दुष्कर्म पीड़िता को लेकर एमपी HC का बड़ा फैसला, 24 हफ्ते से ज्यादा का गर्भ हुआ तो लेनी होगी कोर्ट की इजाजत
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दुष्कर्म पीड़िता को लेकर एमपी HC का बड़ा फैसला, 24 हफ्ते से ज्यादा का गर्भ हुआ तो लेनी होगी कोर्ट की इजाजत

MP High Court: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न के मामलों में गर्भपात से जुड़ी नई गाइडलाइन जारी की है. 24 सप्ताह से अधिक के गर्भ को गिराने के लिए हाईकोर्ट की अनुमति जरूरी होगी.

दुष्कर्म पीड़िता को लेकर एमपी HC का बड़ा फैसला, 24 हफ्ते से ज्यादा का गर्भ हुआ तो लेनी होगी कोर्ट की इजाजत

Madhya Pradesh News In Hindi: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िताओं और यौन उत्पीड़न के गर्भपात को लेकर एक आदेश जारी किया है. इसके मुताबिक, अगर किसी पीड़िता का गर्भ 24 हफ्ते से ज्यादा का है तो गर्भपात के लिए हाईकोर्ट से इजाजत लेनी होगी. वहीं मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के तहत दो डॉक्टरों की मंजूरी से 20 से 24 हफ्ते के गर्भ में गर्भपात कराया जा सकता है. डॉक्टरों द्वारा 20 हफ्ते तक का गर्भपात कराया जा सकता है. हाईकोर्ट ने पुलिस, चिकित्सा शिक्षा विभाग और स्टेक होल्डर्स से गाइडलाइन का सख्ती से पालन करने को कहा है.

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स्वत: संज्ञान याचिका
दुष्कर्म पीड़ित महिला या लड़की अगर गर्भवती हो जाती है तो उसे गर्भपात कराने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है. हाल ही में जबलपुर और इंदौर हाईकोर्ट ने कुछ ऐसे मामलों में फैसले दिए जिनमें कुछ विसंगतियां देखने को मिलीं, जिससे समाज में भ्रम की स्थिति पैदा हो रही थी. अब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैथ और जस्टिस विवेक जैन की डिवीजन बेंच ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए स्वत: संज्ञान याचिका पर सुनवाई की.

यदि गर्भ 24 सप्ताह से कम है तो
नई व्यवस्था के तहत हाईकोर्ट ने स्पष्ट नीति बनाई है. इस नीति के अनुसार अगर गर्भ 24 सप्ताह से कम है तो पुलिस पीड़िता की एमएलसी करवाएगी और उसे जिला न्यायालय में पेश करेगी. बिना किसी गर्भपात आवेदन के संबंधित न्यायालय पीड़िता को मेडिकल बोर्ड के पास भेजेगा और अगर परिवार सहमत होता है तो जिला न्यायालय वहीं से गर्भपात की अनुमति दे देगा.

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यदि गर्भावस्था 24 सप्ताह से अधिक हो तो क्या करें?
अगर दुष्कर्म पीड़िता का गर्भ 24 सप्ताह से अधिक का है तो उसे पहले जिला न्यायालय में पेश किया जाएगा और जिला न्यायालय उसे हाईकोर्ट भेजेगा. हाईकोर्ट के जज स्वतः संज्ञान लेकर मामले को मेडिकल बोर्ड को भेजेंगे और परिवार के तैयार होने पर ही गर्भपात की इजाजत दी जाएगी.  डॉक्टर भ्रूण का डीएनए सैंपल सुरक्षित रखेंगे ताकि मामले में सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सके.

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