एक साल से अटका RO-ARO Exam, जानें नार्मलाइजेशन प्रक्रिया पर अब क्यों बवाल
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एक साल से अटका RO-ARO Exam, जानें नार्मलाइजेशन प्रक्रिया पर अब क्यों बवाल

RO-ARO Exam: यूपी लोकसेवा आयोग के बाहर 11 नवंबर से अभ्यर्थियों का प्रदर्शन जारी है. अभ्यर्थी दो पाली में परीक्षा और नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया के खिलाफ लगातार आंदोलनरत हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया क्या होती है.

एक साल से अटका RO-ARO Exam, जानें नार्मलाइजेशन प्रक्रिया पर अब क्यों बवाल

RO-ARO Exam Controversy: प्रयागराज में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) के बाहर प्रतियोगी छात्रों का विरोध प्रदर्शन जारी है. आरओ-एआरओ और पीसीएस परीक्षाओं में शामिल होने वाले सैकड़ों छात्र ‘वन डे-वन शिफ्ट’ में परीक्षा आयोजित करने और नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया को हटाने की मांग कर रहे हैं. छात्रों का कहना है कि परीक्षा प्रणाली में हो रहे बदलाव उनकी मेहनत और भविष्य पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं. 

क्यों हो रही 'वन डे-वन शिफ्ट' की मांग ?
यूपी लोकसेवा आयोग 7 और 8 दिसंबर को RO- ARO के 411 पदों के लिए 41 जिलों में परीक्षा आयोजित करने जा रहा है. लेकिन छात्रों की मांग है कि इस परीक्षा को सभी 75 जिलों में एक ही दिन एक ही शिफ्ट में कराया जाना चाहिये, ताकी परीक्षा निष्पक्ष और पारदर्शी हो सके. अनुमान है कि आरओ-एआरओ परीक्षा में लगभग 10 लाख छात्र बैठेंगे. क्योंकि आयोग परीक्षा को दो दिन अलग-अलग पाली में करा रहा है इसलिए नॉर्मलाइजेश प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाएगा. जबकि छात्रों का कहना है कि अगर परीक्षा एक ही दिन होती है तो नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया की जरूरत नहीं पड़ेगी. 

सुप्रीम कोर्ट का हवाला और परीक्षा नियमों में बदलाव पर आपत्ति
छात्रों का कहना है कि एक बार परीक्षा प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद नियमों में बदलाव नहीं होना चाहिए. वे सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए बताते हैं कि किसी भी परीक्षा के नियम केवल परीक्षा प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही बदले जा सकते हैं. परीक्षा के दौरान नियम बदलने से छात्रों की तैयारी पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और उनकी मेहनत पर सवाल उठते हैं. छात्रों का मानना है कि नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया उनकी योग्यता के साथ न्याय नहीं करती है. इससे उन छात्रों को नुकसान हो सकता है जो योग्य होते हैं लेकिन उनकी मार्किंग शिफ्ट के हिसाब से प्रभावित हो जाती है. 

क्या है नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया 
किसी एग्जाम का प्रश्नपत्र कितना कठिन है इसके हिसाब से अंक निर्धारित करने की प्रक्रिया को नॉर्मलाइजेशन कहा जाता है. उदाहरण के तौर पर किसी एक शिफ्ट में रमेश नाम के छात्र ने 150 में 120 अंक प्राप्त किये हैं और उसी शिफ्ट में 700 अन्य छात्र भी हैं जिन्होंने रमेश के बराबर या उससे कम अंक प्राप्त किये हैं. तो रमेश की पर्सेंटाइल 700 को 1000 से भाग देने और फिर 100 से गुणा करने के बाद मिलेगी.  सामान्यता ऐसा इसलिए किया जाता है कि किसी परीक्षा के हर पेपर के लेवल में थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है. 

एक उदाहरण से समझिये 
मान लीजिए कोई परीक्षा तीन शिफ्ट में होती है. हर शिफ्ट में छात्रों की संख्या अलग-अलग होती है, चाहें भले यह पहले से तय ना हो क्योंकि कुछ छात्र अनुपस्थित भी रह जाते हैं.  ऐसे में अगर पहली शिफ्ट में 1000 दूसरी में 1500 और तीसरी शिफ्ट में 2000 छात्र हैं तो जिस शिफ्ट में 2000 हजार छात्र हैं तो वहां की पर्सेंटाइल अलग रहेगी. ऐसे में उन छात्रों को नुकसान हो जाता है जिन्होंने अधिक अंक हासिल किये हों. 

साथ ही सामान्य ज्ञान (General Science) जैसे विषय में यह प्रक्रिया और भी असर डालती हैं क्योंकि जीएस के सवाल जिसको पता है उनके लिए आसान और जिन्हें नहीं पता उनके लिए मुश्किल लगते हैं. और नॉर्मलाइजेशन में यह योग्यता ठीक से आंकी नहीं जा पाती है जिससे कुछ छात्रों के साथ अन्याय हो सकता है. 

नॉर्मलाइजेशन  से कैसे हो सकता है अन्याय
नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया मुख्य परीक्षा में तो लागू की जा सकती है, लेकिन प्री एग्जाम में नहीं. प्री एग्जाम केवल एक स्क्रीनिंग प्रक्रिया है और इसमें सामान्य योग्यता परखना ही होता है. इस परीक्षा में लड़ाई केवल एक-एक अंक की होती है, और इस स्तर पर नॉर्मलाइजेशन लागू करना योग्य छात्रों के साथ अन्याय हो सकता है. 

छात्रों की मांग 
प्रदर्शनकारी छात्रों का स्पष्ट कहना है कि जब तक उन्हें आयोग की ओर से लिखित आश्वासन नहीं मिलेगा, वे विरोध जारी रखेंगे. उनका मानना है कि यदि परीक्षा एक ही दिन एक शिफ्ट में होती है, तो इससे परीक्षा की पारदर्शिता और निष्पक्षता बनी रहेगी. इसके साथ ही वे चाहते हैं कि परीक्षा नियमों में बदलाव की प्रक्रिया पूरी तरह स्पष्ट हो और समय पर लागू की जाए.

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