Kashi Gyanvapi Case: काशी ज्ञानवापी केस में आज फैसला सुनाएगा हाईकोर्ट, क्या मिलेगी पूजा-अर्चना की इजाजत?
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Kashi Gyanvapi Case: काशी ज्ञानवापी केस में आज फैसला सुनाएगा हाईकोर्ट, क्या मिलेगी पूजा-अर्चना की इजाजत?

Kashi Gyanvapi Case Updates: काशी ज्ञानवापी केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट आज अहम फैसला सुना सकता है. कोर्ट आज फैसला करेगा कि निचली अदालत इस मामले की सुनवाई कर सकता है या नहीं.

Kashi Gyanvapi Case: काशी ज्ञानवापी केस में आज फैसला सुनाएगा हाईकोर्ट, क्या मिलेगी पूजा-अर्चना की इजाजत?

Kashi Gyanvapi Case Latest Updates: ज्ञानवापी विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का आज यानी मंगलवार को सुबह 10 बजे फैसला आएगा. इस मामले में सिविल वाद की पोषणीयता और एएसआई सर्वे आदेश के खिलाफ कोर्ट में पांच याचिकाएं दाखिल की गई थीं. अर्जी दाखिल करने वालों में मस्जिद की इंतजामिया कमेटी और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड प्रमुख रहे. दो याचिका सिविल वाद की पोषणीयता और दो एएसआई सर्वे आदेश के खिलाफ दाखिल की गई हैं. 

मस्जिद कमेटी ने केस की मंजूरी पर उठाए सवाल

मस्जिद की इंतजामिया कमेटी ने वाराणसी कोर्ट में हिंदू पक्ष द्वारा दाखिल सिविल वाद की पोषणीयता पर सवाल उठाए हैं. कमेटी के मुताबिक वाराणसी कोर्ट को सिविल वाद सुनने का अधिकार नहीं है. कमेटी ने वर्शिप एक्ट 1991 का हवाला देते हुए वाराणसी कोर्ट में दाखिल सिविल वाद की पोषणीयता पर सवाल खड़े किए हैं. इसके साथ ही वाराणसी कोर्ट की ओर से ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे किए जाने के आदेश के खिलाफ दाखिल दो याचिका पर भी हाईकोर्ट फैसला सुनाएगा. 

8 दिसंबर को सुरक्षित रख लिया था फैसला

हाईकोर्ट को यह तय करना है कि वाराणसी ट्रायल कोर्ट सिविल वाद मामले की सुनवाई कर सकता है या नहीं. इस मामले में 8 दिसंबर को जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की बेंच ने सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. आज 19 दिसंबर को सुबह करीब दस बजे फैसला आएगा. हिंदू पक्ष की तरफ से दाखिल सिविल वाद में ज्ञानवापी का विवादित परिसर हिंदुओ को सौंपे जाने व पूजा अर्चना की इजाजत की मांग की गई है.

औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाकर बनवाई थी मस्जिद

हिंदू पक्ष के मुताबिक मुगल बादशाह औरंगजेब ने काशी विशेश्वर नाथ मंदिर को खंडित करके मस्जिद का निर्माण कराया था. हिंदू पक्ष का यह भी कहना है कि विवादित परिसर में आज भी मंदिर के अवशेष मौजूद हैं. मस्जिद कमेटी के वकीलों का तर्क है कि 1991 के एक्ट के मुताबिक 15 अगस्त 1947 के बाद के किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप में बदलाव नहीं किया जा सकता है. अब इस मामले में सभी की निगाहें कोर्ट के फैसले की ओर लगी हुई हैं. 

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