Delhi Vidhan Sabha Chunav 2025: सीलमपुर सीट से चुनावी अभियान शुरू करने की एक वजह ये भी है कि इस सीट से बीजेपी एक भी चुनाव नहीं जीती है. 1993 से लेकर 2013 तक हुए पांच चुनाव में चौधरी मतीन अहमद जीते. इसमें से तीन बार उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता.
Trending Photos
Delhi Assembly Election 2025: देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है. राजधानी में पिछले तीन लोकसभा और दो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल सका है. इस बार भी जिस तरह का चुनाव अभियान पार्टी का रहा है, उससे ऐसा लगने लगा है कि कांग्रेस के लिए स्थिति कुछ खास बदलने वाली नहीं लग रहीं. दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की रणनीति और मुस्लिम मतदाताओं पर निर्भरता उसे एक बार फिर से चुनौती में डाल सकती है. यदि पार्टी अपनी स्थिति को मजबूत नहीं कर पाई तो यह चुनाव कांग्रेस पर एक और बट्टा लगा सकता है. बता दें कि 2020 में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सात मुस्लिम बहुल सीटों-ओखला, बाबरपुर, मुस्तफाबाद, सीलमपुर, मटियामहल, बल्लीमारान और चांदनी चौक पर जीत दर्ज की थी.
मुस्लिम मतदाताओं पर निर्भरता
दरअसल कांग्रेस ने इस बार मुस्लिम मतदाताओं को आकर्षित करने की रणनीति अपनाई है, लेकिन यह निर्भरता पार्टी के लिए एक दोधारी तलवार साबित हो सकती है. दिल्ली में इस बार कांग्रेस का गैर मुस्लिम बहुल सीटों पर फोकस कम रहा है. इसका अंदाजा नई दिल्ली सीट पर संदीप दीक्षित की उम्मीदवारी से लगाया जा सकता है. भले ही संदीप दीक्षित ने केजरीवाल से यह सीट छीनने के लिए अपनी तरफ से कोई कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन खुद राहुल गांधी ने इस सीट को जीतने के लिए कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई.
ये भी पढ़ें: Delhi Election 2025: किसकी होगी जीत, AAP बरकरार रहेगी या BJP-कांग्रेस पलटेगी बाजी?
सीलमपुर से चुनावी अभियान शुरू
राहुल गांधी ने इस बार नई दिल्ली, कालकाजी जैसी हॉट सीटों को छोड़करअपने चुनावी अभियान की शुरुआत मुस्लिम बहुल सीलमपुर विधानसभा सीट से की. इस क्षेत्र में कांग्रेस को पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ अच्छी जीत मिली थी, जिससे पार्टी को इस बार भी उम्मीदें हैं.
चुनाव अभियान की शुरुआत सीलमपुर से क्यों ?
2013 से पहले कांग्रेस मुस्लिम बहुल सीटों पर आसानी से जीत जाती थी, लेकिन आम आदमी पार्टी के आने के बाद स्थिति थ्री सिक्सटी बदल चुकी है. AAP का कोर वोटर कभी कांग्रेस का हुआ करता था जो अब शिफ्ट हो चुका है. इस बार कांग्रेस की चुनावी रणनीति मुस्लिम बहुल क्षेत्रों पर केंद्रित है, जिसमें बल्लीमारान, सीलमपुर और बाबरपुर जैसी सीटें शामिल हैं. उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली सीलमपुर सीट से चुनावी अभियान शुरू करने की एक वजह ये भी है कि इस सीट से बीजेपी एक भी चुनाव नहीं जीती है. 1993 से लेकर 2013 तक हुए पांच चुनाव में चौधरी मतीन अहमद जीते. इसमें से तीन बार उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता. बाद के चुनावों में ये सीट आम आदमी पार्टी के खाते में चली गई.
सत्ता विरोधी लहर का लाभ मिलने की उम्मीद
कांग्रेस को उम्मीद है कि मुस्लिम मतदाता इस बार पार्टी को समर्थन देंगे. उसका ऐसा मानना है कि पिछले चुनावों में AAP को वोट देने वाले मतदाता अब सत्ता विरोधी लहर और आप विधायकों के खिलाफ गुस्से के चलते कांग्रेस को वोट देने के लिए तैयार हो सकते हैं. ये उम्मीद ऐसे ही नहीं बंधी है. इसके पीछे का कारण कुछ चुनावों में कांग्रेस को मिल रहे मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन है.
ये भी पढ़ें: हरियाणा में श्रमिकों को मिलेगा 2 लाख रुपये तक का ब्याज मुक्त लोन, जानें पूरी जानकारी
असम और पश्चिम बंगाल की जीत को दोहराने की चुनौती
असम की धुबरी लोकसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार रकीबुल हुसैन ने ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के संस्थापक बदरुद्दीन अजमल को 10 लाख से अधिक वोटों के अंतर से हराया. यह सीट देश की सबसे अधिक मुस्लिम जनसंख्या वाली सीटों में से एक है. पिछले तीन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को अजमल के हाथों हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन इस बार उसने आश्चर्यजनक जीत हासिल की है. इसी तरह 2023 में कांग्रेस के लिए एक समान राजनीतिक रुझान पश्चिम बंगाल में देखने को मिला. मुर्शिदाबाद जिले के मुस्लिम बहुल सागरदीघी विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी को हराकर बड़ी जीत दर्ज की.
2021 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी ने इस सीट पर जीत हासिल की थी, जबकि कांग्रेस तीसरे स्थान पर थी, लेकिन विधायक के निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने इस मुस्लिम बहुल सीट पर कब्जा कर सबको चौंका दिया. 2021 में कांग्रेस को 19.45 प्रतिशत वोट मिले थे, जो उपचुनाव में बढ़कर 47.35 प्रतिशत हो गए. अब दिल्ली में असम और पश्चिम बंगाल जैसी रणनीति अपनाकर पार्टी अपना खाता खोलेगी या फिर सबको छोड़कर सिर्फ मुस्लिम बहुल वोटरों पर निर्भरता कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित होगी, इसका पता 8 फरवरी को चुनाव रिजल्ट आने के बाद ही चलेगा.