120 किलो सोना, 100 किलो चांदी...पहली बार मक्का से बाहर क्यों ले जाई जा रही है ये पवित्र चादर?
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120 किलो सोना, 100 किलो चांदी...पहली बार मक्का से बाहर क्यों ले जाई जा रही है ये पवित्र चादर?

Kiswa Chadar: मुसलमानों के सबसे पवित्र शहर मक्का में मौजूद 'काबा' पर हर साल एक चादर चढ़ाई जाती है. ये चादर पहली बार मक्का से बाहर दिखाई जाएगी. सोना, चांदी और रेशम तैयार होने वाली ये पवित्र और भारी-भरकम चादर इस्लामिक कल्चर से जुड़े एक प्रोग्राम में दिखाई जाएगी.

120 किलो सोना, 100 किलो चांदी...पहली बार मक्का से बाहर क्यों ले जाई जा रही है ये पवित्र चादर?

History of Kiswa: इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक दुनिया की सबसे पवित्र जगह मक्का में मौजूद काबा है. इसकी फोटोज अकसर मीडिया और सोशल मीडिया पर देखने को मिल जाती हैं. काबा के ऊपर एक काले रंग की एक चादर होती है, जिसे 'गिलाफ' कहा जाता है, लेकिन यहीं पर एक और चादर होती है जिसे 'किस्वा' कहते हैं. ये चादरें हर साल बदली जाती हैं. किस्वा को पहली बार मक्का शहर के बाहर किसी सार्वजनिक जगह पर दिखाया जा रहा है. तो चलिए जानते हैं इस चादर के बारे में कुछ दिलचस्प बातें.

कहां दिखाई जाएगी किस्वा?

25 जनवरी को 'इस्लामिक आर्ट्स बिनाले 2025' जेद्दा के किंग अब्दुलअज़ीज़ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के वेस्टर्न हज टर्मिनल में शुरू हो रहा है. इस प्रोग्राम का मुख्य आकर्षण मक्का में मौजूद पवित्र काबा की 'किस्वा' होगी. यह पहली बार है जब पूरी किस्वा को मक्का के बाहर कहीं प्रदर्शित किया जाएगा. यह जानकारी दिरियाह बिनाले फाउंडेशन ने दी है, जो इस बिनाले का आयोजन कर रही है.

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क्या है इस्लामिक आर्ट्स बिनाले?

पहली बार 2023 में आयोजित इस बिनाले का दूसरा संस्करण ‘एंड ऑल दैट इज़ इन बिटवीन’ शीर्षक से 25 मई तक चलेगा. इस प्रदर्शनी में किस्वा के अलावा इस्लामी सभ्यता की ऐतिहासिक कलाकृतियां और आधुनिक कला कृतियां भी दिखाई जाएंगी. यह प्रदर्शन इस्लामी सभ्यता और उसकी रचनात्मक कला को दिखाने की एक कोशिश है.

किस्वा: पवित्र काबा का आवरण

किस्वा एक शानदार कढ़ाई की हुई काली रेशमी चादर होती है, जो मक्का के मस्जिद अल-हरम में मौजूद पवित्र काबा पर डाली जाती है. इसमें सोने और चांदी के धागों से कुरान की आयतें कढ़ाई की जाती हैं. यह चाजर हर साल बदली जाती है. इस साल बिनाले में जो किस्वा दिखाई जाएगी वह पिछले साल काबा पर डाली गई थी. हर साल इस्लामी साल के पहले दिन (1 मुहर्रम) को यह चादर बदली जाती है. 

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किस्वा का इतिहास

काबा पर किस्वा चढ़ाने की परंपरा सदियों पुरानी है.  मक्का विजय (8 हिजरी 629-630 ई.) के बाद पैगंबर मुहम्मद ने पहली बार काबा को यमनी कपड़े से ढका. पैगंबर मुहम्मद ने इसे सफेद और लाल रंग के यमनी कपड़े से ढका. हालांकि बाद में पहले तीन खलीफाओं (अबू बकर, उमर और उस्मान) ने सफेद कपड़ा इस्तेमाल किया. अब्बासी खलीफा अल-नासिर ने इसे काले रंग में बदल दिया, जो आज तक जारी है.

किस्वा बनाने की प्रक्रिया

आज की किस्वा 1000 किलोग्राम से ज्यादा वजनी होती है और इसे तैयार करने में लगभग एक साल का समय लगता है. इसे बनाने में 670 किलो कच्चा रेशम, 120 किलो सोने के धागे और 100 किलो चांदी के धागे. इसे बनाने की प्रक्रिया में कई चरण शामिल होते हैं.कुरान की आयतों को कढ़ाई करने के लिए रेशम पर सोने-चांदी के धागों से सजावट की जाती है.

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