Temple of fire In Azerbaijan: मुस्लिम देश में भी मां दुर्गा (Goddess Durga) का मंदिर (Temple) है जहां पर तीन सौ साल से ज्योत (Fire) जल रही है. कहां है यह अद्भुत मंदिर, इसके शिलालेख क्या कहते हैं, आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं.
Trending Photos
Maa Durga Mandir In Azerbaijan: मां दुर्गा हर हिंदू भारतीयों के दिल में बसती हैं, दुर्गा मां की आराधना के लिए हर साल दुर्गा पूजा का पर्व भी मनाया जाता है लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि मुस्लिम देश में भी मां दुर्गा के चमत्कार का बोलबाला है. दरअसल, हम बात कर रहे हैं पूर्वी यूरोप और एशिया के बीच स्थित देश अजरबैजान की जहां पर 300 साल पुराना दुर्गा माता का मंदिर है. जिसका नाम टैंपल ऑफ फायर है. इस मंदिर के इस नाम के पीछे का कारण एक ज्योत है. दुर्गा मां के इस मंदिर में सदियों से एक अखंड ज्योत जल रही है. आपको बता दें कि अजरबैजान 98 फीसदी मुस्लिम आबादी वाला देश है.
गैस पाइपलाइन
अजरबैजान की राजधानी और देश के सबसे बड़े शहर बाकू में भारतीय देवताओं का मंदिर स्थित है जहां के एक जगह का नाम सुरखानी है. यहां पर टेंपल ऑफ फायर आतिशगाह है. सोवियत संघ द्वारा अधिक मात्रा में गैस की निकासी से भंडार खाली होने तक यानी साल 1969 तक मंदिर में यह ज्वाला प्राकृतिक रूप से ही प्रज्जवलित थी. अब इस ज्योत के लिए बाकू से आने वाली गैस पाइपलाइन से ईंधन दिया जाता है.
आतिशगाह बना संग्राहलय
साल 2018 में भारत की मौजूदा विदेश मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज अजरबैजान के दौरे पर रहते हुए बाकू में 'अग्नि के मंदिर' आतिशगाह गई थीं. आतिशगाह को 1975 में संग्राहलय बना दिया गया और साल 2007 में अजरबैजान के राष्ट्रपति ने इसके ऐतिहासिक आर्किटेक्चरल रिजर्व में होने की घोषणा की जिसका मतलब है कि यह अब संरक्षित है. इस मंदिर में वैसे तो पूजा नहीं की जाती है क्योंकि इस देश में हिंदुओं की आबादी न के बराबर है लेकिन लगातार जलती ज्योत को देखने के लिए 1500 के करीब पर्यटक हर साल जरूर आ जाते हैं.
गणेश जी का जिक्र और शिव जी का आह्वान
मंदिर की इमारत किले के रूप में बनाई गई है और छत हिंदू मंदिर की तरह है. छत पर दुर्गा मां का त्रिशूल दिखता है. बाकू के 1745-46 के इस आतिशगाह में शिलालेख भी है जिसमें सबसे पहली पंक्ति के द्वारा भगवान गणेश की वंदना की गई है और दूसरी पंक्ति में पवित्र अग्नि यानी ज्वाला की वंदना की गई है. जबकि दूसरे शिलालेख में भगवान शिव का आह्वान किया गया है. 14 संस्कृत, 2 पंजाबी व 1 फारसी के शिलालेख मौजूद है. 17वीं सदी के अंतिम दौरा या 18वीं सदी के प्रारंभिक सालों में यहां पर हिंदुओं के आने के बाद उसका ऐसे निर्माण शुरू हुआ.
अलग धर्मों का अनुकरण
अतिशगाह पर कई छेद थे जिनसे अपने आप ही यानी प्राकृतिक रूप से आग निकलती थी. दरअसल, अतिशगाह के नीचे कभी प्राकृतिक गैस का एरिया हुआ करता था जो आग निकलने का कारण था. पंचभुजा आकार वाले इस मंदिर में बाहरी दीवारों के साथ 26 कमरे लगे हैं जहां पर उपासकों के रहने की व्यवस्था थी. हर एक कमरे में अलग अलग धर्मों के अनुकरण को दिखाता है. साल 1883 बाद इनके उपयोग पर तब पाबंदी लगा दी गई जब मंदिर के पास ज़मीन से पेट्रोल और प्राकृतिक गैस निकालने का काम चलने लगा.
भारत का ज्वाला देवी मंदिर
मुस्लिम देश में इस मंदिर का होना वैसे ही हैरान करता है लेकिन मंदिर में जल रही अखंड ज्योत इस हैरानी को और बढ़ा देती है. वहीं जब अखंड ज्योत की बात आती है तो हिमाचल के कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूर ज्वालादेवी मंदिर का जिक्र भी होता है. जिसके गर्भ से निकल रही ज्वाला भी तीन सौ साल से अनवरत जल रही है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
और पढ़ें- इस बसंत पंचमी मां शारदे की बरसेगी कृपा, मां सरस्वती के इन शक्तिशाली मंत्रों का करें जाप