Rajasthan News: बिश्नोई समाज से जुड़ा हुआ लॉरेंस बिश्नोई सलमान खान को मारने की धमकी कई बार दे चुका है और हाल ही में बाबा सिद्दीकी के मर्डर का जिम्मा भी लॉरेंस बिश्नोई ले चुका है. वहीं राजस्थान से भी बिश्नोई समाज के बड़े नेता लगातार प्रतिक्रिया दे रहे हैं.
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Rajasthan News: बिश्नोई समाज से जुड़ा हुआ लॉरेंस बिश्नोई सलमान खान को मारने की धमकी कई बार दे चुका है और हाल ही में बाबा सिद्दीकी के मर्डर का जिम्मा भी लॉरेंस बिश्नोई ले चुका है. इस मामले में कई आरोपी पकड़े जा चुके हैं, कई अभी भी फरार हैं. बाबा सिद्दीकी के मर्डर से दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में हड़कंप मचा हुआ है.
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वहीं राजस्थान से भी बिश्नोई समाज के बड़े नेता लगातार प्रतिक्रिया दे रहे हैं. बाबा सिद्दीकी, काला हिरण, सलमान खान, लॉरेंस बिश्नोई और बिश्नोई समाज पिछले कुछ दिन से इन कुछ शब्दों ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है.
बिश्नोई समाज जो प्राकृतिक संरक्षण और वन्य जीवों के प्रति अपनी निष्ठा के लिए जाना जाता है. वहीं बिश्नोई समाज अपने अंतिम संस्कार की प्रक्रिया के लिए भी एक अलग पहचान रखता है. बिश्नोई समाज के लोग गुरु जम्भेश्वर के 29 नियमों का बखूबी पालन करते हैं, जिसमें वन और जीव संरक्षण पर ज्यादा जोर दिया गया है.
देश में अगर बिश्नोई समाज की मौजूदगी की बात करें, तो पूरे देश में बिश्नोई समाज के करीब 13 लाख से ज्यादा लोग रह रहे हैं. इनमें सबसे ज्यादा 9 लाख राजस्थान में और करीब 2 लाख हरियाणा में रह रहे हैं. उसके बाद कारी के अन्य राज्यों का नंबर आता है. हम सभी जानते हैं कि बिश्नोई समाज पेड़-पौधे और जीव-जंतुओं के संरक्षण के लिए हमेशा प्रयासरत रहा है.
लेकिन बिश्नोई समाज से जुड़े कुछ ऐसे नियम हैं, जो बिल्कुल अलग और हैरान करने वाले हैं. उनमें सबसे ज्यादा अलग बिश्नोई समाज के अंतिम संस्कार की है. बिश्नोई समाज के पास खुद के श्मशान घाट, कब्रिस्तान या मोक्ष धाम नहीं है. तो फिर ऐसे में वे लोग अंतिम संस्कार कैसे करते हैं.
बिश्नोई समाज में अंतिम संस्कार के लिए चिता नहीं बनाई जाती है. बिश्नोई समाज में मृतक को दफनाने की परंपरा है. जिसे "मिट्टी लगाना" कहा जाता है. इस प्रक्रिया के तहत शव को पैतृक भूमि पर गढ्ढा खोदकर दफनाया जाता है. बिश्नोई समाज का मानना है कि शव को जलाने से लकड़ी की आवश्यकता पड़ती है, जिससे हरे पेड़ों की कटाई होती है और पर्यावरण को हानि पहुंचती है. इसलिए वो मृतक को दफनाने की परंपरा अपनाते हैं.
बिश्नोई समाज में जब किसी सदस्य का निधन होता है, तो शव को जमीन पर रखा जाता है और उसे छने पानी में गंगाजल मिलाकर नहलाया जाता है. इसके बाद शव को कफन पहनाया जाता है. जिसमें महिलाओं के लिए लाल या काले और पुरुषों के लिए सफेद कपड़े का उपयोग होता है. शव को अर्थी पर नहीं ले जाया जाता है. अर्थी के बजाय मृतक के बेटे या भाई शव को कांधे पर लेकर अंतिम संस्कार स्थल तक जाते हैं.
गढ्ढा खोदने की प्रक्रिया में शव को घर में ही दफनाया जाता है. उत्तर दिशा की ओर शव के मुंह को करके दफनाया जाता है. साथ ही मृतक के बेटे द्वारा कहा जाता है “यह आपका घर है.” इसके बाद शव को मिट्टी से ढक दिया जाता है. अंतिम संस्कार के बाद गढ्ढे के ऊपर पानी डालकर बाजरी बरसाई जाती है.
शव को कंधा देने वाले लोग उस स्थान पर स्नान करते हैं, जिससे शुद्धिकरण की प्रक्रिया पूरी होती है. इस अनोखे अंतिम संस्कार के जरिये बिश्नोई समाज अपने पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी रुझान को दर्शाता है. जो उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का अभिन्न हिस्सा है.