भारत में लगभग 4.8 मिलियन ट्रांसजेंडर लोग रहते हैं. जिसमें से ज्यादातर महिलाएं मानसिक रूप से बीमार हैं. हाल ही की स्टडी में इसका खुलासा हुआ है कि भारत में ट्रांस महिलाएं डिप्रेशन और एंग्जायटी का सामना कर रही हैं.
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जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ इंडिया की एक स्टडी के अनुसार, ट्रांस महिलाएं मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों और सामाजिक अस्वीकृति के कारण मानसिक तौर पर नकारात्मक रूप से प्रभावित हैं. इस शोध के अनुसार, ट्रांस महिलाओं को डिप्रेशन, चिंता, और आत्महत्या जैसे विचारों से जूझना पड़ता है.
शोध में यह भी सामने आया है कि उन्हें सामाजिक बहिष्कार, भेदभाव, और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी का सामना करना पड़ता है. यह अध्ययन भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर आधारित ट्रांस महिलाओं पर केंद्रित अनुसंधान की कमी की ओर भी इशारा करता है.
शोध में क्या खुलासा हुआ?
जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ इंडिया और उनके वैश्विक सहयोगियों द्वारा किए गए इस शोध में ट्रांस महिलाओं के जीवन में सामाजिक अस्वीकृति, भेदभाव, और शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का गहराई से विश्लेषण किया गया है. शोध में बताया गया कि ट्रांस महिलाओं को अक्सर परिवार और समाज से नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है, जिससे उनका आत्म-सम्मान गिर जाता है. स्कूलों में उत्पीड़न के कारण कई ट्रांस महिलाएं पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो जाती हैं, जिसके कारण उन्हें शिक्षा और स्थिर रोजगार की कमी होती है. इसके परिणामस्वरूप, कई ट्रांस महिलाएं जीवित रहने के लिए भीख मांगने या सेक्स वर्क का सहारा लेने पर मजबूर हो जाती हैं.
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मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव
इस शोध में यह भी सामने आया है कि ट्रांस महिलाओं को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्याएं होती हैं. भेदभाव और अस्वीकृति के कारण उनमें डिप्रेशन और गंभीर चिंता की स्थिति पैदा होती है. इसके अतिरिक्त, आत्महत्या जैसे विचारों का सामना भी कई ट्रांस महिलाएं करती हैं. स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में भी भेदभाव एक बड़ा मुद्दा बनकर सामने आया है. अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं में ट्रांस महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और चिकित्सा सहायता की कमी की घटनाएं आम हैं, जिससे उनकी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य जरूरतों को नजरअंदाज किया जाता है.
समाज में बदलाव की आवश्यकता
डॉ. संध्या कनक यतिराजुला, जो इस शोध में प्रोग्राम लीड-मानसिक स्वास्थ्य के रूप में शामिल थीं, ने कहा कि यह शोध इस बात पर जोर देता है कि भारत जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में ट्रांस महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर पर्याप्त शोध की कमी है. वैश्विक अध्ययन आमतौर पर एचआईवी जैसे शारीरिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर केंद्रित होते हैं, जबकि मानसिक स्वास्थ्य की आवश्यकताओं को नजरअंदाज किया जाता है. डॉ. यतिराजुला ने यह भी कहा कि ट्रांस महिलाओं के जीवन पर इसके प्रभाव को दूर करने के लिए तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है.
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समाज में बदलाव की दिशा में कदम
अध्ययन में यह भी सुझाव दिया गया है कि ट्रांस महिलाओं के लिए सामाजिक समर्थन, स्वीकृति, शिक्षा और रोजगार के अवसर प्रदान करना उनके मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में सहायक हो सकता है. इसके साथ ही, लिंग-सत्यापन नीतियों में बदलाव की आवश्यकता है, ताकि समावेशिता और समानता को बढ़ावा दिया जा सके. शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि ट्रांस महिलाओं के लिए ऐसे सुरक्षित स्थानों की आवश्यकता है, जहां उन्हें सम्मान और महत्व दिया जाए.
-एजेंसी-