Bihar Chunav 2025: एनडीए बनाम महागठबंधन... 2025 की लड़ाई का यही सच्चाई है. प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम मुकाबले को त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय बनाने की पूरी कोशिश करेंगे पर यह देखना होगा कि इनको अपने मकसद में कितनी सफलता मिलती है.
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Bihar Chunav 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद अब सभी की नजरें बिहार विधानसभा चुनाव की ओर टिक गई हैं. हालांकि बिहार के चुनाव में अभी 9 महीने का समय बाकी है. फिर भी राजनीतिक दलों की ओर से कसरत शुरू हो गई है. बयानबाजियां तेज हो गई हैं, नसीहतें दी जा रही हैं और शतरंज के मोहरे सेट किए जा रहे हैं. बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए और राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के बीच मुख्य मुकाबला हो सकता है. प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम मुकाबले को त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय बनाने की कोशिश कर सकते हैं. इसके अलावा मायावती के नेतृत्व वाले बहुजन समाज पार्टी ने भी बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. यह भी संभव है कि बिहार में एनडीए और महागठबंधन के बीच आमने सामने की लड़ाई को बाकी दलों का गठबंधन त्रिकोणीय बनाने की कोशिश करे.
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बिहार विधानसभा चुनाव, 2020 की बात करें तो उस समय एनडीए के खेमे में भारतीय जनता पार्टी के अलावा जनता दल यूनाइटेड, हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी शामिल थे. तब उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन का हिस्सा थे. महागठबंधन के खेमे की बात करें तो सबसे बड़े दल के रूप में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, वाम दल और तत्कालीन राष्ट्रीय लोक समता पार्टी शामिल थी. आज दोनों गठबंधनों में थोड़ा परिवर्तन हुआ है. एनडीए में भाजपा, जेडीयू और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा यथावत हैं तो मुकेश साहनी अब महागठबंधन का हिस्सा बन चुके हैं. वहीं उपेंद्र कुशवाहा अब एनडीए का हिस्सा हैं और अब उनकी पार्टी का नाम राष्ट्रीय लोक मोर्चा हो चुका है.
2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी लोजपा ने अकेले अपने दम पर विधानसभा चुनाव लड़ा था और वह महज एक सीट जीतने में कामयाब रही थी. बाद में लोजपा में विभाजन हो गया और चिराग पासवान वाले धड़े का नाम लोजपा रामविलास कर दिया गया. वहीं दूसरा खेमा राष्ट्रीय लोजपा हो गया, जो पशुपति कुमार पारस के हवाले है. इस बार पशुपति कुमार पारस ने एनडीए के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है और खिंचड़ी भोज पर उन्होंने लालू प्रसाद यादव को अपनाया था और वह अपने लिए महागठबंधन में मंजिल तलाश रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में लोजपा 137 सीटों पर लड़ी थी और केवल एक सीट पर जीत हासिल की थी. 9 सीटों पर लोजपा के प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे थे.
2020 के विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने राजद को बड़ा धक्का देते हुए सीमांचल की 5 विधानसभा सीटें जीतने में सफलता हासिल कर ली थी. जानकार कहते हैं कि अगर ओवैसी फैक्टर काम न करता तो आज तेजस्वी यादव बिहार के मुख्यमंत्री होते. इसमें कोई शक भी नहीं है कि ओवैसी फैक्टर सीमांचल इलाके में आज भी मजबूत है. इसलिए असदुद्दीन ओवैसी अपनी इस ताकत को हर हाल में बनाए रखने की कोशिश करते हैं. हालांकि लोकसभा चुनाव में ओवैसी कोई खास कमाल नहीं दिखा पाए थे. इसी तरह पप्पू यादव के नेतृत्व वाले जन अधिकार पार्टी ने भी 33 सीटों पर भाग्य आजमाए थे, लेकिन उनकी पार्टी कोई खास कमाल नहीं दिखा पाई थी. पप्पू यादव की पार्टी का बिहार की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया के अलावा और भी दलों का गठबंधन था, जिसे पीडीए (Progressive Democretic Alliance) नाम दिया गया था.
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5 साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में एक पार्टी की बहुत जोर शोर से चर्चा हुई थी, लेकिन जब नतीजे सामने आए तब वह पार्टी हवा हो गई और उसके बाद से आज तक वह पार्टी चर्चा में नहीं आ पाई. उस पार्टी का नाम था, प्लूरल्स पार्टी. यह लंदन रिटर्न पुष्पम प्रिया चौधरी की पार्टी है, जो आज की तारीख में केवल सोशल मीडिया पर जिंदा दिखती है. नीतीश कुमार की सत्ता के खिलाफ बिगुल फूंकने वाली प्लूरल्स पार्टी ने पूरे 5 साल में जमीन पर उतरकर जनता के लिए किसी भी मुद्दे के लिए कोई संघर्ष नहीं किया. यहां तक कि एक धरना प्रदर्शन का भी आयोजन नहीं किया. यह पार्टी बस किसी घटना, दुर्घटना, परीक्षा, नकल, पेपर लीक आदि मुद्दे पर अपनी राय रखती रही है. देखना यह है कि इस बार के चुनाव में प्लूरल्स पार्टी को उम्मीदवार भी मिल पाते हैं या नहीं.