Jammu Kashmir News: जम्मू-कश्मीर को राज्य का बहाल करने के प्रस्ताव पर बड़ी अपडेट सामने आई है. भाजपा ने इस मांग पर निर्णय लेने में सावधानी बरतने का आग्रह किया है. जानिए वजह.
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Jammu Kashmir News: लंबे समय से जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने की मांग की जा रही है. इसे लेकर एक बार फिर खबर आई है. सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और अन्य राजनीतिक दलों द्वारा राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग हो रही है. इसी बीच भाजपा ने दिल्ली से जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने के बारे में निर्णय लेने में सावधानी बरतने का आग्रह किया है. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रमुख फारूक अब्दुल्ला - ने इस मुद्दे पर समझौतावादी रुख दिखाया है.
ऐसा लगता है कि उन्होंने इस तथ्य को स्वीकार कर लिया है कि राज्य का दर्जा दिए जाने का मुद्दा केंद्र को तय करना है. इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के साथ चुनौती लेने से पार्टी के दिल्ली के साथ संबंधों में आई नरमी और खराब हो सकती है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने हाल ही में ही कहा कि राज्य का दर्जा एक ऐसा मुद्दा है जिस पर अंतिम फैसला केंद्र को लेना होगा. हालांकि, उनकी पार्टी के अन्य नेता विभिन्न मंचों पर इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठा रहे हैं.
श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम में गणतंत्र दिवस समारोह की अध्यक्षता करने वाले उपमुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी ने पारंपरिक भाषण को राजनीतिक हथियार बना दिया. राजनीति से ऊपर उठकर भाषण देने के बजाय चौधरी ने ऐसा भाषण दिया, जिसने कई लोगों को चौंका दिया. उन्होंने गणतंत्र दिवस के संबोधन में कहा कि "अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर का संवैधानिक अधिकार है, था और रहेगा. उन्होंने अपने बयान के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया, क्योंकि अनुच्छेद 370 को संसद ने निरस्त कर दिया था और इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था.
यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि केंद्र विरोधी अधिकांश बयान उपमुख्यमंत्री द्वारा जारी किए गए हैं, जो तत्कालीन भाजपा जम्मू-कश्मीर अध्यक्ष रविंदर रैना को हराकर राजौरी जिले की नौशेरा सीट से चुने गए थे. नेशनल कॉन्फ्रेंस मूल रूप से एक क्षेत्रीय घाटी-केंद्रित पार्टी है और इसका राजनीति हमेशा से भाजपा के खिलाफ रही है. नेशनल कॉन्फ्रेंस को अपनी 42 विधानसभा सीटों में से अधिकांश घाटी से मिली हैं. इससे एनसी का राजनीतिक हित भाजपा के राजनीतिक हित से बिल्कुल विपरीत हो जाता है.
इस राजनीतिक वास्तविकता के बावजूद, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उनके पिता डॉ. फारूक अब्दुल्ला भाजपा शासित केंद्र के साथ असहमति के क्षेत्रों को कम करने की कोशिश कर रहे हैं. केंद्र के समर्थन पर जम्मू-कश्मीर की लगभग 100 प्रतिशत आर्थिक निर्भरता बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों को भुगतान करने के लिए धन की कमी, तेजी से घटती कृषि भूमि और व्यवसाय और स्वरोजगार के बेहतर अवसरों की लगातार बढ़ती मांग, जम्मू-कश्मीर सरकार को एक अप्रिय स्थिति में डाल देती है. ऐसे में केंद्र के साथ किसी भी टकराव से राष्ट्र-विरोधी तत्वों और आतंकवाद के समर्थकों को राहत मिलने की संभावना है, जो हमेशा जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने के अवसरों की तलाश में रहते हैं.
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि जो अपनी हैसियत के राजनेता हैं और खुद को एक बहुत ही सक्षम प्रशासक साबित कर चुके हैं, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली के बीच एक बेहतरीन संतुलन की धुरी हैं. घाटी और जम्मू संभाग में लोगों को अवसरों का समान वितरण सुनिश्चित करते हुए आतंकवाद के पारिस्थितिकी तंत्र को खत्म करने की उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता ने अंतर को पाटने और आम आदमी की गलतफहमी को दूर करने में मदद की है.
छात्रों, लेखकों, शिक्षाविदों, कलाकारों और खिलाड़ियों से मिलने से लेकर जम्मू-कश्मीर पुलिस और सुरक्षा बलों के संरक्षण तक, उपराज्यपाल ने खुद को जम्मू-कश्मीर में राजभवन के राज्यपाल के रूप में अलग-थलग नहीं रखा है. एलजी मनोज सिन्हा लोगों की शिकायतों को सुनते रहे हैं और अपने विनीत, सूक्ष्म और प्रभावी तरीके से इनका समाधान करते रहे हैं. (आईएएनएस)