Karnataka Govt: सिद्धारमैया ने कहा कि रिपोर्ट गुरुवार को कैबिनेट बैठक में पेश की जानी थी लेकिन अब इसे अगले हफ्ते के लिए स्थगित कर दिया गया है. इस फैसले का कोई ठोस कारण नहीं बताया गया है. उधर उनके एक मंत्री ने बयान दिया कि गुरुवार की बैठक में इसे जरूर रखा जाएगा.
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Karnataka caste census: जाति जनगणना पर पिछले काफी समय राजनीतिक विमर्श तेज है साथ ही राज्य सरकारों के बीच भी इसको लेकर हलचल मची हुई है. इन सबके बीच कर्नाटक सरकार ने 'कर्नाटक सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण' रिपोर्ट को पेश करने का फैसला फिर टाल दिया है. इसी रिपोर्ट को जाति जनगणना कहा जाता है. हुआ यह कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने दिल्ली में कहा कि यह रिपोर्ट गुरुवार को कैबिनेट बैठक में पेश की जानी थी लेकिन अब इसे अगले हफ्ते के लिए स्थगित कर दिया गया है. इस फैसले का कोई ठोस कारण नहीं बताया गया है. शायद यही वजह है कि इस अचानक निर्णय को लेकर कई कयास लगाए जा रहे हैं.
दरअसल, टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक बुधवार को यह घोषणा तब आई जब राज्य के गृह मंत्री जी परमेश्वर ने कहा कि रिपोर्ट एक सील किए हुए लिफाफे में है जिसे गुरुवार की बैठक में खोला जाएगा. परमेश्वर ने बताया कि जनगणना पर सरकार ने 160 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं. इसलिए इस जानकारी को सार्वजनिक करना सरकार का कर्तव्य है. हालांकि रिपोर्ट को लागू करना सरकार के विवेक पर निर्भर है.
रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया कि रिपोर्ट को टालने का फैसला कांग्रेस के उच्च नेतृत्व के दबाव और पार्टी में प्रभावशाली लिंगायत और वोक्कालिगा नेताओं के विरोध के कारण लिया गया है. इन दोनों प्रमुख समुदायों के प्रतिनिधियों को आशंका है कि रिपोर्ट के आखिरी रिजल्ट उनकी जनसांख्यिकीय ताकत को कमजोर कर सकते हैं.
उधर हालांकि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने दिल्ली में कांग्रेस कार्यालय के उद्घाटन के दौरान इन अटकलों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि कुछ लोग रिपोर्ट का विरोध कर रहे हैं जबकि उन्होंने इसके बारे में कुछ नहीं देखा है और ना ही इसका कोई भी कंटेंट देखा भी नहीं है. उन्होंने बताया कि यह डेटा अभी सार्वजनिक नहीं हुआ है और बिना जानकारी के विरोध करना अनुचित है.
यह तो मालूम है कि जाति जनगणना की शुरुआत 2015 में सिद्धारमैया के पिछले कार्यकाल में हुई थी और 2016 में इसे पूरा किया गया था. लेकिन यह रिपोर्ट तब से लंबित है. 2020 में बीजेपी सरकार ने इसे लेकर एक रिपोर्ट जमा कराई जिसके अनुसार लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों की संख्या कम और अन्य समुदायों की संख्या अधिक दिखाई गई. इसके चलते आरक्षण और संसाधन आवंटन पर संभावित असर को लेकर असंतोष बढ़ गया है.
इतना ही नहीं जहां दलित और ओबीसी समूह रिपोर्ट को लागू करने की मांग कर रहे हैं, वहीं लिंगायत और वोक्कालिगा नेताओं ने इसे अवैज्ञानिक कहकर खारिज किया है. जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी ने तो सरकार पर आरोप लगाया कि यह रिपोर्ट राजनीतिक तौर पर प्रभावशाली समुदायों को कमजोर करने की कोशिश है. उन्होंने कहा कि सरकार को जाति आधारित आंकड़ों पर ध्यान देने के बजाय गरीबों की पहचान और कल्याणकारी योजनाओं के लाभ पहुंचाने पर काम करना चाहिए.