कहां हुई थी हनुमानजी की प्रभु श्रीराम से पहली मुलाकात? बेहद दिलचस्प और अद्भुत है ये घटना
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कहां हुई थी हनुमानजी की प्रभु श्रीराम से पहली मुलाकात? बेहद दिलचस्प और अद्भुत है ये घटना

Ram Hanuman Amazing Story: हनुमान जी की यह भक्ति, समर्पण और भगवान राम के प्रति प्रेम आज भी सभी भक्तों के लिए प्रेरणास्रोत है.  आइए जानते हैं कि हनुमानी जी की प्रभु श्रीराम की पहली मुलाकात कहां हुई थी. 

कहां हुई थी हनुमानजी की प्रभु श्रीराम से पहली मुलाकात? बेहद दिलचस्प और अद्भुत है ये घटना

Ram-Hanumanji First Meet: भगवान राम और हनुमान जी का मिलन भक्ति, समर्पण और प्रेम का अद्वितीय उदाहरण है. यह क्षण न केवल धार्मिक रूप से पवित्र है, बल्कि भगवान और भक्त के बीच विश्वास की पराकाष्ठा को भी दर्शाता है. इस मिलन ने रामायण की कथा को दिशा देते हुए धर्म और कर्तव्य की महान सीख दी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हनुमान जी से प्रभु श्रीराम की मुलाकात पहली बार कब हुई थी. आइए जानते हैं रामचरित मानस से जुड़े इस प्रसंग के बारे में. 

भगवान राम और हनुमान जी का मिलन पवित्रता, भक्ति और भगवान और उनके सबसे बड़े भक्त के बीच अनन्य प्रेम और विश्वास का प्रतीक है. यह मुलाकात सतयुग के अद्वितीय क्षणों में से एक है. इस प्रसंग का वर्णन रामचरितमानस की चौपाई में इस प्रकार है-

"आगें चले बहुरि रघुराया।

रिष्यमूक पर्बत निअराया॥

तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा।

आवत देखि अतुल बल सींवा"॥1॥

इसका अर्थ है: "श्री रघुनाथ जी आगे बढ़े और ऋष्यमूक पर्वत के निकट पहुंचे, जहां सुग्रीव अपने मंत्रियों सहित निवास कर रहे थे.जब सुग्रीव ने अपार बलशाली श्री रामचंद्रजी और लक्ष्मणजी को आते देखा, तो वे भयभीत हो गए."

सीता की खोज और ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव से भेंट

जब रावण ने माता सीता का हरण किया, तो भगवान राम और लक्ष्मण उन्हें ढूंढते हुए वन-वन भटक रहे थे. इसी दौरान वे ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे, जहां सुग्रीव अपने भाई बाली के भय से शरण लिए हुए थे. श्रीराम और लक्ष्मण को देखकर सुग्रीव को संदेह हुआ कि कहीं वे बाली के भेजे हुए दूत तो नहीं हैं. संदेह दूर करने के लिए उन्होंने हनुमान जी को उनके बारे में जानकारी लाने का आदेश दिया.

हनुमान जी का भगवान राम से परिचय

सुग्रीव के निर्देश पर हनुमान जी ब्राह्मण के वेश में राम और लक्ष्मण के पास पहुंचे। उन्होंने विनम्रता से पूछा, "आप कौन हैं और वन में क्यों भटक रहे हैं?" भगवान राम ने अपना परिचय देते हुए कहा-

कोसलेस दशरथ के जाए, हम पितु वचन मानि वन आए।

नाम राम लछिमन दोऊ भाई, संग नारि सुकुमारि सुहाई।।

इसका अर्थ है: "हम कोशल नरेश दशरथ के पुत्र हैं. पिता की आज्ञा का पालन करते हुए वनवास में आए हैं. मेरा नाम राम है और यह मेरे छोटे भाई लक्ष्मण हैं. हमारे साथ एक सुकुमारी स्त्री भी थीं." भगवान राम की बात सुनकर हनुमान जी तुरंत समझ गए कि वे विष्णु के अवतार हैं. उन्होंने भगवान राम के चरणों में गिरकर अपनी भक्ति और समर्पण प्रकट किया. राम ने उन्हें गले लगाकर आशीर्वाद दिया.

राम और सुग्रीव की मित्रता

हनुमान जी भगवान राम और लक्ष्मण को कंधे पर बैठाकर सुग्रीव के पास ले गए. सुग्रीव और राम के बीच मित्रता का संधि हुई. सुग्रीव ने सीता की खोज में वानरों की सहायता का वचन दिया, और भगवान राम ने बाली का वध कर सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बनाने का आश्वासन दिया.

हनुमान जी की भक्ति का प्रारंभ

हनुमान जी के लिए यह मिलन उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण क्षण था. इसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन भगवान राम की सेवा में समर्पित कर दिया. उन्होंने माता सीता की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और राम-रावण युद्ध में राम की विजय सुनिश्चित की.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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