Aghori Vibes in mahakumbh: महाकु्ंभ मेला प्रयागराज में लोगों का पहुंचना लगातार जारी है. इस मेले में श्रद्धालुओं के साथ-साथ सितारे भी भाग लेने पहुंच रहे हैं. वहीं, इस मेले में नागा साधू भी स्नान करने के लिए पहुंच रहे हैं. अघोर साधू भी इस मेले में पहुंचकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं.
अघोर साधू जिन-जिन रास्तों से गुजर रहे हैं वहां लोग इन्हें देखने के लिए लाइन लगा दे रहे हैं.अघोर साधू अपने आप को शिव का परम भक्त मानते हैं. यही कारण है कि वह बहुत ही अलग तरीके से जिंदगी जीते हैं. कई बार ऐसा होता है कि इनके रूप को देखकर लोग सहम से जाते हैं.
हाथों में त्रिशूल, गले में खोपड़ियों की माला. कमर में मृगछाल कपड़े और शरीर में कई जगह बंधे हुए रुद्राक्ष इनका ये रूप बहुत ही निराला होता है. जटाओं से सुशोभित सर और भष्म में लिपटा हुआ इनका शरीर सिर्फ भूरा-भूरा नजर आता है.
इन्ही सभी चीजों से अघोर साधू खुद को सजाते हैं. इन अघोर साधुओं को न खाने-पीने की चिंता होती है न ही रहने का कोई स्थाई ठौर. शिव तांडव नृत्य करते हुए ये अघोर साधू मुक्ति के लिए चलते रहते हैं. यही कारण है कि इन्हें शिव का सबसे अनन्य भक्त कहा जाता है.
कहा जाता है कि नदियों किनारे और सुनसान जगह पर ये अघोर साधू बैठकर धुनी रमाते हैं और अपने आप को भगावन शिव के साथ आधायत्मिक संबंध स्थापित करने की कोशिश करते हैं. ये साधू जब मंत्रो का जाप करते हैं तो ऐसा लगता है मानों शिव सबकुछ छोड़कर इनके लिए धरा पर आ जाएंगे.
अघोर साधुओं का समूह अघोर पंथ, अघोर मत या अघोरियों का संप्रदाय होता है. यह संप्रदाय हिंदू धर्म का ही एक अंग है. ऐसे में जो भी व्यक्ति अघोर संप्रदाय के नियमों का पालन करता है उसे अघोरी कहते हैं. इस संप्रदाय के प्रवर्त्तक स्वयं अघोरनाथ यानी कि शिव को माना जाता है.
रुद्र की मूर्ति को श्वेताश्वतरोपनिषद में अघोरा या मंगलमयी कहा गया है. अघोर मंत्र भी काफी प्रसिद्ध है. माना जाता है कि ईरान समेत कई अन्य देशों में भी इस संप्रदाय के लोग रह चुके हैं. क्योंकि पश्चिम के कुछ विद्वानों ने इस संप्रदाय के बारे जिक्र भी किया है.
इस पंथ में कोई भी व्यक्ति शामिल हो सकता है. बस इसके लिए शर्त यही होता है कि अघोर पंथ के नियमों का पूरी तरह से पालन करना होता है. इनके नियम बहुत ही कठिन माने जाते हैं. इस कारण जल्दी से लोग इसे आत्मसात नहीं कर पाते हैं.
कुछ अघोरी अपने को 'अघोरी' व 'औगढ़' बताते हैं. इनका काम होता है शवसाधना करना. इसके अलावा मृतक मनुष्यों की खोपड़ी में मदिरा पान करना. ये अघोरी अपने आप को गुरु दत्तात्रेय का शिष्य मानते हैं.
ट्रेन्डिंग फोटोज़