Tunisian Revolution: ट्यूनीशियाई क्रांति से प्रेरित होकर मिस्र, जॉर्डन, अल्जीरिया, यमन , ईरान, बहरीन, सीरिया, और लीबिया में राजनीतिक परिवर्तन की मांग को लेकर महत्वपूर्ण जन प्रदर्शन हुए.
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Tunisia News: ट्यूनिशिया में रविवार को सैकड़ों लोग 2011 की क्रांति की सालगिरह मनाने के लिए सड़कों पर उतरे. उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज लहराते हुए राजधानी ट्यूनिस के मुख्य मार्ग पर मार्च किया. बता दें 2011 की ट्यूनिशियाई क्रांति को ‘जैस्मिन क्रांति’ के नाम से भी जाना जाता है. इसने पूरे अरब जगत में इसी तरह के आंदोलनों को जन्म दिया, जिसे 'अरब स्प्रिंग' के रूप में जाना गया. जानते हैं ये क्रांति क्या थी?
ट्यूनीशियाई क्रांति 28 दिन तक चलने वाला एक नागरिक प्रतिरोध आंदोलन था. नागरिकों के विरोध के कारण जनवरी 2011 में लंबे समय तक राष्ट्रपति पद पर रहे जीन अल आबिदीन बेन अली को पद से हटने लिए मजबूर होना पड़ा. इसके बाद देश में लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई. यही वजह है कि इसे अरब स्प्रिंग का एकमात्र सफल आंदोलन माना जाता है.
विरोध की शुरुआत
विरोध-प्रदर्शन तब शुरू हुए जब 17 दिसंबर 2010 को मध्य ट्यूनीशिया के सिदी बौज़िद शहर में एक युवा मोहम्मद बौअज़ीज़ी ने नगरपालिका दफ्तर के बाहर खुद को आग लगा ली. बुआज़ी,ठेले पर फल बेचकर अपने परिवार का भरण-पोषण करता था. अधिकारियों के बार-बार रिश्वत मांगने और माल जब्त करने से वह तंग आ चुका था. उसके शिकायत करने के बाद भी जब प्रशासन की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो उसने खुद पर गैसोलीन छिड़क लिया और खुद को आग लगा ली.
बौअज़ीज़ी की बेबसी बेन अली शासन के तहत उस अन्याय और आर्थिक कठिनाई का प्रतीक बन गई जिसे बड़ी संख्या में ट्यूनिशिया के लोग झेल रहे थे. उसके खुद को आग के हवाले करने के कदम ने बेरोजगारी, गरीबी और राजनीतिक दमन के खिलाफ पूरे देश में लोगों को विरोध प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया.
विरोध-प्रदर्शनों को लेकर बेन अली प्रशासन की प्रतिक्रिया
बेन अली प्रशासन ने लोगों के इस आंदोलन को दबाने की हर तरह की कोशिश की जिसकी खासी अंतरराष्ट्रीय आलोचना हुई. पुलिस के साथ झड़प में दर्जनों प्रदर्शनकारी मारे गए लेकिन लोगों का प्रतिरोध कम नहीं हुआ. क्रांति की लपटें देश की राजधानी तक पहुंच गई जहां सरकार ने अशांति को नियंत्रित करने के लिए सैनिकों को तैनात किया.
13 जनवरी 2011 को प्रदर्शनों को समाप्त करने की एक कोशिश में, बेन अली राज्य टेलीविजन पर दिखाई दिए और उन्होंने कई प्रकार की रियायतों की घोषणा की. उन्होंने वादा किया कि वह 2014 में अपने कार्यकाल के अंत में फिर से पद नहीं लेंगे. हालांकि प्रदर्शनकारियों ने अली की रियायतों को सत्ता में बने रहने की एक हताश चाल के रूप में खारिज कर दिया.
बेन अली को देश से भागना
14 जनवरी 2011 को खासकर ट्यूनिस में, बेन अली ने आपातकाल की घोषणा की और छह महीने के भीतर नए विधायी चुनाव का वादा किया. घोषणा का प्रदर्शनों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. आखिरकार बेन अली और उनका परिवार ट्यूनीशिया से भागने को मजबूर हो गया.
घनौची ने सत्ता संभाली
बेन अली के भागने के बाद प्रधानमंत्री, मोहम्मद घनौची ने सत्ता संभाली. अगले दिन घनौची को ट्यूनीशियाई संसद के निचले सदन के पूर्व अध्यक्ष फौद मेबाज़ा द्वारा अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में प्रतिस्थापित किया गया. ये दोनों नेता बेन अली की राजनीतिक पार्टी, डेमोक्रेटिक कॉन्स्टिट्यूशनल रैली (जिसे फ्रेंच में रैसेम्बलमेंट कॉन्स्टिट्यूशनल डेमोक्रेटिक; आरसीडी के नाम से जाना जाता है) के सदस्य थे.
जारी रहे विरोध प्रदर्शन
बेन अली के भाग जाने के बाद भी कई दिनों तक ट्यूनीशिया में अव्यवस्था बनी रही और विरोध प्रदर्शन जारी रहे. लोगों ने अंतरिम सरकार में आरसीडी नेताओं की भागीदारी पर आपत्ति जताई. हिंसा की छिटपुट घटनाएं भी हुईं, जिसके लिए लोगों ने बेन अली के वफादारों पर देश में अराजकता फैलाने का आरोप लगाया.
अंतरिम सरकार का गठन
17 जनवरी को घनौची ने प्रधानमंत्री के रूप में एक नई एकता सरकार के गठन की घोषणा की, जिसमें बेन अली शासन के कई मौजूदा मंत्रियों के साथ-साथ कैबिनेट पदों पर विपक्षी नेताओं को शामिल किया गया.
घनौची ने नई सरकार में पिछले शासन के मंत्रियों की मौजूदगी का बचाव करते किया. उन्होंने कहा किइन मंत्रियों ने विरोध प्रदर्शनों को हिंसक रूप से दबाने के बेन अली के प्रयासों में भाग नहीं लिया था.
घनौची ने यह भी घोषणा की कि अंतरिम सरकार, आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने और ट्यूनीशिया में राजनीतिक स्वतंत्रता स्थापित करने, राजनीतिक कैदियों को रिहा करने और मीडिया सेंसरशिप को खत्म करने के लिए त्वरित कार्रवाई करेगी.
अंतरिम सरकार पर दिखा संकट
हालांकि, अगले दिन, अंतरिम सरकार का भविष्य ख़तरे में दिखाई दिया, जब विपक्षी दलों के कई नए कैबिनेट मंत्रियों ने पिछले शासन के मंत्रियों को शामिल करने के विरोध में इस्तीफा दे दिया.
20, जनवरी 2011 को बेन अली के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ पार्टी डेमोक्रेटिक कॉन्स्टिट्यूशनल रैली (आरसीडी) की केंद्रीय समिति भंग कर दी गई. मेबाज़ा, घनौची और अंतरिम सरकार के कैबिनेट मंत्री, जिन्होंने बेन अली के अधीन काम किया था, सभी आरसीडी से हट गए.
अंतरिम सरकार ने सुधारों की घोषणा की, विपक्षी राजनीतिक दलों पर बेन अली द्वारा लगाए प्रतिबंध हटा दिए गए और सभी राजनीतिक कैदियों को माफी दे दी गई. फरवरी में सरकार ने आधिकारिक तौर पर सभी आरसीडी गतिविधियों को निलंबित कर दिया.
क्रांति के बाद क्या हुआ?
एक लोकतांत्रिक सरकार के गठन का प्रयास लंबा और कठिन रहा. नए संविधान का मसौदा तैयार करते समय, विशेष रूप से दो गुटों में तनाव देखने को मिला. इनमें से एक था धर्मनिरपेक्षतावादियों का ग्रुप जो सरकारी मामलों से धर्म को दूर रखना चाहता था. दूसरी तरफ इस्लामवादियों का ग्रुप था जो दशकों के दमन के बाद इस्लामी गतिविधि के लिए संवैधानिक गारंटी की मांग कर रहा था. अंततः जनवरी 2014 में एक संविधान घोषित किया गया, जिसे ट्यूनीशियाई और अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों दोनों ने एक सफल समझौते के रूप में सराहा.
अक्टूबर-नवंबर 2019 में, ट्यूनीशिया ने पहली बार एक लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार का दूसरी सरकार को सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण देखा. देश में नए संविधान के तहत दूसरे राष्ट्रपति और दूसरी संसद का कार्यकाल शुरू हुआ.
अरब जगत पर प्रभाव
जैस्मीन क्रांति ने कई उत्तरी अफ्रीकी और मध्य पूर्वी देशों में इसी तरह के आंदोलनों को प्रेरित किया, जिससे क्षेत्र के कुछ सबसे लंबे समय तक चलने वाले शासन अस्थिर हो गए.
ट्यूनीशिया में विद्रोह के बाद के हफ्तों में, मिस्र , जॉर्डन, अल्जीरिया, यमन , ईरान, बहरीन, सीरिया, और लीबिया में राजनीतिक परिवर्तन की मांग को लेकर महत्वपूर्ण जन प्रदर्शन हुए.