Mahakumbh History: खूंखार नागा साधुओं की फौज, जब तलवारों-भालों और तोप लेकर अंग्रेजों पर टूट पड़े थे नागा
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Mahakumbh History: खूंखार नागा साधुओं की फौज, जब तलवारों-भालों और तोप लेकर अंग्रेजों पर टूट पड़े थे नागा

Mahakumbh History: इन दिनों प्रयागराज में महाकुंभ की रौनक देखते बन रही है. पूरी संगम नगरी में महा उत्सव की धूम है. ऐसे में दुनियाभर से लोग यहां आ रहे हैं. तमाम साधु-संतों का भी जमावड़ा है. ऐसे में क्या आप जानते हैं कि एक वक्त ऐसा था कि इस आयोजन पर भारी भरकम टैक्स लगा दिया गया था. ऐसा क्यों हुआ था जानने के लिए पढ़िए पूरी स्टोरी.

Mahakumbh History

Mahakumbh History: तीर्थराज प्रयागराज...जो कभी इलाहाबाद के नाम से मशहूर था. इन दिनों यहां अलग ही रौनक देखने को मिल रही है और ऐसा हो भी क्यों न आखिर 12 सालों के बाद यहां महाकुभ का भव्य आयोजन जो किया गया है. जिसे देखने और संगम में डुबकी लगाने के लिए दुनियाभर के तीर्थयात्रियों के साथ ही साधु-संतों का भी सैलाब उमड़ा हुआ है. इन तीर्थयात्रियों और साधु-संतों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए शासन-प्रशासन ने तमाम इंतजामात किए हैं, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था कि इस आयोजन पर भारी भरकम टैक्स लगाया गया था. जी हां, यह कहानी मुगलों और अंग्रेजों से जुड़ी हुई है.

किसने लगाया था टैक्स?
आज जो कुंभ का नजारा आप देख रहे हैं, वैसा हमेशा से नहीं था. कभी यहां इतनी भीड़ हुई कि पैर रखने की जगह नहीं बची तो कभी ऐसा भी हुआ कि कुंभ के दौरान सन्नाटा पसरा रहा. दरअसल, कुंभ में बड़ी संख्या में नागा संन्यासी जुटते हैं. उन्हें धर्म का योद्धा कहा जाता है. इस मौके पर सनातन की ताकत का प्रदर्शन भी किया जाता है. यहीं वजह है कि मुगल हों या अंग्रेज इस आयोजन से खौफ खाते थे. ऐसे में अकबर के शासन काल में कुंभ में कर लगा दिया गया था. ऐसा सिर्फ मुगल शासन काल में ही नहीं बल्कि अंग्रेजी हुकूमत में भी हुआ था. 

अंग्रेजी हुकूमत में कितना लगा टैक्स?
यह बात 1857 की क्रांति के बाद की है. जब अंग्रेजों के खिलाफ लोगों ने मोर्चा खोल दिया था तब अंग्रेज भी घबरा गए और उन्होंने कुंभ मेले में शामिल होने पर सवा रुपये का टैक्स लगा दिया था. उस जमाने में एक सामान्य परिवार 1 रुपये में महीने भर का राशन जुटा सकता था. ऐसे में सवा रुपया टैक्स भरना सामान्य व्यक्ति के लिए नामुमकिन था. कहा तो ये भी जाता है कि 1855 के कुंभ में ही 1857 की क्रांति की नींव रखी गई थी.

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क्यों लगाया गया था टैक्स?
रिपोर्ट्स की मानें तो जहां एक तरफ मुगल बादशाह अकबर ने हिंदुओं पर लगाए जाने वाले कर जजिया को खत्म किया था, तो वहीं दूसरी ओर अकबर ने प्रयागराज में कुंभ में शामिल होने पर टैक्स लगाया था. हालांकि, जब हिंदुओं ने इसका विरोध किया तो यह टैक्स वापस लेना पड़ा था. मुगलों के बाद जब अंग्रेजों का शासन आया तो वह भी कुंभ को लेकर खौफ खा गए थे. 1857 की क्रांति के बाद वह और ज्यादा घबरा गए. ऐसे में वे भारतीयों की भीड़ देखने को तैयार नहीं थे और कुंभ के आयोजन में भी सेंशरशिप लगाना चाहते थे. ऐसे में अंग्रेजी सरकार ने सुरक्षा के नाम पर प्रतिबंध थोप दिया. पंडों को आदेश दिया गया कि वे अपने टेंट में किसी भी नए यात्री को ना रुकने दें. 

क्यों डरते थे अंग्रेज?
रिपोर्ट्स की मानें तो 1857 की क्रांति चल ही रही थी और 1858 में प्रयाग में कुंभ लगा. जिसमें साधु-संतों के वेश में क्रांतिकारी कुंभ में घूम रहे थे. स्वतंत्रता सेनियों के लिए इस तरह के मेले ही लोगों को जागरुक करने के अच्छे माध्यम हुआ करते थे. जिससे अंग्रेज डर गए और संगम के आस-पास की जमीनों पर सरकार ने कब्जा कर लिया. ट्रेन-बसों की टिकटों पर रोक लगा दी. लोगों को कुंभ में आने से रोका जाने लगा. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर धनंजय चोपड़ा की किताब ‘भारत में कुंभ’ में बताया गया है कि ‘रानी लक्ष्मीबाई प्रयाग में एक पंडे के यहां ठहरी थीं. अंग्रेजों को इसकी खबर लग गई. पंडे को फांसी पर लटका दिया गया. लक्ष्मीबाई ग्वालियर लौट गईं, लेकिन अंग्रेजों की फौज उनके पीछे लगी रही. 

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रानी लक्ष्मीबाई से जुड़ी कहानी
ब्रिटिश फौज को कर्नल रेली लीड कर रहा था. अंग्रेजों और रानी के बीच मुठभेड़ हुई. इसी दौरान एक अंग्रेज सिपाही ने लक्ष्मीबाई पर तलवार से हमला कर दिया. वहीं, उपन्यासकार वृंदावन लाल वर्मा की किताब 'लक्ष्मी बाई द रानी ऑफ झांसी' में जिक्र हैं कि रानी की छाती के निचले हिस्से में गहरा घाव हो गया था. उन्होंने अपनी पगड़ी से बहते हुए खून को रोकना चाहा, लेकिन घाव गहरा था और खून नहीं रुका. फिर रानी आगे बढ़ीं और उस अंग्रेज सैनिक को मार गिराया. इसी बीच दूसरे सैनिक ने उनकी छाती पर गोली दाग दी. इसके बाद रानी घोड़े के पीठ पर गिर गईं.

रानी का अंतिम संस्कार 
रानी लक्ष्मीबाई को लेकर उनके वफादार सैनिक गुल मोहम्मद और रघुनाथ सिंह संत गंगादास की बड़ी शाला में पहुंचे. वहां गंगादास और सैकड़ों नागा साधु रहते थे. रानी को देखते ही गंगादास पहचान गए, क्योंकि रानी उन्हीं की शिष्या थीं. हालांकि, तमाम कोशिशों के बाद भी रानी को नहीं बचाया जा सका. उधर, शाला (आश्रम) परिसर में ब्रिटिश फौज भी आ धमकी. जिसे देख गंगादास ने आदेश दिया कि अंग्रेजों को रोका जाए, ताकि रानी का अंतिम संस्कार हो पाए. 

अंग्रेजों पर नागा साधुओं का हमला
आदेश मिलते ही वहां मौजूद नागा साधुओं ने तलवार और भाले उठा लिए. तब मठ में दो हजार नागा साधु थे. सभी शस्त्र चलाना जानते थे. उन्हें तोप चलाना भी आता था. उन नागा साधुओं ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए शाला में रखी दो फुट की तोप निकाली. उसे खिड़की पर लगाया और बारूद भरकर कई अंग्रेजों को मार गिराया. ये तोप अकबर ने गंगादास के गुरु परमानंद महाराज को दी थी. अंग्रेज ये देखकर हैरान रह गए कि माला फेरने वाले संन्यासी तलवार, भाला और तोप चला रहे हैं. 

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