B grade Films: उह, आह, आउच से लेकर ऊ लाला... वाली एडल्ट फिल्मों का ऐसा भी दौर बॉलीवुड में रहा है, जिसने सिनेमाघरों में राज किया. भले ही उसे अच्छी नजर से नहीं देखा गया. मल्टीप्लेक्स से लेकर आज इंटरनेट के साथ बिखरे पोर्न के समय में यह सिनेमा पूरी तरह खत्म हो चुका है. इसीलिए यह डॉक्युसीरीज खास है.
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Docuseries On Bollywood: सिनेमा का ए बी सी जैसा कोई ग्रेड नहीं होता. सिनेमा सिर्फ सिनेमा होता है. ऐसा कई लोग मानते हैं. बावजूद इसके सिनेमा में क्लास होता है, जो उसके कंटेंट, उसकी मेकिंग, उसके कलाकारों से तय होता है. हिंदी फिल्मों में 1990 से 2000 के दशक के बीच का दौर बॉलीवुड में बी ग्रेड फिल्मों के लिए बड़ा चर्चित रहा. जिसमें हॉरर, अपराध और सेक्स से भरपूर खूब फिल्में बनीं. मगर इनमें मेन-स्ट्रीम फिल्मों के सितारे या निर्माता-निर्देशक नहीं होते थे. इनकी अपनी दुनिया थी और तमाम देश में ये फिल्में या तो चुनिंदा सिंगल स्क्रीन थियेटरों में चलती थीं या इनके सुबह के शो होते थे. उस दौर में ‘मॉर्निंग शो’ का खास मतलब था. सिनेमा के इसी दौर को ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम वीडियो की डॉक्युसीरीज ‘सिनेमा मरते दम तक’ में जिंदा किया गया है.
प्रोजेक्ट नहीं, पैशन
करीब 35 से 40 मिनिट के छह एपिसोड वाली इस सीरीज में उस दौर के चार चर्चित मेकर्स विनोद तलवार, दिलीप गुलाटी, किशन शाह और जे. नीलम की जिंदगी को न केवल डॉक्युमेंट की तरह दर्ज किया गया है. बल्कि अपने-अपने अंदाज वाली फिल्म बनाने के लिए एक सीमित बजट भी सीरीज के निर्माता ने इन्हें दिया. उनके काम करने के अंदाज और उनकी फिल्मों की मेकिंग को भी शूट करके सीरीज में पिरोया गया है. यह एक अलग किस्म का अनुभव है. जब आप आज देखते-पढ़ते हैं कि बॉलीवुड में फिल्म मेकिंग ‘प्रोजेक्ट’ में बदल चुकी है, तब कैसे ये चार निर्माता-निर्देशक सीमित बजट में अपने अंदाज की फिल्म को ‘पैशन’ की तरह बनाते हैं. यह बात आज के बॉलीवुड फिल्ममेकर्स को नए सिरे से सीखने की जरूरत है.
उनकी ऐश्वर्या और कांति
सिनेमा मरते दम तक आपको उस बीते दौर में ले जाती है और उस पूरे माहौल से रू-ब-रू कराती हैं, जहां कम से कम पैसे में चार से सात दिन में फिल्में बन जाया करतीं. इन फिल्मों के चमकते सितारे भी आपको सीरीज में मिलते हैं. उनकी बातें, उनकी जिंदगी की झलक भी यहां हैं. बी ग्रेड फिल्मों की ऐश्वर्या राय कहलाने वाली सपना सप्पू यहां अपनी कहानी कहती हैं, तो बी ग्रेड फिल्मों के बेताज बादशाह कांति शाह भी नजर आते हैं. जो अपनी अकड़ में रहते हुए आज जिंदगी में अकेले पड़ गए हैं. यह कहते हुए उनकी आंखें छलक आती हैं कि आज मैं इतना अकेला हूं कि दिन में किसी को साथ रखने और बातें करने के लिए ढूंढता हूं. उसे पांच-सात सौ रुपये देता हूं. कांति के बड़े भाई किशन शाह भी यहां हैं और उनका अपना दर्द है.
बिजनेस की रील
सीरीज बताती है कि विनोद तलवार और दिलीप गुलाटी निर्देशक बड़े कलाकारों के साथ बड़ी फिल्में बनाने का सपना देखते-देखते कैसे बी ग्रेड फिल्में बनाने लगे. इस रेस में भी फिर कैसे पीछे रह गए. निर्देशक जे.नीलम ठेठ मर्दों की दुनिया में एक मजबूत महिला की आवाज हैं. फिल्म इन सभी कि जिंदगी पर से पर्दे उठाने के साथ यह भी सामने लाती है कि उस दौर में इन फिल्मों का बिजनेस कैसे होता था. कौन लोग इन्हें देखते थे और इन फिल्मों को बीच में काट कर ‘अश्लील रील’ जोड़ने का खेल कैसे होता था. सीरीज में रजा मुराद, हरीश पटेल, मुकेश ऋषि, किरण कुमार जैसे शख्स अपनी बात कहते नजर आते हैं. जो उस दौर में ए और बी दोनों ग्रेड का सिनेमा साथ-साथ कर रहे थे. यहां धर्मेंद्र, मिथुन चक्रवर्ती और विजय आनंद को भी याद किया गया है. लोहा, गुंडा, अंगूर और रामसे ब्रदर्स की फिल्मों समेत उस समय की तमाम चर्चित फिल्मों की झलकियां, उनके डायलॉग आपको मिलेंगे. सीरीज उस जमाने के मॉर्निंग शो का रोमांच और रोमांस सामने लाती है. यह ठेठ जमीनी दर्शक का सिनेमा था. जिसके पक्ष और विपक्ष में अलग-अलग तर्क हैं. राखी सावंत, पहलाज निहलानी और अर्जुन कपूर भी यहां हैं.
जिंदगी की सच्ची तस्वीर
सीरीज को काफी शोध के साथ तैयार किया गया है और समय के गुबार में गुम जाने वाली यादों को खूबसूरती से समेट लिया गया है. लोहा, गुंडा, अंगूर और रामसे ब्रदर्स की फिल्मों के फैन आज भी देश-विदेश में बिखरे हैं. इनके लिए यह सीरीज एक शानदार और रोमांचक अनुभव है. सिनेमा मरते दम तक आम सिने-दर्शकों के लिए है. यह बॉलीवुड वाइव्ज जैसी बेहद नकली वेबसीरीज के मुकाबले कहीं शानदार है. एंटरटेन करती है और जानकारियां भी देती है. यह जिंदगी की सच्ची तस्वीर है. सिनेमा मरते दम तक का यह पहला सीजन है. उम्मीद की जानी चाहिए कि चार मेकर्स ने इस सीरीज की शूटिंग के दौरान जो फिल्में बनाईं, वह भी आने वाले समय में अमेजन प्राइम वीडियो पर देखने मिलेंगी. जो लोग मॉर्निंग शो सिनेमा के दौर से परिचित हैं, उन्हें यह सीरीज पुराने दिनों में ले जाएगी. जिन्होंने वह दौर नहीं देखा, उन्हें यह एक अलग ढंग के सिनेमा की खबर देगी. सीरीज अवश्य देखने योग्य है.
निर्देशकः दिशा रंदानी, जुल्फी, कुलिश कांत ठाकुर
सितारेः विनोद तलवार, दिलीप गुलाटी, किशन शाह और जे. नीलम, राखी सावंत, अर्जुन कपूर, गोविंद निहलानी, रजा मुराद
रेटिंग ****
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