Rajasthan Assembly Election: क्या राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट (Sachin Pilot) के बीच खाई बढ़ गई है.
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Ashok Gehlot vs Sachin Pilot: राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग में अब सिर्फ 25 दिन का समय बचा है और राजनीतिक ताप लगातार बढ़ता जा रहा है. चुनाव से पहले कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. ज्योति खंडेलवाल, सुरेश मिश्रा समेत सचिन पायलट के कई समर्थकों ने बीजेपी जॉइन कर ली है. अचानक ऐसा क्या हुआ कि इन नेताओं ने हाथ का साथ छोड़ दिया और फूल थाम लिया. इससे सवाल उठने लगा है कि क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच खाई बढ़ गई है. बता दें कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट में लंबे समय से विवाद चला आ रहा है और कई बार यह खुलकर सामने भी आ चुका है.
सचिन पायलट के समर्थकों को नहीं मिला टिकट
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच विवाद को हवा तब लगी जब कांग्रेस ने सचिन के समर्थक कुछ नेताओं को टिकट नहीं दिया और फिर उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया. इनमें साल 2009 में जयपुर की मेयर चुनी गईं ज्योति खंडेलवाल के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को खून से पत्र लिखने वाले पंडित सुरेश मिश्रा भी शामिल हैं.
कौन हैं ज्योति खंडेलवाल?
जयपुर की पूर्व मेयर ज्योति खंडेलवाल को सचिन पायलट का करीबी माना जाता है और वो कई बार सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठा चुकी हैं. साल 2009 में कांग्रेस की पहले मेयर चुनी गईं ज्योति किशनपोल विधानसभा सीट से टिकट मांग रही थीं और इसके लिए वह कई बाद दिल्ली के चक्कर काट चुकी थीं. उन्होंने राहुल गांधी और सोनिया गांधी से भी मुलाकात की थी और उन्हें भरोसा था कि इस बार टिकट जरूर मिलेगी, क्योंकि 2018 के चुनाव में भी आश्वासन दिया गया था.
जब 22 अक्टूबर को कांग्रेस ने राजस्थान चुनाव के लिए दूसरी लिस्ट जारी की तो किशनपोल विधानसभा सीट से अमीन कागजी को टिकट दिया गया और ज्योति खंडेलवाल को झटका लगा. इसके बाद भी उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी और हवामहल विधानसभा सीट से टिकट मिलने की उम्मीद थी. इसके बाद ज्योति ने सचिन पायलट से मुलाकात की, लेकिन बात नहीं बनी. हवामहल सीट से मौजूदा विधायक महेश जोशी का ही नाम आगे बढ़ता देख उन्होंने बीजेपी का दामन थामने का फैसला किया.
कौन हैं सुरेश मिश्रा?
ज्योति खंडेलवाल के पहले पंडित सुरेश मिश्रा पिछले सप्ताह बीजेपी में शामिल हो गए थे. सुरेश मिश्रा भी सचिन पायलट गुट के नेता माने जाते थे. सुरेश मिश्रा ने पिछले साल कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को खून से पत्र लिखकर राजस्थान के राजनीतिक संकट को लेकर अपनी बात रखी थी. उन्होंने मानेसर प्रकरण को लेकर 25 सितंबर 2022 को हुई घटना की निंदा की थी. पंडित सुरेश मिश्रा भी कांग्रेस से टिकट की उम्मीद लगा रहे थे और सांगानेर विधानसभा सीट से टिकट मांग रहे थे, लेकिन उनकी जगह पुष्पेंद्र भारद्वाज को टिकट दिया गया. बता दें कि पिछले चुनाव में पुष्पेंद्र भारद्वाज बीजेपी के अशोक लाहोटी से करीब 35 हजार वोटों से हार गए थे.
मानेसर प्रकरण क्या है?
बता दें कि जून 2022 में सचिन पायलट अपने 30 समर्थक विधायकों के साथ हरियाणा के मानेसर चले गए थे. सचिन पायलट के समर्थकों ने अशोक गहलोत को सीएम पद से हटाने की मांग की. इसके बाद अशोक गहलोत सरकार खतरे में आ गई थी. इसके बाद कांग्रेस ने डैमेज कंट्रोल करने के लिए रणदीप सुरजेवाला और अजय माकन को राजस्थान भेजा, जिन्होंने सरकार गिराने की साजिश को लेकर जानकारी दी. इसके बाद सचिन पायलट और उनके 3 करीबियों को अशोक गहलोत सरकार से हटा दिया गया. इसको लेकर अशोक गहलोत ने बीजेपी पर आरोप लगाए और सरकार गिराने की साजिश करने का जिम्मेदार ठहराया. कांग्रेस हाईकमान ने सचिन पायलट से बात की, जिन्होंने बीजेपी से मिले होने की बात से इनकार किया. अशोक गहलोत अपनी सरकार को बचाने में कामयाब हुए और पार्टी हाईकमान ने बातचीत के लिए अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सुलह कराई. इसके साथ ही सचिन पायलट के करीबी विधायकों को गहलोत कैबिनेट में फिर से जगह दी गई.
क्या है 25 सितंबर 2022 की घटना?
25 सितंबर 2022 को राजस्थान कांग्रेस में बड़ी उलझन हुई थी. कांग्रेस आलाकमान के निर्देश पर जयपुर में कांग्रेस विधायकों की बैठक होनी थी. इस बैठक में एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव को मंजूरी देनी थी, जिससे भविष्य के मुख्यमंत्री का चयन होना था. इस दौरान, मुख्यमंत्री आशोक गहलोत के समर्थकों को लगा कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. इसे देखते हुए गहलोत के समर्थक शांति धारीवाल, डॉ. महेश जोशी और आरटीडीसी चेयरमैन धर्मेंद्र राठौड़ ने विधायकों की बैठक की. इस बैठक के बाद गहलोत समर्थक लगभग 80 विधायक आधी रात को विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के घर जाकर इस्तीफा दे दिया. कहा जाता है कि अशोक गहलोत समर्थक विधायकों ने यह कदम सचिन पायलट को सीएम बनने से रोकने के लिए उठाया था.