Borewell Accidents: मासूमों की मौत का सिलसिला कब थमेगा, लापरवाही के गड्ढों में कब तक समाती रहेगी जिंदगी?
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Borewell Accidents: मासूमों की मौत का सिलसिला कब थमेगा, लापरवाही के गड्ढों में कब तक समाती रहेगी जिंदगी?

Borewell Accidents: बोरवेल में गिरने के हादसे भारत में कोई नई बात नहीं है. कुछ दिन पहले ही राजस्थान के कोटपूतली में बोरवेल में गिरी तीन साल की मासूम चेतना 220 घंटे चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद भी बचाई नहीं जा सकी.

Borewell Accidents: मासूमों की मौत का सिलसिला कब थमेगा, लापरवाही के गड्ढों में कब तक समाती रहेगी जिंदगी?

Borewell Accidents: बोरवेल में गिरने के हादसे भारत में कोई नई बात नहीं है. कुछ दिन पहले ही राजस्थान के कोटपूतली में बोरवेल में गिरी तीन साल की मासूम चेतना 220 घंटे चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद भी बचाई नहीं जा सकी. यह घटना पूरे प्रदेश और देश को झकझोरने वाली थी. इससे पहले 2016 में राजगढ़ के वेवर गांव में सात साल की कोमल को 192 घंटे चले ऑपरेशन के बावजूद नहीं बचाया जा सका. सवाल यह है कि आखिर कब तक मासूमों की जान यूं ही लापरवाही के गड्ढों में जाती रहेगी?

सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस की अनदेखी

सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में खुले बोरवेल और ट्यूबवेल को लेकर सख्त गाइडलाइंस जारी की थीं. इनमें बोरवेल के मुंह को स्टील की प्लेट से ढकने.. खुदाई के दौरान फेंसिंग करने और काम खत्म होने के बाद गड्ढों को भरने जैसे निर्देश दिए गए थे. लेकिन इनका पालन शायद ही होता है. अगर इन नियमों को गंभीरता से लागू किया जाता तो शायद चेतना, कोमल और अन्य मासूमों की जान नहीं जाती.

प्रशासन की कार्रवाई और जनता की जिम्मेदारी

कोटपूतली की घटना के बाद जयपुर जिला प्रशासन ने जिले भर में 1,897 खुले बोरवेल और कुओं को बंद कराया. हालांकि, यह कदम प्रशंसा के योग्य है लेकिन यह घटना के बाद उठाया गया एक रिएक्टिव कदम है. प्रशासन के साथ-साथ स्थानीय लोगों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने क्षेत्रों में खुले बोरवेल को कवर करें. मात्र 1,000 रुपये का ढक्कन किसी मासूम की जान बचा सकता है.

पिछले हादसों से सबक क्यों नहीं?

बोरवेल में गिरने की घटनाएं हर साल सामने आती हैं. 2006 में हरियाणा के प्रिंस का मामला देशभर में चर्चा का विषय बना था. इसके बावजूद बोरवेल के गड्ढों में गिरने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. 2015 में सीकर, दौसा और अलवर में मासूमों के बोरवेल में गिरने की घटनाएं हुईं. कुछ मामलों में बच्चे बच गए लेकिन अधिकतर बार रेस्क्यू ऑपरेशन के बावजूद उनकी जान नहीं बचाई जा सकी.

खुले बोरवेल के पीछे का कारण

खेतों में बोरवेल खोदने वाले किसान अक्सर इन्हें खुला छोड़ देते हैं. पानी खत्म होने पर वे पाइप और पंप निकाल लेते हैं. लेकिन गड्ढे को भरने या ढकने के खर्च से बचने के लिए इसे खुला छोड़ देते हैं. उन्हें लगता है कि खेतों में बच्चे नहीं आते.. लेकिन यह लापरवाही मासूमों की जान ले लेती है.

क्या हो सकते हैं ठोस उपाय?

सख्त नियमों का पालन: बोरवेल और ट्यूबवेल खोदने वाले मालिकों पर जुर्माने का प्रावधान किया जाए.
स्थानीय जागरूकता: पंचायत, विधायक और सांसद अपने क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाएं.
समयबद्ध कार्रवाई: सरकार को तीन से छह महीने में सभी खुले बोरवेल बंद कराने के लिए समय सीमा तय करनी चाहिए.
सस्ती सुरक्षा: खुले बोरवेल को ढकने के लिए सस्ते और टिकाऊ ढक्कन उपलब्ध कराए जाएं.

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