Premanand Ji Maharaj: क्या सच में विवाहित बेटियों के घर का पानी पीने से पाप चढ़ जाता है? यह सवाल एक बेटी ने जब प्रेमानंद जी महाराज से पूछा तो वे मुस्करा उठे. उन्होंने इसका जो सारगर्भित जवाब दिया, उसे आपको जरूर जानना चाहिए.
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Premanand Ji Maharaj on Parents Caring: वृंदावन में रहने वाले प्रेमानंद महाराज से कौन परिचित नहीं है. जीवन की कठिन से कठिन गुत्थियों का भी वे इतने सहज ढंग से हल प्रस्तुत देते हैं कि हर कोई निहाल हो जाता है. अब उन्होंने जीवन से जुड़ी ऐसी ही एक भ्रांति पर जो उत्तर दिया है, जो हम सबका जीवन में बड़ा मार्गदर्शन कर सकता है. हाल में उनके आश्रम में दर्शन करने पहुंची एक महिला ने पूछा कि क्या मां-बाप को विवाहित बेटी की ससुराल में जाकर पानी नहीं पीना चाहिए. क्या ऐसा करने से उन्हें पाप चढ़ जाता है.
क्या बेटियों को अपने मां-बाप की सेवा का अधिकार नहीं?
प्रेमानंद महाराज के सामने करबद्ध बैठी महिला ने पूछा कि लोग अपने बेटी की ससुराल में कुछ भी खाने-पीने से बचते हैं. क्या ऐसा करने से वे पाप के भागी बन जाते हैं. महिला ने अपनी दुविधा स्पष्ट करते हुए कहा कि उसकी मां अक्सर बीमार रहती है और वह उनकी देखभाल करना चाहती है लेकिन लोकलाज के डर से इसकी हिम्मत नहीं जुटा पाती. उसे लगता है कि लोग पता नहीं क्या कहेंगे. महिला ने पूछा कि क्या बेटियों को अपने मां-बाप की सेवा का अधिकार नहीं है.
हमारे शास्त्रों में पुत्र-पुत्री में कोई भेद नहीं- प्रेमानंद महाराज
महिला का इतना गूढ सवाल सुन प्रेमानंद महाराज ने मुस्कराते हुए जवाब दिया कि हमारे शास्त्रों में कहीं भी पुत्र-पुत्री में भेद नहीं किया गया है. असल में हमारे धर्म में महिलाओं को पूजनीय माना गया है. इसलिए लोग बेटियों से अपनी सेवा करवाने या उसके घर पर भोजन-पानी ग्रहण करने को गलत मानते हैं. हालांकि यह मानसिकता उचित नहीं है और हमें इससे बाहर आना चाहिए.
'बेटी के घर जीवन बिताने में कुछ गलत नहीं'
प्रेमानंद महाराज ने कहा कि मां-बाप की सेवा की जितनी जिम्मेदारी बेटे की होती है, उतनी ही बेटी की भी. यह किसी एक का नहीं बल्कि दोनों का काम होता है. अगर मां-बाप की तबियत खराब हो जाती है और बेटा वहां उपस्थित नहीं है या सेवा नहीं कर पा रहा तो बेटी की जिम्मेदारी है कि वह उनकी सेवा करे. उन्होंने कहा कि यदि बुजुर्ग मां-बाप अपनी बेटी के घर बाकी जीवन बिताते हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है और न ही इसमें किसी प्रकार की ग्लानि होनी चाहिए.
'बदलते वक्त के अनुसार खुद को ढालते रहें'
उन्होंने कहा कि समाज की पुरानी मान्यताओं को हमें अपने जीवन की दिशा तय करने का आधार नहीं बनाना चाहिए और बदलते समय के अनुसार खुद को ढालते रहना चाहिए. बेटा-बेटी में किसी तरह का भेद रखना या उनके कर्तव्यों को नकारने से हमारी मानसिकता ही संकीर्ण होती है और इससे रिश्तों में संकुचन आ जाता है. जबकि प्यार और सेवा में किसी प्रकार की कोई सीमाएं नहीं होनी चाहिए. प्रेमानंद महाराज ने कहा कि समाज की धारणाओं से ऊपर उठकर जीवन को जीना जरूरी है
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)