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मूवी रेटिंग- 2.5
Arjun Kapoor Tabu Starrer: कुत्ते मूवी के एक सीन में पुलिस अधिकारी के रोल में तब्बू अपने पुराने साथी आशीष विद्यार्थी को एक कहानी सुनाती हैं, मेढक के ऊपर बैठकर बिच्छू के नदी पार करने की. वायदे के बावजूद बिच्छू उसे बीच नदी में काट लेता है. मरते-मरते मेंढक पूछता है, बजेगा तो तू भी नहीं, डूब के मरेगा, लेकिन तूने ऐसा क्यों किया? इसमें क्या लॉजिक है? तब बिच्छू कहता है, बात लॉजिक की नहीं करेक्टर की है. विशाल भारद्वाज की आखिरी तीनों मूवीज देख लीजिए, रंगून, पटाखा और मॉर्डन लव मुंबई, जो अब उनका ये करेक्टर बन गया है, शौक के लिए फिल्में बनाना.
उम्मीद पर खरी नहीं उतरेगी फिल्म!
इस फिल्म पर ब्रांडिंग और प्रमोशन के लिए काफी कुछ मिला था, विशाल भारद्वाज का नाम, उनकी लेखनी और म्यूजिक, उनकी चर्चित मूवी ‘कमीने’ का कनेक्शन और सुपरहिट म्यूजिकल धुन, नसीर, आशीष विद्यार्थी, कोंकणा सेन, कुमुद मिश्रा, तब्बू और अनुराग कश्यप जैसे चेहरे और विशाल के खून आस्मान भारद्वाज का डायरेक्शन. फिर भी ये मूवी उम्मीद पर खरी उतरती लग नहीं रही. कहानी है गोपाल (अर्जुन कपूर) नाम के दारोगा और पाजी (कुमुद मिश्रा) नाम के दीवान की, जो एक गैंगस्टर भाऊ (नसीरुद्दीन शाह) के धमकाने पर दूसरे गैंगस्टर की सुपारी लेकर भरी महफिल में उस पर गोलियां बरसा देते हैं. लेकिन पता चलने पर विभाग से निलम्बित हो जाते हैं. ऐसे में कमिश्नर की करीबी पुलिस अधिकारी पम्मी (तब्बू) बहाल करने के लिए एक-एक करोड़ मांगती है. भाऊ की बेटी (राधिका मदान) अपने नौकर के साथ कनाडा भागने के लिए करोडों रुपए के जुगाड़ में लगी है और तीसरी तरफ अपना घर बनाने के लिए पम्मी भी पाजी के साथ मिलकर एक योजना बनाती है.
फिल्म में मोदीजी की एंट्री!
तीनों की एक ही योजना है, एटीएम वैन्स में कैश भरने वाली गाड़ी को लूटने की. एक-एक कर तीनों टीमें उस पर हमला करती हैं और आखिरकार तीनों आमने-सामने आ जाते हैं. अपनी समझ से आस्मान भारद्वाज ने बेहतरीन क्लाइमेक्स के साथ फिल्म को दी एंड पर ले जाने का सोचा था लेकिन जिस तरह मोदीजी की फिल्म में एंट्री होती है, उससे लोग प्रभावित कम होंगे, हंसेंगे ज्यादा. ऐसा लगा कि फिल्म की बस दो लाइन की कहानी है, जिसे जबरन खींचा गया है. आस्मान ने इसमें सारे फॉर्मूले इस्तेमाल किए हैं. कई सारे सितारों को बस दाल में तड़के के तौर पर डाला गया है. आशीष विद्यार्थी ने इतना खामखां का रोल शायद ही किया हो, नसीरुद्दीन शाह भी ट्रेलर में जितना नजर आए, उससे थोड़े से ज्यादा ही मूवी में हैं. बरसाती रातें, गालियां, गोलियां, फैज अहमद फैज की गजल सभी फॉरमूले तो इस्तेमाल किए गए लेकिन लॉजिक का ध्यान कतई नहीं रखा गया है. हां, आप दिमाग घर में रखकर एक स्पीडी मूवी देखने के मूड में हैं, तो शायद आपको पसंद भी आ जाए.
नक्सलियों पर हैं शुरुआती सीन
बीस पच्चीस लोगों का कत्ल करने के बावजूद अर्जुन कपूर और कुमुद मिश्रा को एक दिन की सजा भी नहीं होती है. डकैती की योजना बना रही पुलिस अधिकारी एटीएम वैन के ड्राइवर के घर खुलेआम पहुंचकर उसे गलियों में दौड़ाती है. निलम्बन हटाने के लिए दोनों भ्रष्ट पुलिसवाले इस कदर परेशान दिखाए जाते हैं कि एक आत्महत्या पर उतारू है तो दूसरा कई लाशें गिरा देता है. नक्सली गढ़चिरौली से निकलकर कब मुंबई शहर के आस-पास पहुंच जाते हैं, वो भी पैदल, ये भी खासा दिलचस्प था. जिस तरह विशाल ने ‘हैदर’ के बिस्मिल बिस्मिल गाने में प्राचीन सूर्य मंदिर के दरवाजे पर शैतान खड़ा करके शूट किया था, ‘मटरू की बिजली का मंडोला’ में एक वामपंथी विदेशी नायक का काल्पनिक पात्र डालकर उसका महिमा मंडन किया, इस मूवी में भी वही करेक्टर वो दिखाते हैं, भले ही मूवी उनके बेटे ने निर्देशित की है. इस फिल्म का शुरुआती सीन ही गढ़चिरौली के नक्सलियों पर है जिसमें कोंकणा सेन शर्मा नक्सल लीडर के रोल में हैं और उनको भरपूर डायलॉग मिलते हैं कि वो इस विचारधारा का भरपूर प्रचार कर सकें और उनको सुन रहा पुलिसवाला इसे काटता भी नहीं.
पुलिस वाले इस मूवी पर कर सकते हैं केस?
लाल रंग के आसमान के बैकग्राउंड में आजादी के नारे लगाते नक्सली और कोंकणा सेन की कहानी नक्सलियों का खुलेआम महिमा मंडन है जिसमें कोंकणा एक कहानी भी सुनाती हैं कि जंगल का राजा शेर शिकार के लिए बकरी और कुत्ते की मदद लेता है. बकरी उनके कहने पर शिकार के तीन बराबर के हिस्से करती है. इसे देख शेर गुस्से में उसे खा जाता है और फिर कुत्ते से हिस्से करने को बोलता है. डरकर कुत्ता सारा शिकार उसे देकर खुद बकरी का बचा खुचा मांस खाकर ही खुश हो जाता है. कोंकणा उस पुलिस वाले को बोलती हैं, हम हैं वो बकरी और तुम हो वो कुत्ते और शेर है तुम सबका मालिक. हां, कल को पुलिस वाले इस मूवी पर केस भी कर सकते हैं. फिल्म के कई डायलॉग्स में जैसे उन्हें कुत्ता कहा गया है, मूवी का टाइटिल उनके लिए ही लिखा गया लगता है.
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