Nishant Kumar Political CV: पिता 20 साल से मुख्यमंत्री हैं, लेकिन बेटे निशांत कुमार के बारे में कभी रसूख का इस्तेमाल करने या रौब दिखाने की कोई शायद ही खबर आई हो. सादा जीवन जीने वाले निशांत कुमार अमूमन मीडिया से शायद ही बात करते हैं. यह उनकी सादगी जताने के लिए काफी है.
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Nishant Kumar CV: निशांत कुमार वल्द मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उम्र: 49 साल, वैवाहिक स्थिति: अविवाहित, शिक्षा: इंजीनियरिंग, रहन-सहन: सादा. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार का यह एक तरह से बायोडाटा है. शिक्षा के मामले में वह अपने समकालीन तेजस्वी यादव और चिराग पासवान से आगे हैं और 49 साल में भी शादीशुदा न होने की स्थिति में वे राहुल गांधी के समकक्ष प्रतीत होते हैं. हालांकि राहुल गांधी की उम्र निशांत कुमार से ज्यादा है. निशांत कुमार की राजनीतिक हैसियत यह है कि वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे हैं, जो पिछले 20 साल से बिहार की राजनीति के सिरमौर बने हुए हैं. इस तरह निशांत कुमार के पास एक लंबी चौड़ी गौरवपूर्ण विरासत है, जो अब तक बिहार के किसी भी मुख्यमंत्री को नसीब नहीं हुई है. सादा रहन सहन भी राजनीति के अनुकूल है और यह समाजवादी होने का पुख्ता सबूत भी है. अब सवाल यह है कि आज निशांत कुमार के बायोडाटा की हम चर्चा क्यों कर रहे हैं?
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दरअसल, निशांत कुमार आज मीडिया से रूबरू हुए. आम तौर पर वे मीडिया के सामने आने से परहेज करते हैं, लेकिन नए साल के पहले महीने में वे मीडिया से रूबरू होते हुए बिहारवासियों को नए साल की शुभकामनाएं दीं. निशांत कुमार के दादा यानी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पिता रामलखन सिंह वैद्य भी स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं. निशांत कुमार ने शुक्रवार को अपने दादाजी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए श्रद्धांजलि दी और बिहारवासियों को आगामी चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को फिर से जिताने की अपील की. हालांकि इस दौरान वे राजनीति में आने के सवाल को टाल गए.
निशांत कुमार ने कहा, बिहार और देशवासियों को नए साल की शुभकामनाएं. मेरे दादाजी भी स्वतंत्रता सेनानी रहे थे और आजादी के लिए जेल भी गए थे. इसी को लेकर पिताजी ने राजकीय समारोह का आयोजन किया है. नए साल में बिहारवासियों से अपील है कि हो सके तो पिताजी और उनकी पार्टी को वोट करें और फिर से सरकार में लाएं. इस दौरान जब निशांत कुमार से राजनीति में एंट्री को लेकर सवाल पूछे गए तो वे टाल गए.
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निशांत कुमार राजनीति में आते हैं तो क्या होगा?
अगर निशांत कुमार बिहार की राजनीति में आते हैं तो सबसे बड़ा फायदा जेडीयू को होने वाला है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि काफी समय से यह सवाल उठाए जा रहे हैं कि नीतीश कुमार के बाद जेडीयू को कौन संभालेगा? यह सवाल निशांत कुमार की एंट्री के बाद हमेशा के लिए दफन हो जाएगा. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार के बाद जेडीयू का फायदा भाजपा और राजद आपस में बांट लेंगे. जो भाजपा के पक्षधर होंगे, उधर हो जाएंगे और जो राजद के पक्षधर हैं वो लालू प्रसाद यादव की पार्टी के साथ हो लेंगे. निशांत कुमार की राजनीति में एंट्री के साथ ही इन सब विश्लेषण पर विराम लग जाएगा.
कुर्मी और कोइरी वोटबैंक का नहीं होगा बंटाधार
बिहार में कुर्मी और कोइरी का बड़ा वोटबैंक नहीं है. बिहार की पूरी जनसंख्या में ये दोनों जातियां 4.2 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखती हैं. यह कोई बहुत बड़ा नंबर नहीं है, लेकिन यह बिहार की राजनीति का निर्णायक नंबर है. इसी नंबर के भरोसे नीतीश कुमार पिछले 20 साल से बिहार की राजनीति को नचा रहे हैं. अगर निशांत कुमार राजनीति में आते हैं तो 4.2 प्रतिशत कुर्मी और कोइरी को उनका नया नेता मिल जाएगा और उन्हें किसी दूसरे दलों में अपना नेता नहीं खोजना होगा. अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो कुर्मियों और कोइरियों को भाजपा और राजद के अलावा कांग्रेस में अपना नया नेता देखना होगा. जो नेता जहां प्रभावी होगा, वहां का वोट उस नेता के खाते में चला जाएगा, अन्यथा सब धन बाइस पसेरी वाला हाल होगा.
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निशांत की एंट्री से भाजपा और राजद खो देंगे बड़ा मौका
आज की तारीख में स्थिति यह है कि भाजपा और राजद दोनों समय की नजाकत का इंतजार कर रहे हैं. ये दोनों दल नीतीश कुमार के रिटायरमेंट का इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि दोनों दलों को यह आभास हो गया है कि उनके सक्रिय रहते बिहार की राजनीति में कोई स्कोप नहीं है. नीतीश कुमार ने तो 2020 के विधानसभा चुनाव को ही अंतिम चुनाव घोषित कर दिया था, लेकिन इस बार 2025 में भी एनडीए नीतीश कुमार के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने जा रहा है. जेडीयू तो 2029 तक वैकेंसी फुल होने की बात कहकर राजद को चिढ़ाने का काम कर रही है. इसलिए पिछले दिनों राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने नीतीश कुमार का महागठबंधन में फिर से स्वागत करने की बात कही थी, क्योंकि लालू को भी पता है कि अगर नीतीश कुमार सक्रिय रहे तो फिर तेजस्वी की सरकार की गुंजाइश कम हो जाती है.
निशांत की एंट्री होने पर बड़ा हथियार खो देगी जेडीयू
आज के समय में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बड़ा समाजवादी नेता कोई नहीं है. बाकी समाजवादी नेता परिवारवाद की राजनीति कर रहे हैं, लेकिन नीतीश कुमार के बारे में आज की तारीख में कोई भी यह आरोप नहीं लगा सकता कि वो परिवारवादी राजनीति करते हैं. इस मामले में नीतीश कुमार समाजवाद की कसौटी पर 24 कैरेट खरा उतरते हैं. वे चुनाव प्रचार और अन्य सम्मेलनों में इस बात को भुनाते भी हैं. परिवारवाद को लेकर नीतीश कुमार का स्टैंड बहुत क्लीयर रहता है और इसको लेकर वे लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार को निशाना बनाते रहते हैं. अगर निशांत की राजनीति में एंट्री होती है तो नीतीश कुमार और जेडीयू का परिवारवाद के खिलाफ बड़ा हथियार भोथरा निकल जाएगा और वे आगे से राजद और लालू प्रसाद के परिवार के खिलाफ ऐसे आरोप नहीं लगा पाएंगे.
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निशांत कुमार के बारे में
पिता 20 साल से मुख्यमंत्री हैं पर निशांत ने अपनी ऐसी जिंदगी बनाई है, जो खुद में अलग है. निशांत की मां मंजू सिन्हा का 2007 में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था. वह एक स्कूल टीचर थीं. निशांत की स्कूलिंग पटना के सेंट कैरेंस स्कूल से शुरू हुई लेकिन जब एक टीचर ने वहां उनको मार दिया था, जिससे वे घायल हो गए थे. इसके बाद नीतीश कुमार ने बेटे का एडमिशन उत्तराखंड के मसूरी के मानव भारती इंडिया इंटरनेशनल स्कूल में करवा दिया था. निशांत ने पटना के केंद्रीय विद्यालय से भी पढ़ाई की. उन्होंने बिरला इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी, मेसरा से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी.