौर की मिसाल देते हुए बताया कि इमाम (अ.) ने अपने अनुयायियों को इमाम-ए-ग़ायब (अ.फ.) के दौर के लिए तैयार किया था. इसी तरह, आज के दौर में हमें अपने इमाम (अ.फ.) के लिए तैयार रहना चाहिए." मौलाना सैयद हैदर अब्बास रिज़वी ने नौजवानों से कहा, "हर मोमिन की ज़िम्मेदारी है कि वह इमाम-ए-ज़माना (अ.फ.) की पहचान करे और उनके मिशन का हिस्सा बने. समाज में नैतिक पतन को रोकने और इस्लामी मूल्यों को फैलाने का अहद लें. अपनी तालीम और किरदार को बेहतर बनाएँ ताकि जब इमाम (अ.फ.) का ज़हूर हो तो हम उनकी सेना में शामिल होने के लायक हों. नौजवान अपने वक़्त के विद्वानों से जुड़ें और उनकी तालीम को समझें, ताकि गुमराही से बचा जा सके.