Prayagraj Mahakumbh 2025: संगम तट पर लगे भव्य महाकुंभ का मेला लगा है जहां पर हजारों हजार साधु संत संगम में स्नान करने के लिए पहुंचे हैं. इन्हीं सन्यासियों में से एक हैं दंड संन्यासी जिसके बारे में लोगों को कम ही पता हैं. आइए कठिन जीवन जीने वाले इन दंडी संन्यासियों के बारे में विस्तार से जानते हैं.
महाकुंभ में एक और संत संगम में डुबकी लगाने के लिए आए हैं जिन्हें दंडी स्वामी कहा जाता है. इन संतों की अपनी परंपरा और अपने नियम हैं जो बहुत कठिन माना जाता है. आइए इन दंडी स्वामी के बारे में विस्तार से जानते हैं.
दंडी स्वामी को कोई नहीं छू सकता है और नियम के तहत न तो दंडी स्वामी किसी को छू सकते हैं. कठिन परीक्षाओं से गुजरने वाले इन संतों का अखाड़ा महाकुंभ में सेक्टर 19 में लगा है. यहां तक की दंडी संन्यासी भगवान की प्रतिमा नहीं छूते.
ये संन्यासी अपने साथ हमेशा एक दंड रखते हैं जिसकी पवित्रता बनाए रखना बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस दंड को अपने व परमात्मा के बीच की एक कड़ी मानते हैं. बहुत कठिन जीवन जीने वाले ये दंडी स्वामी हमेशा पैदल ही चलते हैं.
दंडी संन्यासी अपने सिर के बाल घुटाए रखते हैं और कुश के आसन पर ही बैठते हैं. चीरवसन व मेखलाधारण करने वाले ये संत अपना दंड हमेशा अपने साथ रखते हैं. ऐसी मान्यता है कि यही स्वामी आगे जाकर शंकराचार्य बनाए जाते हैं.
शास्त्रों के अनुसार यह दंड नारायण का प्रतीक है जिसको ब्रह्म दंड कहा जाता है. इस दंड को धारण करने जुड़े कुछ नियम है जिनका पालन करना अनिवार्य है. दंड धारण करने वाले संत हमेशा इस दंड को साथ रखते हैं और भीड़ होने पर इसे ढक देते हैं ताकि इसे कोई छू न सके सभी साधू-संत दंडी स्वामी श्री हरि विष्णु का रूप माने गए हैं.
दंडी संन्यासी दशनामी परंपरा के अंग हैं और शंकराचार्य द्वारा इस परंपरा की स्थापना की गई. ‘दंडी’ शब्द दंड से आता है जो लकड़ी का होता है. इसे संयम, साधना और त्याग के प्रतीक के रूप में देखा जाता है. जो भी संसार की मोह माया से मुक्त होकर ब्रह्म की साधना करना चाहता है उसी के पास दंडी संन्यासी बनने का अधिकार होता है.
दंडी संन्यासी बनने के लिए अपने गुरु की अनुमति लेनी होती है. इन संन्यासियों को हमेशा सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलना होता है. ये संन्यासी सात्विक भोजन करते हैं और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं. भगवान को नहीं छूते
मृत्यु के बाद दंडी संन्यासियों का अंतिम संस्कार नहीं होता बल्कि इनके पार्थिव शरीर को पवित्र नदी में प्रवाहित किया जाता है. ऐसा करने के पीछे ये सोच होती है कि इन दंडी संन्यासियों का साधना चक्र पूरा हो सके. (Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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