मोदी की मुहिम से सहमा चीन..ग्लोबल साउथ का मुखिया बनने की ख्वाहिश, क्या पुतिन देंगे साथ?
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मोदी की मुहिम से सहमा चीन..ग्लोबल साउथ का मुखिया बनने की ख्वाहिश, क्या पुतिन देंगे साथ?

जी 20 की अपार सफलता के बाद भारत ग्लोबल साउथ की जबरदस्त आवाज बनकर उभरा है. इसमें उसका साथ भी कई देशों ने दिया है. लेकिन यह बात शायद चीन को नहीं पच रही है. इसलिए उसने इसकी काट के लिए एक ऐसा पैंतरा चला है कि पुतिन भी चीन पहुंच गए हैं.

मोदी की मुहिम से सहमा चीन..ग्लोबल साउथ का मुखिया बनने की ख्वाहिश, क्या पुतिन देंगे साथ?

Global South: ग्लोबल साउथ की आवाज बनकर उभरा भारत विकासशील देशों के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आवाज उठा रहा है. यहां तक कि पिछले दिनों दिल्ली में हुए जी20 शिखर सम्मेलन में भी भारत ने ग्लोबल साउथ के लिए आवाज उठाई और भारत को इसका भरपूर समर्थन भी मिला है. लेकिन पीएम मोदी की इस मुहिम से चीन सहम गया है और वह यह कतई नहीं चाहेगा कि भारत ग्लोबल साउथ का मुखिया बने. सवाल यह भी है कि रूस का रुख इस पर क्या रहेगा, क्या वह भारत का साथ देगा. इन सबके बीच चीन ने ग्लोबल साउथ को साधने के लिए नया पैंतरा आजमाया है. पहले यह जान लेना जरूरी है कि ग्लोबल साथ क्या है और क्यों भारत को सिकी आवाज कहा जा रहा है.

क्या है ग्लोबल साउथ का पूरा ताना-बाना
असल में आसान शब्दों में कहें तो ग्लोबल साउथ उन देशों को कहा जाता है जो विकसित देशों की तुलना में कम विकसित हैं. इन देशों में आमतौर पर गरीबी, अशिक्षा, और स्वास्थ्य समस्याएं अधिक होती हैं. इसके अलावा, इन देशों को विकसित देशों द्वारा उत्पन्न प्रदूषण और अपशिष्ट से भी नुकसान पहुंचता है. इतना ही नहीं ग्लोबल साउथ के देशों को अक्सर इन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है क्योंकि वे ऐतिहासिक रूप से उपनिवेशवाद का शिकार रहे हैं. उपनिवेशवाद ने इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुंचाया और उनके विकास में बाधा उत्पन्न की हैं. 

कहां से आया ये टर्म 
ग्लोबल साउथ शब्द का प्रयोग अक्सर उन देशों को के लिए किया जाता है जो उत्तरी गोलार्ध में नहीं हैं. यह शब्द पहली बार 1960 के दशक में सामने आया, लेकिन यह 1990 के दशक तक व्यापक रूप से प्रचलित नहीं हुआ. इसका कारण शीत युद्ध का अंत था, जिसके बाद फर्स्ट वर्ल्ड, सेकंड वर्ल्ड और थर्ड वर्ल्ड की अवधारणाएं कम हो गईं. शीत युद्ध के दौरान, दुनिया को तीन भागों में विभाजित किया गया था: पहली दुनिया, दूसरी दुनिया और तीसरी दुनिया. पहली दुनिया में विकसित देश शामिल थे, दूसरी दुनिया में कम्युनिस्ट देश शामिल थे, और तीसरी दुनिया में विकासशील देश शामिल थे.

अब भारत आवाज बना तो चीन चिंता में
चूंकि अब भारत ग्लोबल साउथ की आवाज बन रहा है तो चीन चिंता में है. जी 20 में भी भारत ने ग्लोबल साउथ के लिए आवाज बुलंद की है. इसके जवाब में अब चीन बेल्‍ट एंड रोड परियोजना के 10 साल पूरे होने पर एक व‍िशाल सम्‍मेलन कर रहा है और उसने दुनिया के 130 से ज्‍यादा देशों को बुलाया है. इस परियोजना के माध्यम से चीन ने मध्‍य एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया, पाकिस्‍तान, श्रीलंका, कंबोडिया, इंडोनिशया, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों में अरबों डॉलर के लोन दिए थे. फिलहाल इसमें पुतिन को भी बुलाया गया और वे पहुंच गए. भारत ने जाने से मना किया है. अब देखना होगा कि इस बैठक के बाद चीन ग्लोबल साउथ को कैसे साधने की कोशिश कर रहा है. क्योंकि ग्लोबल साउथ में रूस की भी भूमिका महत्वपूर्ण होगी. 

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