Indian Immigrants in America: भीकाजी बलसारा अमेरिकी नागरिकता पाने वाले पहले भारतीय हैं. यह उपलब्धि उन्होंने 20वीं सदी की शुरुआत में नस्लभेद और कठिन कानूनी लड़ाइयों के बावजूद हासिल की. पढ़िए अमेरिका में भारतीयों का इतिहास...
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Indian Citizenship History in America: डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद वहां रहने वाले लाखों भारतीयों को जोर का झटका दिया. ट्रंप (US President Donald Trump) ने बर्थ राइट सिटीजनशिप को खत्म करने के लिए एक कार्यकारी आदेश पर साइन किए. हालांकि, वहां की कोर्ट ने इस आदेश पर अभी स्टे लगा दिया है, लेकिन अगर यह आदेश लागू होता है, तो टेंम्प्ररी वर्क या टूरिस्ट वीजा पर यूएस में रहने वाले भारतीयों के बच्चों को ऑटोमैटिक तौर पर मिलने वाला सिटीजनशिप का राइट खत्म हो जाएगा.
इस मुद्दे पर भारत में भी चर्चा जोरों पर हैं. खैर यह सब तो वक्त आने पर पता चल ही जाएगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारतीयों को अमेरिका में नागरिकता मिलना कब शुरू हुआ, किस इंडियन को सबसे पहले वहां की सिटिजनशिप किसने हासिल की थी और कैसे? चलिए जानते हैं सबकुछ...
अमेरिका में भारतीयों का इतिहास
अमेरिका में 20वीं सदी के दौरान नस्लभेद के दौर में भीकाजी बलसारा पहले ऐसे भारतीय बने, जिन्होंने अमेरिका की नागरिकता हासिल की. भीकाजी बलसारा, जो एक पारसी समुदाय के सदस्य थे, अमेरिकी नागरिकता प्राप्त करने वाले पहले भारतीय बने. अमेरिका में उस समय केवल श्वेत लोगों को नागरिकता दी जाती थी, लेकिन बलसारा ने इस नियम को चुनौती दी और एक नई मिसाल कायम की.
यूएस में नागरिकता हासिल करना क्यों था मुश्किल?
1790 के नैचुरलाइजेशन एक्ट के मुताबिक, अमेरिका में नागरिकता केवल आजाद श्वेत लोगों को दी जाती थी. इसका मतलब था कि भारतीय, जिन्हें श्वेत नहीं माना जाता था, अमेरिकी नागरिकता के योग्य नहीं थे. भीकाजी बलसारा ने इस कानून को चुनौती देते हुए अदालत में दलील दी कि आर्यन नस्ल के लोग श्वेत माने जाते हैं, जिसमें भारतीय भी शामिल हैं.
पहली कानूनी लड़ाई: जब दायर किया केस
1906 में भीकाजी बलसारा ने न्यूयॉर्क के सर्किट कोर्ट में नागरिकता के लिए याचिका दायर की. उन्होंने अपनी दलील में कहा कि भारतीय आर्यन हैं और श्वेत की परिभाषा में आते हैं. कोर्ट ने इस दलील को मानने से इनकार कर दिया और कहा कि ऐसा करने से अरब, अफगान और अन्य जातियों के लिए भी रास्ता खुल जाएगा. हालांकि, कोर्ट ने बलसारा को उच्च अदालत में अपील करने की अनुमति दी.
कब मिली पहली सफलता?
1910 में न्यूयॉर्क के साउथ डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज एमिल हेनरी लैकोम्बे ने भीकाजी बलसारा को अमेरिकी नागरिकता दी. जज ने यह फैसला इस उम्मीद के साथ सुनाया कि इसे चुनौती देकर कानून की व्याख्या की जाएगी. इसके बाद मामला सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स में गया, जहां पारसियों को श्वेत के रूप में वर्गीकृत किया गया.
बलसारा के फैसले का असर
भीकाजी बलसारा के इस ऐतिहासिक फैसले ने अन्य भारतीयों के लिए नागरिकता का रास्ता खोल दिया. इसी कानूनी आधार पर एके मजूमदार जैसे अन्य भारतीयों को भी अमेरिकी नागरिकता मिली. यह सफलता उन भारतीयों के लिए प्रेरणा बनी, जो नस्लीय भेदभाव का सामना कर रहे थे.
1917 का आप्रवासन अधिनियम और प्रभाव
बलसारा के केस के बाद 1917 में अमेरिका ने आप्रवासन अधिनियम लागू किया, जिससे भारतीयों का प्रवास सीमित हो गया. हालांकि, पंजाबी अप्रवासी मेक्सिको के जरिए अमेरिका में प्रवेश करते रहे. इन अप्रवासियों ने कैलिफोर्निया की इंपीरियल वैली में पंजाबी समुदाय के साथ एकजुट होकर अपनी जगह बनाई.
वर्ल्ड वॉर-2 के बाद बदले हालात
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारतीयों के लिए अमेरिका के दरवाजे फिर से खुल गए. 1946 में लूस-सेलर एक्ट के तहत हर साल 100 भारतीयों को अमेरिका में बसने की अनुमति दी गई. बाद में 1965 के इमिग्रेशन एक्ट के बाद यह संख्या तेजी से बढ़ी.
अब भारतीयों का वर्चस्व
21वीं सदी में भारतीयों का अमेरिका में प्रवास एक नया आयाम ले चुका है. आईटी सेक्टर के विकास और एच-1बी वीजा के जरिए भारतीय पेशेवर अमेरिका की बड़ी कंपनियों में शीर्ष पदों पर पहुंचे. आज भारतीय-अमेरिकी समुदाय न केवल शिक्षा और व्यवसाय में बल्कि अमेरिकी राजनीति और प्रशासन में भी एक मजबूत स्थान रखता है. इस तरह से भीकाजी बलसारा ने न केवल इंडियन कम्युनिटी का अमेरिका में भविष्य उज्ज्वल किया, बल्कि नस्लीय भेदभाव के खिलाफ एक मजबूत संदेश भी दिया.