Bihar Chunav 2025: सहयोगी दल कांग्रेस को आंखें दिखा रहे हैं पर कांग्रेस की जमीर है कि जाग ही नहीं रही है. इंडिया ब्लॉक के नेतृत्व का मसला हो या फिर दिल्ली चुनाव, कांग्रेस की भद पिटवाने में सहयोगी दलों ने कोई कसर नहीं छोड़ी पर कांग्रेस है कि अपने ही नेताओं को तड़ीपार कर गई है.
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Bihar Politics: कांग्रेस पिछले 25 सालों से बिहार में वहीं करती आ रही थी, जो राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव चाहते थे. यहां तक कि बिहार प्रदेश अध्यक्ष़ के चुनाव में भी लालू प्रसाद यादव का बराबर दखल रहता था. लोकसभा चुनाव या विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कहां से किस प्रत्याशी को टिकट देने जा रही है, लालू प्रसाद यादव उसकी भी खोज खबर रखते थे और जरूरत पड़ने पर दखल भी देते थे. यही नहीं, कई बार वीटो पावर का इस्तेमाल कर प्रत्याशी बदलने को मजबूर कर देते थे. लोकसभा चुनाव 2024 में हम सब यह देख चुके हैं कि कैसे पप्पू यादव को पूर्णिया से कांग्रेस का टिकट नहीं मिल पाया था और कन्हैया कुमार को बिहार से पलायन कर उत्तर पूर्वी दिल्ली सीट से चुनाव मैदान में कूदना पड़ा था. अब अंदरखाने से जो खबरें आ रही हैं, उसकी मानें तो राहुल गांधी विधानसभा चुनाव 2025 से पहले बिहार कांग्रेस में अपनी तरकश के 2 ऐसे तीर छोड़ने जा रहे हैं, जिससे लालू प्रसाद यादव लाल पीले हो सकते हैं.
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अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर राहुल गांधी की तरकश में वो कौन से 2 तीर हैं, जो बिहार की राजनीति के माहिर खिलाड़ी राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को भी बेचैन कर सकते हैं. कन्हैया कुमार और पप्पू यादव... जी हां, ये 2 नेता लालू प्रसाद यादव को बेचैन करने के लिए काफी हैं. दरअसल, बिहार में एनडीए के जवाब के रूप में लालू प्रसाद यादव विपक्ष से किसी नेता को उभरने नहीं देना चाहते. अगर कोई नेता उभरता है तो इसका सीधा खतरा राजद और तेजस्वी यादव को हो सकता है, लालू प्रसाद यादव यह बात अच्छी तरह समझते हैं.
इसलिए लालू प्रसाद यादव के कहने पर कांग्रेस में शामिल होने के बाद भी पप्पू यादव को पूर्णिया से टिकट नहीं मिला और वे निर्दलीय चुनाव लड़ने पर मजबूर हो गए थे. पप्पू यादव को हराने के लिए तेजस्वी यादव ने पूर्णिया में कैंप किया था और अपील की थी कि भले ही भाजपा को वोट दे देना पर पप्पू यादव को वोट नहीं पड़ना चाहिए. हालांकि तेजस्वी यादव की अपील के बाद भी पप्पू यादव डंके की चोट पर पूर्णिया से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे.
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अब बात करते हैं कन्हैया कुमार की. कन्हैया कुमार युवा नेता हैं और देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी जेएनयू से पढ़ाई लिखाई करके राजनीति में आए हैं. राजनीति की शुरुआत उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से की थी और बेगूसराय से 2019 के चुनाव मैदान में भी उतरे थे, लेकिन मात खा गए थे. 2024 में भी कन्हैया कुमार बेगूसराय से ही चुनाव मैदान में कांग्रेस के टिकट पर उतरना चाहते थे पर लालू प्रसाद यादव ने ऐसा होने नहीं दिया.
लालू प्रसाद यादव जानते हैं कि कन्हैया कुमार अगर बिहार की राजनीति में आ गए तो फिर सबसे बड़ा खतरा तेजस्वी यादव को हो सकता है. इसलिए उन्होंने वीटो पावर का इस्तेमाल कर कन्हैया कुमार को बिहार से बाहर की राजनीति करने पर मजबूर कर दिया. बाद में कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को दिल्ली की उत्तर पूर्वी सीट से चुनाव मैदान में उतारा लेकिन वहां वे भाजपा के मनोज तिवारी से मात खा गए थे. इन दोनों बानगियों को परखें तो यह पता चलता है कि लालू प्रसाद यादव राजद और अपने बेटे तेजस्वी यादव की भविष्य के लिए काफी सचेत प्रतीत होते हैं.
इसके उलट कांग्रेस बिहार जैसे हिन्दी पट्टी वाले प्रदेश में अपने भविष्य को लेकर उदासीन दिखती है. लालू प्रसाद यादव ने तो राजद के भविष्य को बचाने के लिए पप्पू यादव और कन्हैया कुमार का काम लगवा दिया लेकिन कांग्रेस ने अपने भविष्य के लिए क्या किया. लालू प्रसाद यादव को खुश करने के लिए वह अपने ही नेताओं को इधर उधर शिफ्ट होने पर मजबूर होती रही. क्या कांग्रेस नहीं चाहती कि बिहार जैसे राज्य में कांग्रेस मजबूत हो? अगर वह ऐसा करना चाहती है तो वह अपने ही नेताओं को दरबदर की ठोकरें खाने को क्यों मजबूर कर रही है?
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अगर राहुल गांधी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मजबूत होते देखना चाहते हैं तो उन्हें पप्पू यादव को फौरन कांग्रेस में शामिल करना चाहिए और कन्हैया कुमार को अभी से ही बिहार की राजनीति में फील्डिंग के लिए उतार देना चाहिए. अगर अभी से कांग्रेस ऐसा करती दिखाई देती है तो चुनाव में उसे जबर्दस्त फायदा हो सकता है अन्यथा राजद की पिछलग्गू बनकर वह राजनीति तो कर ही रही है. अब यह राहुल गांधी को तय करना है कि कांग्रेस को बिहार में पुनर्जीवित करने के लिए गंभीर हैं या नहीं.