CM Yogi News: उत्तर प्रदेश में इस समय उपचुनाव को लेकर चर्चा तेज है. इस बीच बंटेंगे तो कटेंगे नारे को लेकर हर ओर चर्चा हो रही है. जहां बीजेपी इसे एक प्रभावी नारा बता रही है तो वहीं सपा का कहना है कि ये भगवा पार्टी की निराशा के सिवाय कुछ नहीं.
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Uttar Pradesh News: 'बंटेंगे तो कटेंगे' नारे पर इस समय यूपी में जमकर सियासत हो रही है. बीजेपी जहां इस नारे का जमकर प्रचार कर रही है तो वहीं विपक्षी सपा को यह नारा रास नहीं आया है. समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस नारे को घटिया बताया है. इस पर बीजेपी ने भी जवाब दिया है. बीजेपी का कहना है कि बटेंगे तो कटेंगे नारे ने समाज को जागरूक करने का काम किया है. जब से यह नारा दिया गया है समाजवादी पार्टी समेत इंडिया गठबंधन के लोग निराश हो गए हैं. ये अखिलेश यादव की बेचैनी है कि वह सुबह उठते ही इस नारे के खिलाफ ट्वीट कर रहे हैं. ट्वीट में वे रामराज्य की कल्पना , भय और अभय की बात करने लगे हैं. इससे अच्छे दिन भला और क्या आएंगे कि जो कांग्रेस और सपा श्रीराम को नकारने का काम किया करती थी. राम राज्य का नाम लेने से घबराती थी. इस नारे ने उन्हें भारत की संस्कृति पर बात करने के लिए विवश कर दिया है. इस नारे ने अपना काम किया है और अखिलेश के ख्याली गुब्बारे की हवा निकाल देने का काम किया है.
आपको बता दें कि आज सुबह सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक ट्वीट कर बंटेंगे तो कटेंगे नारे पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि उनका (बीजेपी) का ‘नकारात्मक-नारा’ उनकी निराशा-नाकामी का प्रतीक है. इस नारे ने साबित कर दिया है कि उनके जो गिनती के 10% मतदाता बचे हैं अब वो भी खिसकने के कगार पर हैं, इसीलिए ये उनको डराकर एक करने की कोशिश में जुटे हैं लेकिन ऐसा कुछ होनेवाला नहीं. अखिलेश यादव ने आगे कहा , ‘नकारात्मक-नारे’ का असर भी होता है, दरअसल इस ‘निराश-नारे’ के आने के बाद, उनके बचे-खुचे समर्थक ये सोचकर और भी निराश हैं कि जिन्हें हम ताक़तवर समझ रहे थे, वो तो सत्ता में रहकर भी कमज़ोरी की ही बातें कर रहे हैं. जिस ‘आदर्श राज्य’ की कल्पना हमारे देश में की जाती है, उसके आधार में ‘अभय’ होता है; ‘भय’ नहीं. ये सच है कि ‘भयभीत’ ही ‘भय’ बेचता है क्योंकि जिसके पास जो होगा, वो वही तो बेचेगा.
सपा नेता ने कहा कि देश के इतिहास में ये नारा ‘निकृष्टतम-नारे’ के रूप में दर्ज होगा और उनके राजनीतिक पतन के अंतिम अध्याय के रूप में आख़िरी ‘शाब्दिक कील-सा’ साबित होगा. देश और समाज के हित में उन्हें अपनी नकारात्मक नज़र और नज़रिये के साथ अपने सलाहकार भी बदल लेने चाहिए, ये उनके लिए भी हितकर साबित होगा. एक अच्छी सलाह ये है कि ‘पालें तो अच्छे विचार पालें’ और आस्तीनों को खुला रखें, साथ ही बाँहों को भी, इसी में उनकी भलाई है. सकारात्मक समाज कहे आज का, नहीं चाहिए भाजपा!
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