अब तो है इश्क़-ए-बुताँ में ज़िंदगानी का मज़ा जब ख़ुदा का सामना होगा तो देखा जाएगा
लोग कहते हैं कि बदनामी से बचना चाहिए कह दो बे उसके जवानी का मज़ा मिलता नहीं
उन्हीं की बे-वफ़ाई का ये है आठों-पहर सदमा वही होते जो क़ाबू में तो फिर काहे को ग़म होता
इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है
आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते अरमान मिरे दिल के निकलने नहीं देते
होनी न चाहिए थी मोहब्बत मगर हुई इश्क़-ए-बुताँ का दीन पे जो कुछ असर पड़े अब तो निबाहना है जब इक काम कर पड़े
इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है पर करूँ क्या अब तबीअत आप पर आई तो है
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
हल्क़े नहीं हैं ज़ुल्फ़ के हल्क़े हैं जाल के हाँ ऐ निगाह-ए-शौक़ ज़रा देख-भाल के
मरना क़ुबूल है मगर उल्फ़त नहीं क़ुबूल दिल तो न दूँगा आप को मैं जान लीजिए
इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है पर करूँ क्या अब तबीअत आप पर आई तो है
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना
किस नाज़ से कहते हैं वो झुँझला के शब-ए-वस्ल तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते