जानें क्या होती है रिट पेटीशन? जिसके लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट में दायर होती है अपील
Advertisement
trendingNow11220972

जानें क्या होती है रिट पेटीशन? जिसके लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट में दायर होती है अपील

अनुच्छेद 32 का उद्देश्य मूल अधिकारों के संरक्षण हेतु गारंटी प्रदान करने उसे प्रभावी और सुलभ बनाने की व्यवस्था की गई है. बता दें कि, इसके अंतर्गत केवल मूल अधिकारों की गारंटी दी गई है अन्य अधिकारों की नहीं. मूल अधिकारों की रक्षा में रिट पेटीशन का प्रयोग होता है. 

जानें क्या होती है रिट पेटीशन? जिसके लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट में दायर होती है अपील

नई दिल्ली. भारतीय संविधान के तहत भारत के नागरिकों को कई प्रकार के अधिकार मिले हुए हैं. भारतीय संविधान के अनुसार हमें जो अधिकार मिले हुए हैं उनको हम दो तरह से देख सकते हैं. पहले होते हैं मूल अधिकार या फंडामेंटल राइट और दूसरे होते हैं कानूनी अधिकार.सामान्य कानूनी अधिकारों के विपरीत मौलिक अधिकारों को देश के संविधान द्वारा गारंटी एवं सुरक्षा प्रदान की गई है. 

  1. जानें क्या होती है रिट पेटीशन
  2. सरकार के खिलाफ जा सकते हैं कोर्ट

अगर सरकार द्वारा बनाये गए किसी भी नियम या कानून से हमारे मूल अधिकारों का हनन होता है तो हम संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. इस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के द्वारा एक रिट जारी की जाती है. आज हम इसी रिट पेटीशन के बारे में विस्तार से समझेंगे कि कैसे इसके द्वारा हम अपने मूल अधिकारों की सुरक्षा कर सकते हैं.

संविधान में रिट का अधिकार

रिट पेटीशन को समझने से पहले आपको यह बता दें कि संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 32 के तहत मूल अधिकारों का प्रावधान किया गया है. संविधान में हमें 6 प्रकार के मूल अधिकार दिए गए हैं. इन्हीं अधिकारों में से एक अधिकार है संवैधानिक उपचारों का अधिकार यानी कॉन्सटिट्यूशनल रेमेडी. 

इस अधिकार का महत्व आप इस तरह से भी समझ सकते हैं कि संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर ने भी अनुच्छेद 32  को संविधान का सबसे अहम अनुच्छेद बताया- “एक अनुच्छेद जिसके बिना संविधान अर्थहीन है, यह संविधान की आत्मा और हृदय हैं.”

अनुच्छेद 32 का उद्देश्य मूल अधिकारों के संरक्षण हेतु गारंटी प्रदान करने उसे प्रभावी और सुलभ बनाने की व्यवस्था की गई है. बता दें कि, इसके अंतर्गत केवल मूल अधिकारों की गारंटी दी गई है अन्य अधिकारों की नहीं. 

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट का अधिकार

भारतीय संविधान द्वारा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय को अधिकारों की रक्षा करने के लिये लेख, निर्देश तथा आदेश जारी करने का अधिकार है. सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत और उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत रिट जारी कर सकते हैं. 

यहां यह जानना भी जरूरी है कि रिट के मामले में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की शक्तियां भी अलग अलग हैं. सुप्रीम कोर्ट की रिट अधिकारिता का प्रभाव संपूर्ण भारत में है जबकि हाईकोर्ट  की रिट अधिकारिता का विस्तार संबंधित राज्य की सीमा तक ही है.

सुप्रीम कोर्ट केवल मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में ही रिट जारी कर सकता है जबकि हाई कोर्ट मौलिक अधिकारों के अलावा अन्य विषयों के संदर्भ में भी रिट जारी कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के विरुद्ध प्रतिषेध तथा उत्प्रेषण का रिट जारी कर सकता है पर हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के विरुद्ध ऐसा नहीं कर सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल किए गए रिट की सुनवाई से इनकार नहीं कर सकता जबकि अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय द्वारा रिट सुनवाई के लिये स्वीकार किया जाना संवैधानिक रूप से अनिवार्य नहीं है. 

दिलचस्प बात यह है कि, प्रभाव क्षेत्र की दृष्टि से हाई कोर्ट के रिट अधिकार अधिक व्यापक हैं. जैसे कि सुप्रीम कोर्ट केवल मौलिक अधिकारों के संरक्षण हेतु रिट जारी कर सकता है जबकि हाई कोर्ट अन्य वैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिये भी रिट जारी कर सकते हैं. रिट मुख्य तौर पर 5 तरह की होती है. 

बंदी प्रत्यक्षीकरण या हैबस कॉर्पस

हैबस कॉर्पस के तहत कोर्ट किसी भी गिरफ्तार हुए व्यक्ति को न्यायाधीश के सामने उपस्थित करने का आदेश जारी करती है और उसे बंदी बनाए जाने का कारण पूछती है. अगर न्यायाधीश उसे बंदी बनाए जाने की वजहों से संतुष्ट नहीं होता है तो वह उसे छोड़ने का आदेश भी जारी कर सकता है. 

परमादेश या मैंडमस

परमादेश रिट या मैंडमस रिट. इसके द्वारा न्यायालय अधिकारी को आदेश देती है कि वह उस कार्य को करें जो उसके क्षेत्र अधिकार के अंतर्गत है.

रिट प्रतिषेध रिट या प्रोहेबिशन रिट

यह रिट किसी भी न्यायिक या अर्द्ध-न्यायिक संस्था के विरुद्ध जारी हो सकती है, इसके माध्यम से न्यायालय किसी न्यायिक या अर्द्ध-न्यायिक संस्था को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर निकलकर कार्य करने से रोकती है. 
प्रतिषेध रिट का मुख्य उद्देश्य किसी अधीनस्थ न्यायालय को अपनी अधिकारिता का अतिक्रमण करने से रोकना है. बता दें कि विधायिका, कार्यपालिका या किसी निजी व्यक्ति या निजी संस्था के खिलाफ इसका प्रयोग नहीं होता. 

उत्प्रेषण रिट 

स्टैचुअरी रिट किसी वरिष्ठ न्यायालय द्वारा किसी अधीनस्थ न्यायालय या न्यायिक निकाय जो अपनी अधिकारिता का उल्लंघन कर रहा है उसे रोकने के उद्देश्य से जारी की जाती है।
प्रतिषेध और उत्प्रेषण में एक अंतर है. प्रतिषेध रिट उस समय जारी की जाती है जब कोई कार्यवाही चल रही हो. इसका मूल उद्देश्य कार्रवाई को रोकना होता है, जबकि उत्प्रेषण रिट कार्रवाई समाप्त होने के बाद निर्णय समाप्ति के उद्देश्य से की जाती है.

अधिकार पृच्छा या क्वा वारंटो रिट-
 
यह रिट का आखिरी प्रकार है.  यह अवैधानिक रूप से किसी सार्वजनिक पद पर आसीन व्यक्ति के विरुद्ध जारी की जाती है.

यह भी पढ़ें: सबसे पहले माता-पिता, तब कोई भगवान, लड़की ने पसंद के लड़के से शादी की तो बोला कोर्ट

Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.

Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Zee News Hindi पर. Hindi News और India News in Hindi के लिए जुड़े रहें हमारे साथ.

TAGS

Trending news