Devika Rani: हिंदी सिनेमा में एक्टिंग को नई ऊंचाई देने वाले अशोक कुमार संयोग से फिल्मों में आए. वह 1940 के दशक में बॉम्बे टॉकीज में लैब अस्टिटेंट थे. उसी दौरान स्टूडियो के मालिक हिमांशु राय की खूबसूरत एक्ट्रेस पत्नी देविका रानी अपने को-स्टार के साथ भाग गईं. आगे जो हुआ, उसने हिंदी फिल्मों को नायाब सितारा दिया.
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Devika Rani Story: यह बात शुरू होती है फिल्म जवानी की हवा (1935) से. फिल्म के नाम की तरह ही इसके लीड एक्टर और एक्ट्रेस जवानी की हवा में बह गए. बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो के मालिक हिमांशु राय की पत्नी देविका रानी और उस दौर के हैंडसम एक्ट्रर नजम-उल-हसन इसमें लीड रोल निभा रहे थे. देविका रानी और हसन शूटिंग के दौरान एक-दूसरे के प्यार में पड़ गए. खुद देविका रानी भी बहुत सुंदर थीं और उन्हें अपने समय के के सबसे खूबसूरत तथा बिंदास चेहरों में गिना जाता था. देविका रानी और हसन की दूसरी फिल्म जीवन नैया (1936) की शूटिंग शुरू हुई. इस बार प्यार इतना बढ़ा कि दोनों फिल्म बीच में छोड़कर कलकत्ता भाग गए. चर्चा यही थी कि हिमांशु राय और देविका रानी के बीच सब कुछ ठीक नहीं है. हालांकि दोनों ने फिल्म कर्मा (1933) में उस वक्त सिनेमा के इतिहास का सबसे लंबा किसिंग सीन किया था और आज भी इसकी चर्चा होती है.
विवाहेतर संबंध
हिमांशु राय और देविका रानी के रिश्तों में कड़वाहट में काफी हद तक सच्चाई भी थी. एक तो दोनों की उम्र में करीब 16 साल का फर्क था. साथ ही रंगीन मिजाज राय के कई महिलाओं से विवाहेतर संबंध थे. देविका रानी को यह भी पता चल चुका था कि उनके प्यार के शुरुआती दिनों में ही राय के एक जर्मन महिला से भी संबंध थे और वह महिला उनके बच्चे की मां बनी. इन बातों ने देविका का रानी के बेहद आहत किया था. बावजूद इसके देविका रानी बॉम्बे स्टूडियो को लेकर इतनी समर्पित थीं कि इसे बनाने के लिए अपने जेवर गिरवी रख दिए थे. खैर, बहुत जल्दी देविका रानी और हसन की पूरे देश में तलाश शुरू हुई और अंततः उनका पता चल गया. हिमांशु राय के दोस्त और स्टूडियो में सहायक शशधर मुखर्जी ने देविका रानी को अपने पति के पास लौटने के लिए मना लिया. हसन को तुरंत फिल्म से निकाल दिया गया.
कुमुदलाल कुंजीलाल गांगुली
इसके बाद फिल्म के लिए नए लीड हीरो की तलाश शुरू हुई. हसन का मामला देखने के बाद हिमांशु राय ने तय किया कि किसी ऐसे व्यक्ति को कास्ट करें, जो दिखने और व्यवहार में बहुत औसत है. चालाक तो बिल्कुल न हो. शशधर मुखर्जी के साले कुमुदलाल कुंजीलाल गांगुली बॉम्बे टॉकीज में लैब असिस्टेंट थे और एक मीटिंग में उनका नाम आया. यहां से कुमुदलाल कुंजीलाल गांगुली की किस्मत पटल गई और वह पर्दे पर अशोक कुमार बन गए. हिमांशु राय आश्वस्त थे कि उन्होंने एक औसत आदमी को हीरो बनाया है. देविका रानी-अशोक कुमार को लेकर जीवन नैया तैयार होकर रिलीज हुई. उसके बाद अछूत कन्या (1936) आई. ब्राह्मण लड़के और दलित लड़की की प्रेम कहानी ने पूरे देश में तारीफें बटोरी. अशोक कुमार स्टार बन बन गए. फिल्म बहुत बड़ी हिट साबित हुई और उसके बाद अशोक कुमार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
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