क‍िसी ने पेट्रोल पंप पर क‍िया काम, क‍िसी ने दुकान में; अंबानी से टाटा तक, ऐसी है अमीर बनने की कहानी
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क‍िसी ने पेट्रोल पंप पर क‍िया काम, क‍िसी ने दुकान में; अंबानी से टाटा तक, ऐसी है अमीर बनने की कहानी

सफलता स‍िर्फ भाग्‍य से नहीं म‍िलती. इसके ल‍िए खूब सारी मेहनत और धैर्य की आवश्‍यकता होती है. दुन‍िया में अपनी खास जगह बनाने वाले भारतीय अरबपत‍ि भले ही आज अपने शोहरत के ल‍िए जाने जाते हैं, लेक‍िन इन्‍होंने शुरुआत बहुत छोटे स्‍तर से की थी. आइये आज देश के बड़े उद्योगपत‍ियों के अमीर बनने की कहानी जाने हैं. 

क‍िसी ने पेट्रोल पंप पर क‍िया काम, क‍िसी ने दुकान में; अंबानी से टाटा तक, ऐसी है अमीर बनने की कहानी

Millionaire Success Stories: ये बात सच है क‍ि सफलता सिर्फ किस्मत का कमाल नहीं है. इस सफर में कड़ी मेहनत के साथ डेड‍िकेशन और धैर्य की जरूरत भी होती है. क्या आपने कभी भारत के सबसे सफल लोगों के अमीर बनने की कहानी सुनी है? इन सभी की शुरुआत बेहद साधारण और छोटी सी थी. लेक‍िन साधारण काम करके भी इन्‍होंने आज असाधारण उपलब्‍ध‍ियों की कहानी बना ली है. अंबानी से लेकर टाटा तक इन सभी में एक बात जो कॉमन थी, वो ये क‍ि इन सभी ने अपने सपनों की तरफ कदम बढाने के ल‍िए छोटी शुरुआत की और धीरे-धीरे कामयाबी के श‍िखर पर चढते गए. 

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धीरूभाई अंबानी 
धीरूभाई अंबानी का नाम कौन नहीं जानता. मुकेश और अन‍िल अंबानी के प‍िता धीरूभाई एक सफल व्यवसायी थे, जिन्होंने बहुत कम से शुरुआत की थी. वे भारत के गुजरात के एक गांव में गरीबी में पले-बढ़े और अपने परिवार की मदद करने के लिए उन्हें जल्दी ही स्कूल छोड़ना पड़ा. उन्होंने अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए अजीबो-गरीब काम किए. उनकी पहली नौकरी एक गैस स्टेशन पर थी, जहां उन्हें अपना पहला वेतन मिला. 17 साल की उम्र में, वे सफलता के सपने लेकर अदन चले गए. उन्होंने रमणिकलाल अंबानी की कंपनी, ए. बेसे एंड कंपनी के लिए काम किया, लेकिन पहले उन्‍हें वेतन नहीं मिला. वहां उन्‍हें अनुभव मिला. बाद में, उन्होंने गैस स्टेशन पर काम करते हुए अपना पहला वेतन 300 रुपये कमाया. 

रतन टाटा 
रतन टाटा भारत के सबसे सफल व्यवसायियों में से एक हैं. उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे पुरस्कार से नवाजा गया है. रतन टाटा अपने ब‍िजनेस आइड‍ियाज के ल‍िए ही नहीं, बल्‍क‍ि मानवता और दयालुता स्‍वभाव के लिए जाने जाते हैं. भले ही वह व्यवसाय की दुनिया में एक बड़ा नाम है, लेकिन बारे में कहा जाता है क‍ि डाउन टू दी अर्थ की अगर कोई पर‍िभाषा है तो वो रतन टाटा हैं. 

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उनकी पहली नौकरी साल 1961 में लगी. उनकी ये नौकरी टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर लगी थी. यहां वो संचालन का प्रबंधन देखते थे. बाद में उन्‍हें ट्रेनी के तौर पर टाटा इंजीनियरिंग और लोकोमोटिव कंपनी (TELCO) में काम करने का मौका म‍िला. इसे अब टाटा मोटर्स कहा जाता है. IBM से उच्च वेतन वाली नौकरी की पेशकश मिलने के बावजूद, उन्होंने अपनी खुद की कंपनी में काम करना और अनुभव हासिल करना चुना.  

किरण मजूमदार शॉ
किरण मजूमदार शॉ भारत की एक सफल व्यवसायी हैं. उन्होंने बैंगलोर में बायोकॉन लिमिटेड नाम की एक कंपनी शुरू की जो बायोटेकेलॉजी में काम करती है. वे वहां की अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक हैं. उन्होंने अपने काम के लिए कई पुरस्कार जीते हैं, जैसे ओथमर गोल्ड मेडल और फाइनेंशियल टाइम्स और फोर्ब्स की सूचियों में उनका नाम शामिल है.

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वे उदार होने के साथ-साथ दूसरों की मदद करने के लिए पैसे देने के लिए भी जानी जाती हैं. किरण की कहानी प्रेरणादायक है, खासकर उन महिलाओं के लिए जो उद्यमी बनना चाहती हैं. उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में एक शराब बनाने वाली कंपनी में ट्रेनी के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की. जब वे शराब बनाने में अपना करियर बनाने के लिए भारत वापस आईं तो उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा. इसके बावजूद, उन्होंने बहुत कुछ हासिल किया है और लाखों लोगों के लिए एक रोल मॉडल हैं.

गौतम अडानी
गौतम अडानी पहली पीढ़ी के उद्यमी हैं और अडानी समूह के संस्थापक और अध्यक्ष हैं. फोर्ब्स में 13 अप्रैल, 2024 तक उनकी कुल संपत्ति 83.4 बिलियन डॉलर बताई गई है. गौतम अडानी 1978 में किशोरावस्था में मुंबई चले गए थे. उन्हें महेंद्र ब्रदर्स के लिए हीरे छांटने का काम मिला. वहां करीब दो से तीन साल काम करने के बाद उन्होंने मुंबई के जावेरी बाजार में अपना खुद का हीरा व्यापार व्यवसाय शुरू किया. 

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इंद्रा नूई
इंद्रा नूई व्यापार जगत में खास जगह रखती हैं. वह 12 साल तक दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक पेप्सिको की सीईओ रहीं. वह पहली महिला हैं जो श्वेत नहीं हैं और इतनी बड़ी कंपनी का नेतृत्व करने वाली पहली अप्रवासी हैं. उनके नेतृत्व में, पेप्सिको ने अधिक लाभ कमाया और पर्यावरण के प्रति बेहतर रहने तथा स्वास्थ्यवर्धक भोजन बनाने का प्रयास किया. 

नूई का जन्म 1955 में भारत में एक सामान्य परिवार में हुआ था और वह पढ़ाई में बहुत अच्छी थीं. उन्हें वे चीजें पसंद थीं जो उस समय ज्यादातर लड़कियों को पसंद नहीं थीं, जैसे क्रिकेट खेलना और गिटार बजाना. साल 1974 में 18 साल की उम्र में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने एक ब्रिटिश टेक्सटाइल फर्म में एक व्यापार रणनीतिकार के रूप में अपनी पहली नौकरी शुरू की और फिर मुंबई में जॉनसन एंड जॉनसन में प्रोडक्‍ट मैनेजर के रूप में काम किया, जहां उन्होंने भारत में पीर‍ियड्स पैड स्टेफ्री को पेश किया. 

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