क्या चंद्रयान-3 के साथ ये उपकरण भेजा जाता, तो प्रज्ञान-विक्रम अभी भी होते एक्टिव?
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क्या चंद्रयान-3 के साथ ये उपकरण भेजा जाता, तो प्रज्ञान-विक्रम अभी भी होते एक्टिव?

Chandrayaan-3: ऐसा करने से अत्यधिक ठंड में भी चंद्रयान-3 का सिस्टम गर्म रहता. हालांकि इस बात की पुष्टि इसरो के किसी जानकार ने नहीं की है बल्कि कई मीडिया रिपोर्ट्स में इस उपकरण के बारे में बताया गया है. 

क्या चंद्रयान-3 के साथ ये उपकरण भेजा जाता, तो प्रज्ञान-विक्रम अभी भी होते एक्टिव?

Pragyan Vikram: भारत का चंद्रयान-3 मिशन सफल रहा और इसरो की शक्ति से पूरी दुनिया वाकिफ हुई. लैंडर विक्रम ने 23 अगस्‍त को चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग की थी. यह वह समय था जब वहां सूरज निकल चुका था. फिर इसके करीब 14 दिन बाद विक्रम और प्रज्ञान ने अपने मिशन को पूरा किया और उन्हें नींद में भेज दिया गया था क्योंकि चांद पर रात हो चुकी थी. फिर जब 21 सितंबर को चांद पर सुबह हुई तो इसरो की तरफ से प्रज्ञान रोवर और विक्रम लैंडर को जगाने की कोशिश भी शुरू कर दी गई थी. लेकिन इस मामले में अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है. ऐसे में कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. कुछ जानकारों का कहना है कि अगर इसके साथ एक ख़ास तरह का उपकरण भेजा जाता तो यह मिशन अब तक चल रहा होता.

दरअसल, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चूंकि चांद पर तापमान बहुत ही कम पाया गया इसलिए प्रज्ञान और विक्रम को एक्टिव रखने के लिए एक प्रकार का हीटर चंद्रयान-3 के साथ भेजा जाना चाहिए था. एक्सपर्ट्स का तर्क है कि इससे पहले कई अन्य देशों की एजेंसियां ऐसा कर चुकी हैं. बताया जा रहा है कि इस हीटर को रोडियोआइसोटोप थर्मो इलेक्ट्रिक जनरेटर या आरटीजी कहते हैं. यह ऐसा उपकरण होता है जो अंतरिक्ष यान के अंदर फिट कर दिया जाता है और उसे मिशन में भेजा जाता है. यह रेडियोधर्मी उपकरण अंतरिक्ष में उपकरणों को गर्मी देता है.

यह छोटे रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जेनरेटर (आरटीजी) के समान हैं. इसके एक उपकरण से कई दशकों तक उपकरण को गर्मी दी जा सकती है. इसके एक किलो प्लूटोनियम से 80 लाख किलोवाट बिजली पैदा की जा सकती है. आरटीजी में कोई चलायमान हिस्सा नहीं होता, इसलिए इसमें सर्विसिंग की जरूरत नहीं होती है. ऐसा करने से अत्यधिक ठंड में भी चंद्रयान-3 का सिस्टम गर्म रहता. हालांकि इस बात की पुष्टि इसरो के किसी जानकार ने नहीं की है बल्कि कई मीडिया रिपोर्ट्स में इस उपकरण के बारे में बताया गया है. 

बता दें कि धरती के 14 दिन के बराबर चांद पर एक दिन होता है और रात की भी कमोबेश यही प्रक्रिया है. चंद्रयान-3 के मिशन का लक्ष्य 14 दिन का ही रखा गया था और यह तय था कि चांद पर जब अगली बार दिन होगा तो शायद ही विक्रम और प्रज्ञान काम कर पाएंगे और वही होता भी दिख रहा है. इधर इसरो के साइंटिस्ट लगातार कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में अगर विक्रम और प्रज्ञान एक्टिव हो जाते हैं, तो ये एक अप्रत्याशित सफलता होगी. जिसकी संभावना ना के बराबर है. क्योंकि मिशन के समय ही वैज्ञानिक बता चुके हैं कि शायद ही प्रज्ञान और विक्रम दोबारा जागेंगे.

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