Maharana Pratap: प्रताप की वीरता ऐसी थी कि उनके दुश्मन भी उनके युद्ध-कौशल के कायल थे. माना जाता है कि इस योद्धा की मृत्यु पर अकबर की आंखें भी नम हो गई थीं. उनका भाला, तलवार और ढाल उनकी अनूठी वीरता की कहानी कहते हैं.
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Maharana Pratap Death Annivesary: "तू भी है राणा का वंशज, फेंक जहां तक भाला जाए..." ये लाइनें न केवल वीरता की मिसाल हैं, बल्कि भारत के महान योद्धा महाराणा प्रताप के साहस और उनकी शौर्य गाथाओं की गूंज हैं. प्रताप का वो भाला, जो उनके रणक्षेत्र में विजय की प्रतीक था, आज भी उनके अदम्य साहस का प्रतीक बना हुआ है. यह कहानी महज एक अस्तबल या हथियार की नहीं, बल्कि एक महान योद्धा के अनोखे संघर्ष और बलिदान की है...
मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले महाराणा प्रताप का निधन 19 जनवरी 1597 को हुआ था. अदम्य साहस और स्वाभिमान के प्रतीक महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि के मौके पर लोग उन्हें याद कर रहे हैं और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए उनकी वीरता, पराक्रम, त्याग और बलिदान के किस्से-कहानियों का जिक्र कर रहे हैं. वैसे जब भी महाराणा प्रताप की बात होती है तो उनके भाले , कवच आदि की बात जरूर होती है. ऐसे में आज हम उनकी पुण्यतिथि के मौके पर उनके भाले के बारे में बताने जा रहे हैं, जो हमेशा से ही उनकी अदम्य शक्ति और शौर्य का प्रतीक रहा है...
वीरता और स्वाभिमान की गाथा
महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के एक ऐसे महान योद्धा हैं, जिनकी वीरता और स्वाभिमान की गाथा हर युग में गाई जाती है. उनका साहस, पराक्रम और मातृभूमि के प्रति समर्पण आज भी देश प्रेम में बलिदान हो जाने के लिए हमें प्रेरित करता है. महाराणा प्रताप के शस्त्रों, विशेषकर उनके भाले की कहानी, उनकी शक्ति और आत्मबल की प्रतीक है. इस भाले के साथ वह हर युद्ध भूमि में उतरे और इतिहास रच दिया.
भाले का वजन और उसकी वास्तविकता
महाराणा प्रताप के भाले को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं. कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, उनके भाले का वजन 81 किलो बताया गया है, लेकिन उदयपुर के सिटी पैलेस म्यूजियम के अनुसार, महाराणा प्रताप के शस्त्रों का कुल वजन मात्र 35 किलोग्राम था. इसमें उनका भाला लगभग 17 किलो का था. यह भाला उनके पराक्रम और रणनीतिक कौशल का प्रतीक था.
युद्धभूमि में भाले की भूमिका
महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध में मुगल सेना के खिलाफ अपने सीमित संसाधनों के साथ संघर्ष किया. उनका भाला न केवल एक हथियार था, बल्कि दुश्मनों के मन में भय पैदा करने वाला प्रतीक भी था. यह भाला उनकी ताकत और युद्ध कौशल को दर्शाता था, जिसने उन्हें हर युद्ध में अद्वितीय बनाया.
प्रताप और चेतक की अद्भुत जोड़ी
महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक भी उनके भाले की तरह ही अद्वितीय था. हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान जब मुगल सेना ने महाराणा को घेर लिया था, तब चेतक ने अपनी वीरता दिखाते हुए 26 फीट चौड़ा नाला पार कर महाराणा को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया. यह पल इतिहास में अमर हो गया.
प्रताप की वीरता के आगे अकबर भी झुक गया
महाराणा प्रताप की वीरता इतनी प्रभावशाली थी कि मुगल सम्राट अकबर भी उनके साहस के आगे नतमस्तक हो गया. कहा जाता है कि महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर की आंखों में भी आंसू आ गए थे. उदारता ऐसी कि दूसरों की पकड़ी गई बेगमों को सम्मानपूर्वक उनके पास वापस भेज दिया था. उन्होंने सीमित साधन होने के बावजूद दुश्मन के सामने सिर नहीं झुकाया और जंगल के कंद-मूल खाकर लड़ते रहे.
इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज है नाम
महाराणा प्रताप का भाला उनकी ताकत और स्वाभिमान का प्रतीक था. यह सिर्फ एक हथियार नहीं, बल्कि स्वतंत्रता की लड़ाई में उनकी दृढ़ता और अटूट विश्वास का परिचायक था. उनकी गाथा भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखी गई है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी.
प्रताप के 'चेतक' की गाथा
रण–बीच चौकड़ी भर–भरकर
चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से¸
पड़ गया हवा को पाला था।
गिरता न कभी चेतक–तन पर¸
राणा प्रताप का कोड़ा था।
वह दोड़ रहा अरि–मस्तक पर¸
या आसमान पर घोड़ा था।।
जो तनिक हवा से बाग हिली¸
लेकर सवार उड़ जाता था।
राणा की पुतली फिरी नहीं¸
तब तक चेतक मुड़ जाता था।।
कौशल दिखलाया चालों में¸
उड़ गया भयानक भालों में।
निभीर्क गया वह ढालों में¸
सरपट दौड़ा करवालों में।
है यहीं रहा¸ अब यहां नहीं¸
वह वहीं रहा है वहां नहीं।
थी जगह न कोई जहां नहीं¸
किस अरि–मस्तक पर कहां नहीं।
बढ़ते नद–सा वह लहर गया¸
वह गया गया फिर ठहर गया।
विकराल ब्रज–मय बादल–सा
अरि की सेना पर घहर गया।।
भाला गिर गया¸ गिरा निषंग¸
हय–टापों से खन गया अंग।
वैरी–समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग।।
चढ़ चेतक पर तलवार उठा
रखता था भूतल–पानी को।
राणा प्रताप सिर काट–काट
करता था सफल जवानी को
— श्यामनारायण पांडेय