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DNA With Sudhir Chaudhary: अब हम आपको दवाओं को सरकारी Approval देने के एक नए Scam के बारे में बताएंगे, जिसमें CBI ने भारत सरकार की एक Drug Authority के कुछ अधिकारियों को गिरफ्तार किया है. ये अधिकारी रिश्वत लेकर दवाओं को मंजूरी दिलाते थे. इस Scam में मशहूर Pharma Company Biocon के कर्मचारियों को भी गिरफ्तार किया गया है. आप सब बड़ी-बड़ी Pharma कम्पनियों के विज्ञापन देखकर बहुत भरोसे के साथ इनकी दवाइयां खरीदते हैं. लेकिन इस Scam से ये पता चलता है कि Sub Standard दवाइयों को भी रिश्वत खिला कर बाजार में बेचने की मंजूरी ली जा सकती है. सबसे खास बात ये है कि ये दवाई Diabetes की थी. अब आप कल्पना कीजिए आपने Diabetes जैसी किसी गम्भीर बीमारी की कोई दवा ली और वो आप पर असर नहीं कर रही. क्योंकि उस दवा में मिलावट है. अब तक आपने अंजाने में ना जाने ऐसी कितनी ही दवाइयों और Health Products का इस्तेमाल किया होगा.
इन कम्पनियों से जुड़ा है मामला
ये पूरा मामला जिस कम्पनी से जुड़ा है, उसका नाम है... Biocon Biologics Limited और इस कम्पनी की फाउंडर हैं, किरण मजूमदार शॉ, जो भारत की सबसे पहली महिला उद्योगपतियों में से एक हैं. ये कम्पनी दवाइयां बनाती है और इस समय दुनिया के 120 देशों में इस कम्पनी के द्वारा दवाइयों का निर्यात किया जाता है. हाल ही में CBI ने इस कम्पनी के Associate Vice President, जिनका नाम है, एल. प्रवीण कुमार, उन्हें गिरफ्तार किया है. इसके अलावा CBI ने चार और लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें दो अधिकारी Central Drugs Standard Control Organisation यानी CDSCO में सरकारी पद पर तैनात हैं. भारत में जो नई दवाइयां बनाई जाती हैं, उनसे जुड़े डेटा की जांच इसी सरकारी एजेंसी द्वारा किया जाता है.
9 लाख रुपये की रिश्वत, लोगों की जान से खिलवाड़
इसके अलावा इस मामले में जिस एक महिला को गिरफ्तार किया गया है, वो एक रिसर्च कम्पनी की डायरेक्टर है और इस कम्पनी का नाम है, Bio-innovat. अब इन सभी लोगों पर ये आरोप है कि इन्होंने एक दवा को Emergency Use की मंजूरी दिलाने के लिए सरकारी दिशा निर्देशों और कानूनों का उल्लंघन किया और इस दौरान सरकारी अफसरों को 9 लाख रुपये की रिश्वत भी दी गई. इस पूरे बिजनेस मॉडल में ये सभी लोग एक दूसरे से जुड़े हुए थे. इस मामले में जो FIR दर्ज हुई है, उसके मुताबिक, Biocon नाम की ये कम्पनी बाजार में अपनी एक दवा लॉन्च करना चाहती थी. इस दवा का नाम है, Insulin Aspart. जिन लोगों को Diabetes की बीमारी है, ये दवा उन लोगों के लिए है.
भारत में Diabetes के 7 करोड़ से ज्यादा मरीज
इस समय चीन के बाद भारत में Diabetes के सबसे ज्यादा 7 करोड़ 70 लाख मरीज हैं. यानी दुनिया में Diabetes के हर 6 मरीजों में से एक मरीज भारत का है. और इससे आप समझ सकते हैं कि ये खबर कितनी गम्भीर है. इस कम्पनी ने इस दवा का पहले, दूसरे और तीसरे चरण का ट्रायल भारत में नहीं बल्कि अमेरिका और जर्मनी में किया था. FIR में लिखा है कि इसके आधार पर ये कम्पनी चाहती थी कि भारत में इसे तीसरे चरण के ट्रायल से छूट दे दी जाए और इस दवा को Emergency Use की श्रेणी में मंजूरी मिल जाए, ताकि ये कम्पनी इस दवा को बाजार में बेच सके.
ऐसे मिल गई बाजार में बेचने की मंजूरी
इसके लिए इस कम्पनी ने Bio-innovat नाम की एक दूसरी कम्पनी से सम्पर्क किया, जिसकी मदद से Drug अथॉरिटी के सरकारी अधिकारियों को 9 लाख रुपये की रिश्वत ऑफर की गई. जब इस अथॉरिटी के एक प्रमुख अधिकारी, जिनका नाम है, एस. ईश्वरा रेड्डी, वो इसके लिए तैयार हो गए तो इस कम्पनी की इस दवा को बिना ट्रायल के नतीजे दिखाए और बिना कोई ठोस आधार के ही Emergency Use की मंजूरी दे दी गई.
रंगे हाथों गिरफ्तार हुआ अफसर
यानी जिस दवा का भारत में तीसरे चरण का ट्रायल भी नहीं हुआ, उस दवा को सिर्फ 9 लाख रुपये की रिश्वत देकर इस कम्पनी ने मंजूरी दिला दी. सोचिए, ये कितनी खतरनाक बात है. हालांकि, CBI ने इस मामले में तुरंत कार्रवाई करते हुए सरकारी अफसर एस. ईश्वरा रेड्डी को रिश्वत के चार लाख रुपये लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया. जिससे ये पूरा नेटवर्क एक्सपोज हो गया.
पहले से तय थी मंजूरी की बात
हालांकि, यहां बात सिर्फ इतनी नहीं है. इस मामले में ऐसी बहुत सी चीजें हुई हैं, जिससे दवाओं को मिलने वाली मंजूरी पर अब गम्भीर सवाल खड़े हो रहे हैं. जैसे- आरोप है कि 18 मई को जब इस सरकारी एजेंसी की Subject Expert Committee की बैठक हुई तो इसमें ये बात पहले से फिक्स थी कि इस कंपनी की दवा को इस्तेमाल के लिए मंजूरी दे दी जाएगी. मीटिंग के दस्तावेज में चौथे पॉइंट के सामने ये लिखा है कि Subject Expert Committee ने तय किया है कि वो Biocon कम्पनी को उसकी दवा के तीसरे चरण के ट्रायल से छूट देती है और इस फैसले के बाद ये कम्पनी इस दवा को भारतीय बाजारों में बेच भी सकती है और इसका दूसरे देशों में निर्यात भी कर सकती है. इसके अलावा इसमें ये भी लिखा है कि इस कम्पनी को ये बताना होगा कि वो चौथे चरण का ट्रायल कैसे करेगी. इसके लिए Submit The Protocol शब्द का इस्तेमाल किया गया है. जबकि Protocol की जगह यहां Data शब्द होना चाहिए था. ये बात हम अपनी तरफ से नहीं कह रहे हैं. ये बात FIR में दर्ज है.
ऐसे होता है शब्दों का खेल
यानी अगर यहां Data लिखा होता तो इस कम्पनी को बताना पड़ता कि उसने कितने लोगों पर ये दवा इस्तेमाल की. ट्रायल के नतीजे क्या रहे. ट्रायल में ये दवा कितनी प्रभावी साबित हुई. लेकिन इसकी जगह Protocol शब्द का इस्तेमाल किया गया, जिसका मतलब ये होता है कि इस दवा के लिए कब कैसे और कहां ट्रायल किया जाएगा. ये सारा कमाल रिश्वत के 9 लाख रुपये की वजह से हुआ.
अमेरिका ने नहीं दी मंजूरी
बड़ी बात ये है कि, इस कम्पनी का कहना है कि उसने अमेरिका और जर्मनी में इस दवा का तीन चरणों में ट्रायल किया था. और ये बात सही है. लेकिन ये बात भी उतनी ही सच है कि अमेरिका की Drug Regulator Agency (FDA) ने इसी दवा को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था. इस कंपनी को एक Complete Response Letter भी जारी किया था. इस बात की जानकारी खुद इस कम्पनी ने 7 जनवरी को दी थी. हालांकि इस मामले में इस कम्पनी की तरफ से 21 जून को एक बयान जारी किया गया है, जिसमें तीन बड़ी बातें कही गई हैं. पहला- इस कम्पनी ने रिश्वत देने के सभी आरोपों से इनकार किया है. दूसरा- इसमें ये लिखा है कि इस दवा से जुड़े तमाम Trials का पूरी तरह से पालन किया. तीसरा- इस कंपनी का ये भी कहना है कि उसे तीसरे चरण के ट्रायल से जो छूट दी गई, वो पूरी तरह से भारतीय कानूनों के अनुरूप है.
भारत के Pharma Sector की इमेज से खिलवाड़
वर्ष 2021-22 में भारत ने एक लाख 83 हजार करोड़ की दवाइयां दूसरे देशों में निर्यात की थीं. आज भारत में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी Pharma Industry है, जो 3 लाख 27 हजार करोड़ रुपये की है. अनुमान है कि 2030 तक ये लगभग साढ़े 9 लाख करोड़ रुपये की हो जाएगी. भारत में इस समय तीन हजार से ज्यादा Pharma कम्पनियां हैं और आज दुनिया की 60 प्रतिशत Vaccines का निर्माण और अमेरिका में बेची जाने वाली 40 प्रतिशत Generic Medicine भारत से ही निर्यात होती है. यानी आज भारत के पास Pharma Industry के रूप में एक बहुत बड़ी ताकत है. दुनिया भारत की इस ताकत पर भरोसा करती है. लेकिन इस तरह की घटनाएं भारत के Pharma Sector पर बने भरोसे को कम करती हैं. दवाओं का जो कारोबार होता है, वो विश्वास पर चलता है. लोग Germany की महंगी गाड़ियां इसलिए खरीदते हैं क्योंकि उन्हें इन गाड़ियों और इन्हें बनाने वाली कम्पनियों पर भरोसा है. और इसी तरह दुनिया भारत से इसलिए दवाइयां खरीदते हैं क्योंकि भारत ने इस क्षेत्र में अद्भुत काम करके दिखाया है और एक भरोसा कायम किया है. लेकिन सोचिए, अगर ये भरोसा ही नहीं होगा तो भारत Pharma Industry की इस ताकत को कैसे बरकरार रख पाएगा?
#DNA : दवाओं को सरकारी मंज़ूरी देने का नया घोटाला!@sudhirchaudhary @shivank_8mishra
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— Zee News (@ZeeNews) June 23, 2022