सर्वोच्च न्यायालय ने हथियार रखने और शक्ति प्रदर्शन के तौर पर उसे दिखाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जाहिर की है. कोर्ट ने यूपी सरकार से जवाब मांगा है.
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अरविंद कुमार सिंह : अक्सर आप ऐसे लोगों को बंदूक और रिवॉल्वर लेकर चलते देखते हैं जिनकी सुरक्षा को कोई खतरा आदि नहीं होता. बल्कि ऐसा वह स्टेटस सिंबल और दिखावे के लिए करते हैं. कुछ इसी तरह बारात में लोग फायरिंग कर एक झूठी शान की नुमाइश करते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश में गैर लाइसेंसी हथियार के रखने और इस्तेमाल के बढ़ते मामलों पर स्वत: संज्ञान लिया है. कोर्ट ने कहा कि इस तरह का ट्रेंड खतरनाक है. कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा है कि अभी तक गैरकानूनी हथियार रखने और इसके इस्तेमाल के आरोप में आर्म्स एक्ट के तहत कितने मामले दर्ज किये गए है. इसके साथ ही यूपी सरकार को यह भी बताना है कि वो गन कल्चर की इस बीमारी को जड़ से हटाने के लिए क्या कोशिश कर रही है.
दरअसल जस्टिस के एम जोसेफ और जस्टिस बी वी नागरत्ना की बेंच ने सामने एक शख्स की जमानत अर्जी सुनवाई के लिए लगी थी जिसमे आरोपी पर गैरकानूनी हथियार रखने का आरोप था. राजेंद्र सिंह नाम का यह आरोपी पांच साल से ज्यादा का वक्त जेल में गुजार चुका है. इस जमानत अर्जी के दौरान बेंच ने स्वत: संज्ञान लेते हुए यूपी सरकार से आर्म्स एक्ट के तहत की गई कार्रवाई का ब्यौरा मांग लिया.
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जज ने दिया केरल उदाहरण
जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा कि अमेरिकी संविधान के मुताबिक हथियार रखना वहां मूलभूत अधिकार है, लेकिन हमारे यहां ऐसा नहीं है. हमारे संविधान निर्माताओं ने अपने विवेक से देश के नागरिकों को ऐसा कोई अधिकार देना उचित नहीं समझा है.जस्टिस जोसेफ के मुताबिक मैं केरल से हूं. वहां ऐसे मामले बहुत कम देखने सुनने को मिलते है. जस्टिस बी वी नागरत्ना ने कहा कि गन कल्चर दरअसल सामन्तवादी सोच का परिचायक है.
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