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Jallikattu: जल्लीकट्टू.. वीरता-विरासत और विवाद की कहानी, देखते-देखते कैसे बन गया तमिलनाडु की पहचान?

Jallikattu History: जल्लीकट्टू तमिलनाडु का एक पारंपरिक खेल है.. जिसमें बैलों को काबू करने की प्रतियोगिता होती है. यह खेल पोंगल उत्सव के तीसरे दिन मट्टू पोंगल पर आयोजित किया जाता है. इसका इतिहास 400-100 ईसा पूर्व तक जाता है. जब तमिलनाडु के आयर समुदाय के लोग इसे खेलते थे. 'जल्लीकट्टू' शब्द 'जल्ली' (सोने-चांदी के सिक्के) और 'कट्टू' (बंधा हुआ) से बना है. इस खेल में बैलों की पीठ पर सिक्कों की थैली बांधी जाती थी.. जिसे प्रतिभागी बैल को काबू करके निकालने की कोशिश करते थे. आइये जानते हैं इसके बारे में सबकुछ.

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इस खेल में एक प्रशिक्षित बैल को भीड़ के बीच छोड़ा जाता है और प्रतिभागी उसे उसकी पीठ पर मौजूद कूबड़ पकड़कर रोकने की कोशिश करते हैं. बैल को काबू करने वाले प्रतिभागी और सबसे ताकतवर बैल को पुरस्कार दिए जाते हैं. इस खेल में मुख्य रूप से पुलिकुलम और कंगायम नस्ल के बैलों का उपयोग किया जाता है. विजेता बैल बाजार में ऊंची कीमत पर बिकते हैं और उन्हें प्रजनन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.

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तमिलनाडु में जल्लीकट्टू केवल एक खेल नहीं बल्कि साहस, वीरता और परंपरा का प्रतीक है. यह खेल बैलों की अहमियत को दर्शाता है. जो खेती और ग्रामीण जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. 

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जल्लीकट्टू लंबे समय से विवादों में घिरा रहा है. इसमें बैलों को जानबूझकर उकसाया जाता है, जिससे वे डरकर भागने लगते हैं. उन्हें रोकने के प्रयास में प्रतिभागी और दर्शक घायल हो जाते हैं. कई बार बैलों को शराब पिलाई जाती है, उनकी आंखों में मिर्ची डाली जाती है या उनके साथ हिंसा की जाती है. यह पशु क्रूरता के कानूनों का उल्लंघन करता है.

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2006 में मद्रास हाईकोर्ट ने जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया. इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने 2009 में इसे नियमित करने के लिए एक कानून पारित किया. लेकिन 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे पशु क्रूरता मानते हुए प्रतिबंधित कर दिया. 2016 में केंद्र सरकार ने चुनावों से पहले प्रतिबंध हटाने की कोशिश की लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे रोक दिया.

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2017 में जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध के खिलाफ चेन्नई के मरीना बीच पर हजारों लोगों ने प्रदर्शन किया. इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने एक अध्यादेश लाकर जल्लीकट्टू को फिर से कानूनी मान्यता दी. 2017 में एक नया कानून भी पारित किया गया जो जल्लीकट्टू को पशु क्रूरता अधिनियम से छूट देता है.

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जल्लीकट्टू में प्रतिभागियों और दर्शकों के घायल होने का खतरा रहता है. इसे सुरक्षित बनाने के लिए तमिलनाडु सरकार ने स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) लागू किया है.

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जल्लीकट्टू तमिल संस्कृति का हिस्सा है और इसे वहां की विरासत का प्रतीक माना जाता है. बैलों और प्रतिभागियों की जांच के साथ-साथ सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं.

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