Chirag Paswan: बिहार में कितने असरदार हैं चिराग पासवान, लोकसभा चुनाव 2024 से पहले भाजपा और राजद में रस्साकशी क्यों?
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Chirag Paswan: बिहार में कितने असरदार हैं चिराग पासवान, लोकसभा चुनाव 2024 से पहले भाजपा और राजद में रस्साकशी क्यों?

Lok Sabha Chunav 2024 News: बिहार में भाजपा के साथ एनडीए में शामिल चिराग पासवान को लोकसभा चुनाव 2024 से पहले राजद की ओर से भी न्योता दिया जाने लगा. इसके बाद चिराग ने वैशाली में अपने तेवर दिखाए. इसके बाद सवाल उठने लगा कि भाजपा और राजद के लिए क्या सचमुच चिराग इतने जरूरी हैं कि उनके लिए रस्साकशी की जाए. 

Chirag Paswan: बिहार में कितने असरदार हैं चिराग पासवान, लोकसभा चुनाव 2024 से पहले भाजपा और राजद में रस्साकशी क्यों?

Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के सहयोगी दलों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर स्थिति अब तक साफ नहीं हो पाई है. एनडीए में भाजपा, जदयू, लोजपा (रामविलास), रालोजपा, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा शामिल है. इनमें भाजपा और जदयू के बीच बात बनने की बात कही जा रही है. ज्यादा मुश्किल छोटे दलों और खासकर लोजपा के दोनों धड़ों के बीच हो रही है.

पीएम मोदी की रैली से दूर दिखे, वैशाली में शक्ति प्रदर्शन कर रखी मांग

इस बीच लोजपा (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान को विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन में शामिल होने के लिए राजद ने खुला ऑफर दे दिया. इसके बाद वैशाली और साहेबगंज रैली में चिराग पासवान ने एनडीए का नाम नहीं लेते हुए अपना गठबंधन बिहार की जनता से होने की बात कही. इससे पहले बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों से भी वह दूर दिखे. एनडीए में सीटों के बंटवारे को लेकर भी जल्दी फैसला करने की मांग की. उन्होंने बिहार और बिहारी फर्स्ट का अपना नारा भी दोहराया.

राजद और भाजपा के लिए क्या सच में चिराग पासवान इतने जरूरी हैं?

इसके बाद बिहार के राजनीतिक हलकों में चर्चा होने लगी कि राजद और भाजपा के लिए क्या सच में चिराग पासवान इतने जरूरी हैं? रामविलास पासवान की गैरमौजूदगी में बिहार में चिराग पासवान कैसा सियासी असर रहा है? साथ ही लोकसभा चुनाव 2024 में वह एनडीए या इंडी गठबंधन के लिए कितना और किस तरह मददगार हो सकते हैं. आइए, इन सवालों और उनके जवाबों के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं.

अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाकात के बावजूद असमंजस में चिराग पासवान

बिहार की सियासत में इन दिनों चिराग पासवान 'हॉट केक' भले बने हुए हैं, लेकिन असमंजस और दोनों गठबंधनों से बेहतर डील की कोशिश में उनकी बारगेनिंग पावर ही कम हो सकती है. क्योंकि एनडीए से उनकी नाराजगी में मौका देखकर इंडी गठबंधन से राजद के ऑफर का उन्होंने कोई खंडन नहीं किया. वहीं, दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के बावजूद गठबंधन के सवाल पर खुलकर एनडीए का नाम लिया.

चिराग पासवान ने बुधवार शाम को जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद ने लिखा कि गठबंधन में सीटों पर समझौता हो गया है. उचित समय पर जानकारी दी जाएगी. हालांकि, चिराग ने अपने चाचा पशुपति पारस की सीट हाजीपुर पर अपना दावा भी नहीं छोड़ा है. चिराग ने एक्स  पर पोस्ट में लिखा, 'एनडीए के सदस्य के रूप में आज भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय श्री @jpnadda  जी के साथ बैठक में हमने आगामी लोकसभा चुनावों के लिए बिहार में सीट बंटवारे को अंतिम रूप दे दिया है. उचित समय आने पर इसकी सूचना दी जाएगी.'

लोजपा में बंटवारे को बाद भी 2019 की तरह 6 सीटों पर अड़े चिराग और पारस

चिराग पासवान ने दिल्ली में इशारों में कहा कि एनडीए में जल्दी ही सीट शेयरिंग पर बात फाइनल हो जाएगी, लेकिन समीकरणों के बारे में उन्होंने कुछ नहीं कहा. लोजपा के दो धड़े हो जाने बावजूद वह लगातार लोकसभा चुनाव 2019 में लोजपा को मिली सभी 6 सीटों पर जीत का हवाला दे रहे हैं. वहीं, पशुपति पारस इनमें से पांच सांसद खुद के साथ होने को लेकर अलग से दावा कर रहे हैं. हाजीपुर सीट पर वह भी समझौता करते नहीं दिख रहे हैं. इससे लोजपा के आधार वोट बैंक में भी बंटवारे की सूरत साफ दिखने लगी है.

पिता रामविलास पासवान की तरह सत्ता को समझ नहीं पा रहे हैं चिराग

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव लोजपा नेता चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान को मौसम वैज्ञानिक कहा करते थे. क्योंकि पासवान चुनाव से काफी पहले इस बात का अंदाजा लगा लेते थे कि किस पार्टी के हाथों में सत्ता की कमान आने वाली है. फिर वह उसी गठबंधन में शामिल हो जाते थे. इसलिए रामविलास पासवान अपनी पूरी जिंदगी सत्ता का हिस्सा बने रहे. दिग्गज केंद्रीय मंत्री रहे रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान महज एक लोकसभा सांसद से आगे नहीं बढ़ पाए हैं.

भाजपा के साथ रहना चाहते हैं पर उसे साध नहीं पा रहे चिराग पासवान

खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हनुमान कहने वाले चिराग पासवान भाजपा के साथ रहना चाहते हैं, लेकिन अपने दिवंगत पिता की तरह वह भाजपा को साधने में अब तक कामयाब नहीं हो पाए हैं. बिहार की सियासत में चिराग अपने पिता की तरह खुद को प्रासंगिक बनाकर भी नहीं रख पा रहे हैं. एनडीए में नीतीश कुमार की वापसी के खिलाफ होने के बावजूद चिराग को शपथ ग्रहण समारोह में जाना पड़ा. गठबंधन में अब उनकी सीटें कम होना का खतरा भी बढ़ गया है.

दलित और महादलित कैटेगरी बंटने से चिराग के वोट बैंक पर भी असर

बिहार में दलित और महादलित कैटेगरी बंटने के बाद चिराग पासवान के वोट बैंक पर भी असर पड़ा है. लोजपा में फूट का भी असर साफ दिख रहा है. इस बीच बारगेनिंग में सबसे चतुर नेता नीतीश कुमार भी विदेश दौरे से एक दिन पहले ही बिहार लौट चुके हैं. अगले एक-दो दिन में चुनाव आयोग तारीखों का एलान भी कर सकता है. ऐसे राजनीतिक हालात में जमुई लोकसभा से सांसद चिराग पासवान का असमंजस खुद उनके लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है.

रामविलास की गैरमौजदूगी में चिराग पासवान की कितनी सियासी ताकत

चिराग पासवान की अगुवाई में पिछले साल नगालैंड विधानसभा चुनाव में पहली बार एलजेपी (राम विलास) को दो सीटों पर जीत मिली थी. वहीं, आठ सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी. इससे पहले बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में लोक जनशक्ति पार्टी अकेले चुनाव मैदान में उतरा था. लोजपा को केवल एक जीत मिली थी, लेकिन करीब सात फीसदी वोट मिले थे. हालांकि, बाद में लोजपा का वह इकलौता विधायक जदयू में शामिल हो गया था.

बिहार में लोजपा का 6 फीसदी वोट, चतुराई से इस्तेमाल की जरूरत

लोजपा में टूट के बाद से चिराग पासवान के धड़े ने साल 2021 के अंत में बिहार में दो सीटों पर विधानसभा उपचुनाव पर निर्दलीय दम आजमाया था. दोनों सीटों पर उन्हें करीब 6 फीसदी वोट मिले थे. लोजपा के पास बिहार में इतना ही वोट माना जाता है. रामविलास पासवान इसी का चतुराई से इस्तेमाल कर बिहार में दलितों का सबसे बड़ा नेता बने रहे थे. हालांकि, लोकसभा चुनाव 2019 में लोजपा को करीब 8 फीसदी वोट मिला था. लोजपा में टूट के बाद पशुपति पारस के धड़े ने कोई चुनावी इम्तिहान नहीं दिया है. 

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