राजस्थानी भाषा के साहित्यकार डॉ. श्रीकृष्ण ‘जुगनू’, खुद को मानते है अनुवांशिक लेखक
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राजस्थानी भाषा के साहित्यकार डॉ. श्रीकृष्ण ‘जुगनू’, खुद को मानते है अनुवांशिक लेखक

 प्रभा खेतान फाउंडेशन के जरिए ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के सहयोग से ’आखर’ में  रविवार को राजस्थानी भाषा के साहित्यकार श्रीकृष्ण ‘जुगनू’ से उनके कृतित्व और व्यक्तित्व पर कला समीक्षक एवं चित्रकार चेतन औदिच्य ने साहित्य के विभिन्न पक्षों पर बातचीत की.

 राजस्थानी भाषा के साहित्यकार डॉ. श्रीकृष्ण ‘जुगनू’, खुद को मानते है अनुवांशिक लेखक

Jaipur: प्रभा खेतान फाउंडेशन के जरिए ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के सहयोग से ’आखर’ में  रविवार को राजस्थानी भाषा के साहित्यकार श्रीकृष्ण ‘जुगनू’ से उनके कृतित्व और व्यक्तित्व पर कला समीक्षक एवं चित्रकार चेतन औदिच्य ने साहित्य के विभिन्न पक्षों पर बातचीत की.  अपने अनुभवों को साझा करते हुए श्रीकृष्ण ‘जुगनू’ ने बताया कि, मेरे पिताजी ने अपने जीवनकाल ने 1 लाख से अधिक भजनों को लिखा, उनसे प्रेरित होकर ही लिखने की प्रेरणा जाग्रत हुई. लेखन मुझे विरासत में मिला है और कविताएं मेरे खून में है, इसलिए मैं खुद को एक अनुवांशिक लेखक मानता हूं. मेरी पहली किताब सन् 2003 में प्रकाशित हुई और अभी तक 200 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. उन्होंने बताया कि संस्कृत के अलावा पाली, हिन्दी व अंग्रेजी भाषाओं में भी लेखन किया है.

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कौन है श्रीकृष्ण ‘जुगनू’
राजस्थान के चित्तौडगढ़ जिले के आकोला ग्राम में जन्में श्रीकृष्ण ‘जुगनू’ ने कविता लेखन से अपनी शुरूआत की थी. उनके अनुसार राजस्थान बोलियों का संग्रहालय है और वेद से लेकर पुराणों और मानवीय महत्व के अनेक ग्रंथ राजस्थान में है. राजस्थानी भाषा और राजस्थान ने देश को भाषा और ग्रंथ संग्रह के संस्कार दिये है. श्रीकृष्ण ‘जुगनू’ ने आगे बताया कि उदयपुर से चितौड़ तक बहने वाली बेड़च नदी को वह अपनी मां मानते थे और बाकी सभी नदियों को अपनी मासी के रूप में मानते थे.

कार्यक्रम के दौरान श्रीकृष्ण ‘जुगनू’ ने अपनी प्रमुख पुस्तकों ‘चितौड़गढ़ का इतिहास’, ‘मेवाड़ का प्रारम्भिक इतिहास’ और ‘लिछमी पण म्हारी लक्ष्मण कार और गीत म्हारा’ कविताओं को पाठ किया.  श्रीकृष्ण ‘जुगनू’ का जन्म 2 अक्टूबर 1964 को राजस्थान के चित्तौडग़ढ़ जिले के आकोला ग्राम में हुआ. इन्होने प्राचीन भारतीय इतिहास, हिंदी एवं अंग्रेजी में अधिस्नातक तक सम्पूर्ण शिक्षा स्वामपाठी स्तर पर पूरी की तथा मेवाड़ प्रदेश का हीड़ लोकसाहित्य में इन्होने पीएचडी हासिल की है.

 1994 में श्रीकृष्ण ने सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय, उदयपुर से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा एवं शिक्षा स्नातक पूरा किया. उदयपुर जिले की तहसील गिरवा में सामान्य शिक्षक रहने के बाद इन्हे राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर से 1982 में नवोदित प्रतिभा प्रोत्साहन पुरस्कार से सम्मानित किया गया. डॉ. श्रीकृष्ण ‘जुगनू’ की रचनायें मूलतः हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी और राजस्थानी में होती है और इनकी लगभग 200 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. इन्हे 2008  में महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन से महाराणा कुम्भा सम्मान से भी सम्मानित किया गया है. आकाशवाणी और दूरदर्शन से कहानी-काव्यपाठ, वार्ता, रूपकों, साक्षात्कार का 1983 से समय-समय पर प्रसारण हो रहा है.

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इससे पूर्व आखर में प्रतिष्ठित राजस्थानी साहित्यकारों डॉ. आईदान सिंह भाटी, डॉ. अरविंद सिंह आशिया, रामस्वरूप किसान, अंबिका दत्त, मोहन आलोक, कमला कमलेश, भंवर सिंह सामौर, डॉ. गजादान चारण, ठाकुर नाहरसिंह जसोल, कल्याण सिंह शेखावत आदि के साथ साहित्यिक चर्चा की जा चुकी है.

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