सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा 70 वकीलों को दिये गये वरिष्ठ पदनाम के खिलाफ याचिका पर शुक्रवार को विचार करने से इनकार कर दिया. ये याचिका जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई.
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सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा 70 वकीलों को दिये गये वरिष्ठ पदनाम के खिलाफ याचिका पर शुक्रवार को विचार करने से इनकार कर दिया. ये याचिका जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई. बेंच द्वारा ये कहे जाने के बाद कि वो याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है, याचिकाकर्ता ने अपनी अर्जी को वापस ले लिया. व्यक्तिगत रूप से कोर्ट पहुंचे याचिकाकर्ता ने दावा किया कि हाईकोर्ट द्वारा वकीलों को इस तरह से सीनियारिटी देने की प्रक्रिया अनुचित है. याचिका में पिछले वर्ष 29 नवंबर की अधिसूचना को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत हाईकोर्ट ने 70 वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया था.
हाईकोर्ट द्वारा 2 जनवरी को वकीलों को वरिष्ठ पदनाम दिए जाने के खिलाफ एक अलग याचिका पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका में न्यायाधीशों के खिलाफ लगाए गए 'अपमानजनक और निराधार आरोपों' पर आपत्ति जताई थी.
याचिका में दिए गए कथनों का उल्लेख करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि इसमें न्यायाधीशों के खिलाफ आरोप लगाए गए हैं.
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याचिका में आरोप लगाया गया कि वकीलों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत करना और उनमें से कुछ को “लाभ और विशेषाधिकार” प्रदान करना समानता की अवधारणा और संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है.
इसमें कहा गया, “इस याचिका में अधिवक्ता अधिनियम की धारा 16 और 23(5) को चुनौती दी गई है, जो वरिष्ठ अधिवक्ताओं और अन्य अधिवक्ताओं के दो वर्ग बनाती है, जिसके परिणामस्वरूप वास्तविक व्यवहार में अकल्पनीय व्यवधान और असमानताएं पैदा हुई हैं, जिनके बारे में संसद ने निश्चित रूप से न तो सोचा होगा और न ही पूर्वानुमान लगाया होगा.” (भाषा)