Bombay High Court: गोवा स्थित बॉम्बे उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि यदि कोई लड़की किसी पुरुष के साथ होटल का कमरा बुक कराती है और कमरे में वे एक साथ चले भी जाते हैं तो इसका अर्थ यह नहीं है कि लड़की ने यौन संबंध बनाने के लिए सहमति दे दी है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति भरत देशपांडे की अगुवाई वाली हाईकोर्ट की एकल पीठ ने मडगांव ट्रायल कोर्ट द्वारा मार्च 2021 में पारित आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें एक व्यक्ति को बलात्कार के आरोपों से मुक्त कर दिया गया था.
ट्रायल कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि चूंकि लड़की होटल का कमरा बुक करने में शामिल थी, इसका मतलब है कि उसने उस कमरे में होने वाली यौन गतिविधि में शामिल होने के लिए भी अपनी सहमति दी थी. कोर्ट ने कहा कि इसलिए, गुलशेर अहमद नामक व्यक्ति पर बलात्कार का आरोप नहीं लगाया जा सकता.
हालांकि, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 3 सितंबर को एक आदेश पारित किया, जिसे हाल ही में सार्वजनिक किया गया, जिसमें कहा गया था कि ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश ने ऐसी टिप्पणी करके 'स्पष्ट रूप से गलती की है.'
'कल्पना की कोई सीमा...': HC
अपने आदेश में, न्यायमूर्ति देशपांडे ने लिखा, 'इस तरह का निष्कर्ष निकालना स्पष्ट रूप से स्थापित प्रस्ताव के विरुद्ध है और विशेष रूप से तब जब घटना के तुरंत बाद शिकायत दर्ज की गई थी. भले ही यह स्वीकार किया जाए कि पीड़िता आरोपी के साथ कमरे के अंदर गई थी, लेकिन इसे किसी भी तरह से यौन संबंध के लिए उसकी सहमति नहीं माना जा सकता है.'
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने अपने आदेश में दो पहलुओं को मिला दिया है, एक यह कि वह अपनी मर्जी से आरोपी के साथ कमरे के अंदर गई थी, दूसरा यह कि उसने उक्त कमरे के अंदर हुई गतिविधि के लिए सहमति दी थी.
न्यायमूर्ति देशपांडे ने कहा कि पीड़िता के कमरे से बाहर निकलने के तुरंत बाद की उसकी हरकतें बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे संकेत देती हैं कि उसने ऐसे किसी भी यौन कृत्य के लिए सहमति नहीं दी थी.
लाइव लॉ के अनुसार न्यायाधीश ने कहा, 'कमरे से बाहर आने के तुरंत बाद पीड़िता की ओर से की गई कार्रवाई और वह भी रोना, पुलिस को बुलाना और उसी दिन शिकायत दर्ज कराना यह दर्शाता है कि आरोपी द्वारा कमरे में कथित रूप से किया गया खुला कृत्य सहमति से नहीं किया गया था.'
आरोपी ने दी थी ये दलील
इसके अतिरिक्त, उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि पूरी घटना होटल के कर्मचारियों द्वारा भी बताई गई थी. आरोपी ने यह भी तर्क दिया कि पीड़िता को होटल का कमरा बुक करने में कोई दिक्कत नहीं थी और कमरे में प्रवेश करने से पहले उसने उसके साथ दोपहर का भोजन भी किया था, जिससे संकेत मिलता है कि उसने यौन संबंध बनाने के लिए सहमति दी थी. हालांकि, न्यायमूर्ति देशपांडे ने इस दलील को खारिज कर दिया.
एकल न्यायाधीश की पीठ ने टिप्पणी की, 'इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह दिखाने के लिए सामग्री मौजूद है कि आरोपी और पीड़िता ने कमरा बुक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, हालांकि, इसे यौन संबंध बनाने के उद्देश्य से पीड़िता द्वारा दी गई सहमति नहीं माना जाएगा.'
मामला क्या था?
यह मामला 3 मार्च, 2020 को घटी एक घटना से जुड़ा है, जब आरोपी ने पीड़िता को विदेश में प्राइवेट नौकरी दिलाने का वादा किया था. वह उसे मडगांव के एक होटल में ले गया और कहा कि वे नौकरी के लिए एक एजेंट से मिलेंगे. इसके बाद उन्होंने एक साथ होटल का कमरा बुक किया.
लेकिन पीड़िता के बयान के अनुसार, कमरे में घुसते ही आरोपी ने उसे जान से मारने की धमकी दी और फिर उसके साथ बलात्कार किया. जैसे ही वह बाथरूम में गया, वह कमरे से भाग गई और रोती हुई होटल से भागती हुई बाहर आई. फिर उसने पुलिस को बुलाया, जिसके बाद आरोपी को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया.
बार एंड बेंच ने बताया कि पुलिस ने अहमद के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (बलात्कार) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया है. न्यायमूर्ति देशपांडे ने निचली अदालत के आदेश को खारिज करते हुए आरोपी के खिलाफ मुकदमा बहाल कर दिया है.
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