स्ट्रोक का नाम सुनते ही दिमाग में लकवा, बोलने में परेशानी, सुन्न हो जाना और आंखों की रोशनी कम होने जैसे लक्षण घूमने लगते हैं. लेकिन असल में स्ट्रोक कई बार दबे पांव आक्रमण कर लेता है.
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स्ट्रोक का नाम सुनते ही दिमाग में लकवा, बोलने में परेशानी, सुन्न हो जाना और आंखों की रोशनी कम होने जैसे लक्षण घूमने लगते हैं. लेकिन असल में स्ट्रोक कई बार बिना किसी स्पष्ट लक्षण के भी दबे पांव आक्रमण कर लेता है. ऐसे 'साइलेंट स्ट्रोक' (Silent Stroke) को पहचान पाना मुश्किल होता है, जिससे भविष्य में बड़ा खतरा बन सकता है.
आमतौर पर माना जाता है कि स्ट्रोक का हमेशा कोई ना कोई लक्षण दिखता है. लेकिन शोध बताते हैं कि कई बार लोग बिना किसी चेतावनी के साइलेंट स्ट्रोक का शिकार हो जाते हैं. कुछ एक्सपर्ट के मुताबिक, बिना लक्षणों वाले स्ट्रोक उम्मीद से कहीं ज्यादा आम हैं. साइलेंट स्ट्रोक आमतौर पर दिमाग के ऐसे हिस्सों में होता है, जो दिखने वाले कामों जैसे बोलना या हिलना-डुलना नहीं नियंत्रित करते. इसलिए कई बार लोगों को पता ही नहीं चलता कि उन्हें चुपचाप स्ट्रोक हो चुका है.
स्ट्रोक के गंभीर परिणाम
लक्षण ना हों, इसका मतलब ये नहीं कि ये खतरनाक नहीं हैं. साइलेंट स्ट्रोक से कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जैसे भविष्य में बड़े स्ट्रोक का जोखिम बढ़ जाता है, दिमाग को स्थायी नुकसान पहुंच सकता है, मेमोरी और सोचने-समझने की क्षमता कम हो सकती है और कुछ मामलों में जान तक जा सकती है. इसके अलावा, इससे वस्कुलर डिमेंशिया (Vascular Dementia) जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है.
क्या स्ट्रोक से हुए नुकसान को ठीक कर सकते हैं?
साइलेंट स्ट्रोक से हुए नुकसान को पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन स्ट्रोक सर्वाइवर्स थेरेपी के जरिए अपनी स्थिति को सुधार सकते हैं और भविष्य में होने वाले स्ट्रोक को रोकने के लिए स्वस्थ आदतें अपना सकते हैं. ये धारणा भी गलत है कि स्ट्रोक हमेशा लकवा लेकर आता है. हालांकि स्ट्रोक से लकवा होना आम है, लेकिन सभी स्ट्रोक सर्वाइवर्स को इससे ग्रस्त नहीं होना पड़ता. शोध बताते हैं कि 65 साल से अधिक उम्र के आधे से ज्यादा स्ट्रोक सर्वाइवर्स को हिलने-डुलने में दिक्कत होती है. लेकिन स्ट्रोक के लंबे प्रभाव कई कारकों पर निर्भर करते हैं, जैसे दिमाग का कौन सा हिस्सा प्रभावित हुआ और कितना नुकसान हुआ.
कैसे कम करें खतरा?
भविष्य में होने वाले स्ट्रोक को पूरी तरह से रोकना मुश्किल है, लेकिन कुछ सावधानी बरतकर साइलेंट स्ट्रोक के जोखिम को कम किया जा सकता है. डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, धूम्रपान, ब्लड वेसेल्स की समस्याएं आदि स्ट्रोक के प्रमुख रिस्क फैक्टर हैं. इनको कम करने के लिए स्वस्थ वजन बनाए रखना, ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करना, नियमित व्यायाम करना और दिल के लिए लाभदायक आहार अपनाना सबसे महत्वपूर्ण कदम हैं. स्वस्थ आदतों को नियमित रूप से अपनाकर अपने और अपने परिवार के भविष्य के लिए जोखिम कम करें.