Explainer: मौत के बाद भी दिमाग से यादें वापस लाई जा सकती हैं? क्या कहता है विज्ञान? 5 बड़ी बातें
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Explainer: मौत के बाद भी दिमाग से यादें वापस लाई जा सकती हैं? क्या कहता है विज्ञान? 5 बड़ी बातें

Memory Retrieval Technology: क्या वैज्ञानिकों ने ऐसी कोई तकनीक विकसित कर ली है जिससे मृत्यु के बाद किसी के दिमाग से मेमोरी निकालकर कहीं और स्टोर की जा सके?

Explainer: मौत के बाद भी दिमाग से यादें वापस लाई जा सकती हैं? क्या कहता है विज्ञान? 5 बड़ी बातें

Science News in Hindi: जब कोई व्यक्ति मरता है, तो कुछ साथ लेकर नहीं जाता. यही शाश्‍वत सत्य है लेकिन क्या व्यक्ति ने जीवन भर जो अनुभव कमाया, जो यादें बनाईं, उन्हें मृत्यु के बाद भी सहेजकर रख पाना संभव है? ये अमूल्य यादें उस व्यक्ति के अस्तित्व का मूल हिस्सा होती हैं. लेकिन, व्यक्ति की मृत्यु के साथ ही उसकी यादें भी खो जाती हैं. वैज्ञानिक लंबे समय से इस सवाज का जवाब खोजने में जुटे हैं: क्या किसी मृत व्यक्ति के मस्तिष्क से उसकी यादों को फिर से हासिल करना संभव है? यह सवाल भले ही किसी Sci-Fi फिल्म का प्लॉट लगता हो, लेकिन न्यूरोसाइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि इस दिशा में संभावनाएं नजर आने लगी हैं. 5 प्वाइंट्स में समझें कि ऐसा कर पाना क्यों इतना मुश्किल है.

  1. यादें कहां बनती हैं: हमारी यादें मस्तिष्क के न्यूरॉन्स के माध्यम से बनती हैं. वैज्ञानिक डॉन अर्नोल्ड के अनुसार, यादें 'एंग्राम्स' के रूप में स्टोर होती हैं. ये एंग्राम्स दिमाग में मौजूद 'बायोलॉजिकल स्टोरेज डिवाइस' हैं, जो हमारी शॉर्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म यादों को संभालते हैं. इनका मुख्य स्रोत मस्तिष्क का 'हिप्पोकैम्पस' है, जबकि 'पैरिटल लोब' जैसी अन्य संरचनाएं सेंसर की तरह काम करती हैं. वैज्ञानिकों ने पशुओं में एंग्राम्स का पता लगाने में सफलता पाई है, लेकिन इंसान के मस्तिष्क की जटिलता इसे कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण बनाती है.
  2. न्यूरॉन्स की पहचान: यादें स्थिर नहीं होतीं; वे समय के साथ बदलती हैं और मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों में ट्रांसफर होती रहती हैं. यादें मस्तिष्क में स्थिर नहीं रहतीं. मेमोरी कंसॉलिडेशन प्रक्रिया के दौरान, यादें समय के साथ मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों में स्थिर हो जाती हैं.
  3. यादों का फिर से बनना: कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के मेमोरी एक्सपर्ट, चरन रंगनाथ बताते हैं कि यादें आमतौर पर पूरी घटना का सटीक चित्रण नहीं करतीं. हम केवल अनुभव के कुछ हिस्सों को याद रखते हैं, और बाकी जानकारी मस्तिष्क खुद से जोड़ लेता है. एंग्राम्स, जो यादों को संग्रहीत करते हैं, किसी घटना का सटीक रिकॉर्ड नहीं होते, बल्कि यह केवल उन न्यूरॉन्स का स्थान बताते हैं जो याद से जुड़े होते हैं.
  4. तकनीकी सीमाएं: वर्तमान में ऐसी कोई तकनीक उपलब्ध नहीं है जो मस्तिष्क के न्यूरॉन्स को सटीक रूप से मैप कर सके. इसके लिए एक व्यक्ति के जीवनकाल में यादों की विस्तृत और लगातार ट्रैकिंग करना जरूरी है. उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति अपने पांचवें जन्मदिन को याद कर सकता है, लेकिन वह हर मेहमान या उस दिन के मौसम का विवरण नहीं याद रख सकता.
  5. क्या भविष्य में ऐसा हो सकता है: आज की तकनीक के जरिए तो इंसानी यादों को फिर से हासिल कर पाना संभव नहीं है. अगर भविष्य में ऐसी तकनीक विकसित हो जाती है, तो भी यादों का लगातार गतिशील होना इसे जटिल बना देगा.

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