घर की हवा में कौन घोल रहा है जहर? IIT की स्टडी में हो गया चौंकाने वाला खुलासा
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घर की हवा में कौन घोल रहा है जहर? IIT की स्टडी में हो गया चौंकाने वाला खुलासा

Plastic is working like Poison: WHO के मुताबिक विश्व के 99% लोग साफ हवा में सांस लेने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और मजबूरी में जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं. इसकी वजह एक चीज है. एक ऐसी चीज जो आपके घर को प्रदूषित कर रही है और ये चीज आपके घर के हर कोने में मौजूद है. आपके किचन से लेकर बाथरूम तक मौजूद उस चीज ना नाम है प्लास्टिक.

घर की हवा में कौन घोल रहा है जहर? IIT की स्टडी में हो गया चौंकाने वाला खुलासा

Plastic is working like Poison: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक विश्व के 99% लोग साफ हवा में सांस लेने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और मजबूरी में जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं. जहरीली हवा में सांस लेने की बात करते ही हमें सबसे पहले गाड़ियों और फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं नजर आता है, लेकिन आज हम आपको एक ऐसी चीज के बारे में बताने जा रहे हैं जो आपके घर को प्रदूषित कर रही है और ये चीज आपके घर के हर कोने में मौजूद है. आपके किचन से लेकर बाथरूम तक मौजूद उस चीज ना नाम है प्लास्टिक.

घर में दिखने वाली चीजें नहीं हैं सुरक्षित

प्लास्टिक के डिब्बे, कॉस्मेटिक्स - डिसइंफेक्टेंट्स - ये आपके घर में मौजूद वो चीजे हैं जो आपको बीमार कर रही हैं और आपको इसका अहसास भी नहीं हो रहा. गुजरात के दो शहरों गांधीनगर और अहमदाबाद में हुई एक स्टडी में घर में मौजूद प्रदूषण के कारणों की विस्तार से पड़ताल की गई. इस स्टडी में सामने आया है कि घर में ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो सुरक्षित दिखती तो हैं लेकिन दरअसल सुरक्षित नहीं हैं.

स्टडी में हुआ खुलासा

IIT गांधीनगर ने अमेरिका की दो यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर ये स्टडी की है. इस स्टडी में घर में ऐसे 69 कंपाउंड मिले जो प्रदूषण फैलाते हैं और आपके घर की साफ हवा में जहर घोलने का काम करते हैं. अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी के रिसर्चर और आईआईटी गांधीनगर के रिसर्चर की ये स्टडी भारत के शहरी घरों में प्रदूषण के स्त्रोत तलाशने पर की गई. स्टडी में पाया गया कि भारतीय घरों में ऐसे 69 केमिकल कंपाउंड पाए जाते हैं, जिन्हें Volatile Organic Compound या VOC भी कहा जाता है. ये केमिकल्स हवा को जहरीला बनाकर आपको थकान का अनुभव करवा सकते हैं. सिरदर्द और घबराहट जैसी परेशानियां दे सकते हैं और ज्यादा मात्रा में पाए जाने पर ये केमिकल्स कैंसर की वजह भी बन सकते हैं.

मौसम से भी पड़ता है फर्क

गांधीनगर और अहमदाबाद के 26 घरों में इस स्टडी को सीजन के हिसाब से गर्मियों और सर्दियों में बांटकर किया गया. स्टडी में सामने आया कि सर्दियों में VOC की मात्रा गर्मियों की तुलना में ज्यादा है. इसकी वजह सर्दियों में घरों का ज्यादातर बंद रहना भी हो सकती है. यानी कम वेंटिलेशन होने पर ये केमिकल्स घर में ही ट्रैप हो जाते हैं. सर्दियों में केमिकल्स की मात्रा 327 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर तक मिली. जबकि गर्मियों में ये केमिकल्स 150 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर तक थे. इस स्टडी को लेकर हमने गुजरात के गांधीनगर में मौजूद विशेषज्ञों से बात की. हमारी टीम ने अमेरिका के ड्यूक यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों से भी संपर्क किया. आपको उन एक्सपर्ट्स की राय जरूर जाननी चाहिए जिन्होंने ये पूरी रिसर्च की है.

स्टडी में पाया गया कि घर के अंदर तापमान ज्यादा हो तो केमिकल्स भी ज्यादा रिलीज होते हैं और अगर घर में वेंटिलेशन ठीक ना हो जैसा कि सर्दियों में घरों के बंद रहने पर होता है तो धुएं और केमिकल्स से होने वाला प्रदूषण बढ़ जाता है. 

मई और जनवरी की तुलना

जैसे मई के महीने में प्लास्टिक में मौजूद केमिकल्स सामान से पैदा होने वाला प्रदूषण 42% था जबकि जनवरी के महीने में केवल 4%. गर्मियों में तापमान ज्यादा होने पर प्लास्टिक भी गर्म होकर पिघलने लगता है. लेकिन घर में बनने वाले खाने से जलने वाला तेल हो या धुआं, ये प्रदूषण जनवरी में 29 प्रतिशत था जबकि मई के महीने में 16%. इसी तरह कॉस्मेटिक, डिसइंफिक्टेंट्स जैसे कन्जयूमर सामान से जनवरी में 10 प्रतिशत प्रदूषण हो रहा था जबकि मई में 4%.

कैंसर को निमंत्रण है प्रदूषण

इन सामानों से होने वाले प्रदूषण से शुरुआत में ज्यादा परेशानी नहीं होती. इसे आप धीमे जहर की तरह समझ सकते हैं. गले में खराश से शुरुआत होती है. लेकिन जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है वैसे वैसे ये परेशानी बढ़कर कैंसर तक पहुंच सकती है.

फेफड़ों तक पहुंच चुकी है प्लास्टिक

हाल ही में  ब्रिटेन की हल यूनिवर्सिटी की रिसर्च में सामने आया है कि प्लास्टिक लोगों के फेफड़ों तक जा पहुंचा है. WHO के अनुमान के मुताबिक हर साल 70 लाख लोगों की मौत जहरीली हवा से होती है. आपके द्वारा उपयोग की गई प्लास्टिक हवा में मिलने के बाद वापस आपके नाक और Larynx जिसे विंड पाइप भी कहा जाता है. उसके माध्यम से फेफड़ो में प्रवेश कर जाती है और फेफड़े में ही चिपक जाती है. वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल विश्व में 24 करोड़ टन प्लास्टिक का कूड़ा बनाता है. यानी हर साल विश्व का एक आदमी 30 किलो से ज्यादा प्लास्टिक का कूड़ा फेंकता है.

व्यक्ति के फेफड़ों में रहने वाली प्लास्टिक लोगों को अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और दूसरी सांस सम्बन्धी बीमारी मुफ्त में दे सकती है. फेफड़ों में फंसी यह प्लास्टिक हार्ट अटैक और कैंसर का भी एक कारण बन सकती है. 

कैसे करें बचाव?

प्लास्टिक के बर्तन में गर्म खाना ना खाएं, प्लास्टिक की जगह स्टील के बर्तन या फिर पत्ते से बनी थाली का प्रयोग करें. साथ ही जितना हो सके कुल्हड़ का प्रयोग करें. प्लास्टिक के समान को खुले में ना फेंके. घर से निकलते समय पानी को तांबे, स्टील या ग्लास की बोतल में रखें.

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