Defence Minister Rajnath Singh: ऐसा पहली बार हुआ है, जब कोई भी भारतीय रक्षा मंत्री मध्य एशियाई देश मंगोलिया पहुंचा है. इस दौरान उन्होंने मंगोलिया के राष्ट्रपति उखनागिन खुरेलसुख से मुलाकात की और दोनों देशों के बीच रणनीतिक द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा भी की.
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DNA Analysis: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तीन दिवसीय विदेश दौरे पर हैं और दौरे की शुरुआत में वो मंगोलिया पहुंचे. ऐसा पहली बार हुआ है, जब कोई भी भारतीय रक्षा मंत्री मध्य एशियाई देश मंगोलिया पहुंचा है. इस दौरान उन्होंने मंगोलिया के राष्ट्रपति उखनागिन खुरेलसुख से मुलाकात की और दोनों देशों के बीच रणनीतिक द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा भी की.
लेकिन उनके इस यात्रा के दौरान सबसे ज्यादा ध्यान जिस तस्वीर ने खीचा. वो मंगोलियाई नस्ल के एक घोड़े की है. सफेद रंग के इस राजसी घोड़े को मंगोलिया के राष्ट्रपति खुरेलसुख ने राजनाथ सिंह को भेंट में दिया है. राजनाथ सिंह ने इस घोड़े के साथ एक तस्वीर भी ट्वीट की और उन्होंने इस घोड़े का नाम तेजस रखा है. भारत के पहले स्वदेशी लड़ाकू विमान का नाम भी तेजस है.
A special gift from our special friends in Mongolia. I have named this magnificent beauty, ‘Tejas’.
Thank you, President Khurelsukh. Thank you Mongolia. pic.twitter.com/4DfWF4kZfR
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) September 7, 2022
पीएम मोदी को भी मिला था इसी नस्ल का घोड़ा
इससे पहले वर्ष 2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगोलिया गए थे, तब उन्हे भी उपहार में इसी नस्ल का एक घोड़ा भेंट किया गया था और ये सिलसिला भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दौर से चल रहा है. 16 दिसंबर 1958 को जब नेहरू मंगोलिया के दौरे पर पहुंचे थे, तो उन्हे भी मंगोलियाई नस्ल के तीन घोड़े भेंट में दिये गए थे.
लेकिन यहां आपके मन में ये प्रश्न भी जरूर उठ रहा होगा कि आखिर इन घोड़ों में ऐसा क्या खास है, कि मंगोलिया ने प्रधानमंत्री मोदी से लेकर राजनाथ सिंह और नेहरू को उपहार देने के लिए इन्ही घोड़ों को चुना. दरअसल ये घोड़े मंगोलिया के इतिहास ही नहीं, उसके भूगोल से भी जुड़े हैं और इसीलिए मंगोलिया में किसी भी बड़े मेहमान को उपहार के तौर पर घोड़ा भेंट किया जाता है और इसे काफी बड़ा सम्मान भी माना जाता है. क्योंकि ये घोड़े मंगोलिया की पहचान हैं और मंगोलियाई लोग करीब चार हज़ार वर्षों से इनका इस्तेमाल सवारी और माल ढुलाई के लिए कर रहे हैं. यही नहीं ये मंगोलियाई साम्राज्य के विस्तार में भी इन घोड़ों की बहुत बड़ी भूमिका रही.
कहा जाता है कि आज से करीब 850 वर्ष पहले 1175 ईसवी में मंगोलिया के शासक चंगेज खान ने इसी नस्ल के घोड़े पर सवार होकर दुनिया के एक बडे हिस्से को जीता था. चंगेज खान ने अपनी घुड़सवार सेना के दम पर कई देशों पर हमले किए और उन पर जीत भी हासिल की. इन्हीं घोड़ों की ताकत और तेज़ी के दम पर चंगेज़ ख़ान ने एशिया और यूरोप के करीब तीन करोड़ तीन लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में अपना सम्राज्य स्थापित कर लिया था और ये पूरी दुनिया के क्षेत्रफल का करीब 22 प्रतिशत हिस्सा था.
और सैन्य अभियानों में इन घोड़ों की अहमियत की वजह से ये मंगोलिया की पहचान बन गए और वहां के लोग आज भी इन घोड़ों को अपने देश के गौरवशाली इतिहास से जोड़ कर देखते हैं.यही वजह है कि मंगोलिया में आज भी इन घोड़ों को बड़ी संख्या में पाला जाता है और वहां हर घर में कम से कम एक घोड़ा रखने की परंपरा है.इसे आप इस तरह से भी समझ सकते हैं कि वर्ष 2020 में इस देश की कुल आबादी 33 लाख थी, जबकि यहां घोडों की कुल संख्या 30 लाख थी.
कहा जाता है कि मंगोलों की इस घुड़सवार सेना से बचने के लिए ही.चीन के पहले सम्राट शी हुआंग को द ग्रेट वॉल ऑफ़ चाइना का निर्माण करना पड़ा था.करीब 2300 वर्ष पूर्व बनाई गई ये दीवार करीब साढ़े 6 हज़ार किलोमीटर लंबी थी और इसे मंगोलों की तरफ़ से होने वाले हमलों को रोकने के लिए ही बनवाया गया था.
हालांकि इस घोड़े की इतनी अहमियत होने के बावजूद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इसे अपने साथ भारत नहीं ला सकेंगे.इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी जब वर्ष 2015 में मंगोलिया में घोड़ा गिफ्ट में मिला था तो उसे वहीं भारतीय दूतावास में ही छोड़ दिया गया था.
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