Mission Raniganj Film Review: कोयला खदान में पल-पल तेजी से घुसता हजारों गैलन पानी और वहां फंसे दर्जनों खनिक. कोयला खदानों के इतिहास में ऐसी तमाम घटनाएं दर्ज हैं, लेकिन 1989 की एक घटना पर अक्षय कुमार की यह फिल्म आधारित है. जिसमें करीब 70 लोगों को जिंदा निकाला गया...
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Mission Raniganj Movie Review: मिशन रानीगंजः द ग्रेट भारत रेस्क्यू की कहानी सबको पता है. रियल लाइफ के हादसे और बचाव कार्य पर बनी इस फिल्म में अगर कुछ आकर्षण का केंद्र हो सकता है, तो यही कि कैसे इस पूरी घटना को निर्देशक ने पर्दे पर दिखाया है. साथ ही यह भी कि अक्षय कुमार इसमें किस तरह से बचाव मिशन को लीड करते हैं और हीरो की तरह उभरते हैं. ऐसे में यह फिल्म पूरी तरह से अक्षय कुमार के उन फैन्स (Aksahy Kumar Fans) के लिए है, जो उनमें नए जमाने के ‘भारत कुमार’ (Bharat Kumar) की छवि देखते हैं. इसके अलावा अगर आपकी रुचि सच्ची घटनाओं पर बनी फिल्म देखने में है, तब भी मिशन रानीगंज आपको निराश नहीं करेगी.
सच्ची घटना पर्दे पर
फिल्म की कहानी 1989 की सच्ची घटना पर आधारित है. जब पश्चिम बंगाल (West Bengal) के रानीगंज में भारी बरसात (Heavy Rains) गुजरने के बावजूद पानी सतह के नीचे जमा रहा. ब्रिटिश शासनकाल के दौरान स्थापित रानीगंज की महाबीर कोलियरी में जब करीब 200 खनिक काम कर रहे थे कि तभी देर रात खदान में पानी घुसने लगा और लगभग 70 कर्मचारी फंस गए. जबकि बाकी को जल्दी-जल्दी निकाल लिया गया. स्थिति बिगड़ती चली गई और खदान में पानी तो भरता रहा, लेकिन एक और समस्या थी कि वहां जहरीली गैसें (Poisonous Gas) भी बन रही थी. क्या फंसे रह गए लोगों को बचाया जा सकेगाॽ इन्हीं हालात में कोल इंडिया (Coal India) में अतिरिक्त मुख्य खनन इंजीनियर, जसवंत सिंह गिल की एंट्री होती है और समय के विरुद्ध एक दौड़ शुरू होती है.
त्रिकोण का चौथा कोण
निर्देशक टीनू सुरेश देसाई की फिल्म की कहानी अलग-अलग स्तरों पर चलती है. एक तरफ आपदा में फंसे मजदूर हैं. उनका जिंदगी खोने का डर और जान बचाने की छटपटाहट है. दूसरी तरफ खनिकों को बचाने की कोशिशों में लगे जसवंत गिल (अक्षय कुमार) हैं. तीसरी तरफ खनिकों के परिजन हैं, जो हैरान-परेशान और अनहोनी की आशंका में डूबे-डरे हैं. इस त्रिकोण का चौथा कोण है, व्यवस्था और राजनीति! ऐसे हालात में जबकि खदान से खनिकों को निकालने की व्यवस्था ही नहीं है, तब क्या किया जा सकता है. कोई भी कदम उठाने के पहले उसके खतरों को तौलना तो अलग बात है, नेतागिरी करने वालों के लिए यह जरूरी हो जाता है कि बचाव मिशन राजनीतिक दलों को फायदा दे. जसवंत सिंह को इनसे भी लड़ना पड़ता है.
द ग्रेट भारत रेस्क्यू
रीयल लाइफ में जसवंत सिंह गिल ने देसी जुगाड़ के माध्यम से एक स्टील का कैप्सूल बनाया, जिसमें एक व्यक्ति आराम से आ सकता था. ऐसे ही कैप्सूल से खनिकों को निकाला गया. यही कारण है कि गिल को बाद में कैप्लूस गिल के नाम से भी जाना गया. सबसे पहले इस फिल्म का नाम भी यही था, मगर बाद में बदलकर द ग्रेट इंडिया रेस्क्यू किया गया और अंत में मिशन रानीगंजः द ग्रेट भारत रेस्क्यू. जितने उतार-चढ़ाव फिल्म का टाइटल रखने में आते रहे, उतने कहानी में भी आते हैं. इसमें संदेह नहीं अपने घटनाक्रम में यह फिल्म बांधे रखती है, लेकिन एक स्तर के बाद इसमें भावनाओं की कमी अखरने लगती है क्योंकि सारा काम दिमाग से चल रहा होता है.
वीएफएक्स का हाथ
मिशन रानीगंजः द ग्रेट भारत रेस्क्यू को आपको दिमाग लगाकर ही देखना पड़ेगा क्योंकि अगर आप इसके घटनाक्रम और तकनीक से खुद को नहीं जोड़ सके, तो फिल्म आपसे दूर भी हो सकती है. अक्षय कुमार (Akshay Kumar) अपने अंदाज में हैं और भावनाओं को नियंत्रित करके पूरा फोकस काम पर रखने वाले व्यक्ति के रूप में अच्छे लगे हैं. उनका सेंस ऑफ ह्यूमर मुश्किल समय में भी बना रहता है. गिल की पत्नी निर्दोष कौर के रूप में परिणीति चोपड़ा (Parineeti Chopra) गिनती के दृश्यों और गाने में नजर आती हैं. हालांकि कुमुद मिश्रा, राजेश शर्मा, रवि किशन, पवन मल्होत्रा और दिब्येंदु भट्टाचार्य जैसे एक्टरों ने अच्छा सपोर्ट किया है. इस फिल्म को बनाने में वीएफएक्स का बड़ा हाथ है और वह कहीं-कहीं साफ नजर आता है. यह तकनीकी बात खटकती है.
काला पत्थर की याद
मिशन रानीगंज का रेस्क्यू ऑपरेशन देखते हुए आपको चार दशक से भी पुरानी अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan), शशि कपूर, शत्रुघ्न सिन्हा की काला पत्थर (निर्देशकः यश चोपड़ा) याद आती है. तब लगता है कि उस दौर में लेखक-निर्देशक कैसे कहानी में एक्शन और इमोशन को संतुलित करके फिल्म बनाते थे. वहां कहानी एक ही ट्रेक पर, एक ही सितारे के कंधे पर नहीं होती थी. गीत-संगीत पर भी खूब ध्यान दिया जाता था और आपको टोटल एंटरटेनमेंट मिलता था. मिशन रानीगंज में ऐसी बातों की कमी खलती है. मगर बॉलीवुड में यह ऐसे ही सिनेमा का दौर है, जहां एक सितारा सबकुछ अपने इर्द-गिर्द रखना चाहता है. निर्देशक के पास भी उसकी बात मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता. लेकिन दर्शक के रूप में आपको यह आजादी जरूर है कि क्या आप टोटल एंटरटेनमेंट से कम का सिनेमा देखना चाहते हैंॽ
निर्देशकः टीनू सुरेश देसाई
सितारे: अक्षय कुमार, परिणति चोपड़ा, कुमुद मिश्रा, राजेश शर्मा, रवि किशन, पवन मल्होत्रा, दिब्येंदु भट्टाचार्य
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