Water On Moon: वैज्ञानिकों ने जितना सोचा था, चंद्रमा पर उससे कहीं अधिक मात्रा में पानी मौजूद हो सकता है. एक नई स्टडी में, चंद्रमा के सभी इलाकों में पानी मिलने की संभावना जाहिर की गई है.
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Science News: पृथ्वी की तरह चंद्रमा पर भी ढेर सारा पानी मौजूद है! नई रिसर्च के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है. वे चंद्रमा के विभिन्न हिस्सों का अध्ययन करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक, चंद्रमा के सभी इलाकों में पानी मिल सकता है, भले ही उस इलाके में सूर्य पूरी ताकत से चमकता हो. मिनरॉलॉजी मैप्स के एनालिसिस से पता चला कि पूरे चंद्रमा पर पानी और हाइड्राक्सिल (हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बना एक और अणु) पाया जा सकता है.
यह खोज अहम है क्योंकि दुनिया की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियां आने वाले सालों में चंद्रमा पर इंसानी बस्ती बसाने की योजना बना रही हैं. प्लैनेटरी साइंस इंस्टीट्यूट में वैज्ञानिक रोजर क्लार्क के अनुसार, 'भविष्य के एस्ट्रोनॉट्स चंद्रमा की भूमध्य रेखा के पास भी पानी खोज सकते हैं.' पहले यह माना जाता था कि केवल ध्रुवीय क्षेत्रों, खासतौर से गहरे छायादार क्रेटर ही वे जगहें हैं जहां पानी प्रचुर मात्रा में पाया जा सकता है.
चंद्रमा पर खूब सारा पानी कहां है?
यूं तो देखने से नहीं लगता कि चंद्रमा पर पानी हो सकता है. यह बेहद सूखा और नमी से वंचित नजर आता है. धरती की तरह, चंद्रमा की सतह पर तरल पानी मौजूद नहीं है, मतलब वहां कोई झील, पोखर या नदियां नहीं हैं. लेकिन, तमाम स्टडीज बताती हैं कि कि चंद्रमा पर बहुत सारा पानी छिपा हुआ है. इस पानी की खोज से जुड़ी पिछली स्टडीज में, ऊंचाई पर मौजूद गहरे क्रेटर्स में पानी की मौजूदगी की संभावना जताई गई थी. इन गहरे इलाकों तक सूर्य की रोशनी कभी नहीं पहुंचती, न ही उसकी गर्मी. इसका मतलब यह है कि वहां पर कई मीटर मोटी बर्फ की परत मौजूद हो सकती है.
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अन्य स्टडीज से पता चला कि चंद्रमा के कुछ और हिस्सों में भी पानी हो सकता है. क्लार्क और उनकी टीम की खोज इसका समर्थन करती है. पानी और हाइड्रॉक्सिल - जिसमें एक ऑक्सीजन परमाणु और एक हाइड्रोजन परमाणु होता है - शायद चंद्रमा पर प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. ये चंद्रमा की सतह पर चट्टानों और मिट्टी का निर्माण करने वाले खनिजों में बंधे होते हैं. नई रिसर्च के नतीजे The Planetary Science जर्नल में छपे हैं.
चंद्रयान-1 के डेटा से हुई खोज
रिसर्चर्स ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए भारत के चंद्रयान-1 के डेटा का इस्तेमाल किया. 2008-09 में चंद्रमा की परिक्रमा करने वाले स्पेसक्राफ्ट पर मून मिनरॉलॉजी मैपर (M3) इंस्ट्रूमेंट लगा था. इसने चंद्रमा की स्पेक्ट्रोस्कोपिक तस्वीरें लीं. इस डेटा में चंद्रमा से परावर्तित होने वाली इंफ्रारेड लाइट दर्ज की गई और स्पेक्ट्रम पर पानी और हाइड्रॉक्सिल के अनुरूप रंगों की तलाश की गई.
वैज्ञानिकों ने पाया कि चंद्रमा के सभी अक्षांशों पर पानी और हाइड्रॉक्सिल पाया जा सकता है. चंद्रमा पर पानी हमेशा के लिए नहीं रहता. रिसर्चर्स ने पाया कि चांद की सतह पर पानी क्रेटरिंग घटनाओं में उजागर होता है और फिर लाखों सालों के दौरान, सौर हवा से रेडिएशन द्वारा धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है. लेकिन इस प्रक्रिया में हाइड्रॉक्सिल पीछे छूट जाता है. हाइड्रॉक्सिल का उत्पादन सौर हवा भी करती है, जो चंद्रमा की सतह पर सौर हाइड्रोजन जमा करती है, जो अणु बनाने के लिए वहां ऑक्सीजन के साथ बंध सकती है.